"शृंगार रस": अवतरणों में अंतर

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[[File:Mani Madhava Chakyar-Sringara-new.jpg|thumb|मणि माधव चाक्यार द्वारा श्रृंगार रस का प्रदर्शन]]
'''शृंगार रस''' [[रस सिद्धांत|रसों]] मे से एक प्रमुख [[रस]] है। यह [[रति भाव]] को दर्शाता है।
 
==परिचय==
[[File:Sringara3sm.jpg|thumb|भरतनाट्यम में श्रृंगार रस का प्रदर्शन]]
शृंगार मुख्यत: संयोग तथा विप्रलंभ या वियोग के नाम से दो भागों में विभाजित किया जाता है, किंतु धनंजय आदि कुछ विद्वान् विप्रलंभ के पूर्वानुराग भेद को संयोग-विप्रलंभ-विरहित पूर्वावस्था मानकर अयोग की संज्ञा देते हैं तथा शेष विप्रयोग तथा संभोग नाम से दो भेद और करते हैं। संयोग की अनेक परिस्थितियों के आधार पर उसे अगणेय मानकर उसे केवल आश्रय भेद से नायकारब्ध, नायिकारब्ध अथवा उभयारब्ध, प्रकाशन के विचार से प्रच्छन्न तथा प्रकाश या स्पष्ट और गुप्त तथा प्रकाशनप्रकार के विचार से संक्षिप्त, संकीर्ण, संपन्नतर तथा समृद्धिमान नामक भेद किए जाते हैं तथा विप्रलंभ के पूर्वानुराग या अभिलाषहेतुक, मान या ईश्र्याहेतुक, प्रवास, विरह तथा करुण प्रिलंभ नामक भेद किए गए हैं।