"आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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'''आधुनिक काल 1850१८५० से'''
[[हिंदी साहित्य]] के इस युग को में भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। [[स्वतंत्रता संग्राम]] लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी [[पद्य]] साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहां काव्य में इसे [[छायावादी युग]], [[प्रगतिवादी युग]], [[प्रयोगवादी युग]] और [[यथार्थवादी युग]] इन चार नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को [[भारतेंदु हरिश्चंद्र युग]] और [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] युग के दो और युगों में बांटा गया। इसके विशेष कारण भी हैं।
 
==भारतेंदु हरिश्चंद्र युग की कविता (1850१८५०-1900१९००)==
ईस्वी सन 1850१८५० से 1900१९०० तक की कविताओं पर [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] का गहरा प्रभाव पड़ा है। वे ही आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह हैं। उन्होंने भाषा को एक चलता हुआ रूप देने की कोशिश की। आपके काव्य-साहित्य में प्राचीन एवं नवीन का मेल लक्षित होता है। भक्तिकालीन, रीतिकालीन परंपराएं आपके काव्य में देखी जा सकती हैं तो आधुनिक नूतन विचार और भाव भी आपकी कविताओं में पाए जाते हैं। आपने भक्ति-प्रधान, श्रृंगार-प्रधान, देश-प्रेम-प्रधान तथा सामाजिक-समस्या-प्रधान कविताएं की हैं। आपने ब्रजभाषा से खड़ीबोली की ओर हिंदी-कविता को ले जाने का प्रयास किया। आपके युग में अन्य कई महानुभाव ऐसे हैं जिन्होंने विविध प्रकार हिंदी साहित्य को समृध्द किया।
 
==पं महावीर प्रसाद द्विवेदी युग की कविता (1900१९००-1920१९२०)==
सन 1900 के बाद दो दशकों पर [[पं महावीर प्रसाद द्विवेदी]] का पूरा प्रभाव पड़ा। इस युग को इसीलिए द्विवेदी-युग कहते हैं। [['सरस्वती']] पत्रिका के संपादक के रूप में आप उस समय पूरे हिंदी साहित्य पर छाए रहे। आपकी प्रेरणा से ब्रज-भाषा हिंदी कविता से हटती गई और खड़ी बोली ने उसका स्थान ले लिया। भाषा को स्थिर, परिष्कृत एवं व्याकरण-सम्मत बनाने में आपने बहुत परिश्रम किया। कविता की दृष्टि से वह इतिवृत्तात्मक युग था। आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम वगैरह कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। भाषा खुरदरी और सरल रही। मधुरता एवं सरलता के गुण अभी खड़ी-बोली में आ नहीं पाए थे। सर्वश्री [[मैथिलीशरण गुप्त]], [[अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']], [[श्रीधर पाठक]], [[रामनरेश त्रिपाठी]] आदि इस युग के यशस्वी कवि हैं। [[जगन्नाथदास 'रत्नाकर']] ने इसी युग में ब्रज भाषा में सरस रचनाएं प्रस्तुत कीं।
 
==छायावादी युग की कविता (1920१९२०-)==
सन 1920१९२० के आसपास हिंदी में कल्पनापूर्ण स्वछंद और भावुक कविताओं की एक बाढ़ आई। यह यूरोप के रोमांटिसिज़्म से प्रभावित थी। भाव, शैली, छंद, अलंकार सब दृष्टियों से इसमें नयापन था। भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद लोकप्रिय हुई इस कविता को आलोचकों ने [[छायावादी युग]] का नाम दिया। छायावादी कवियों की उस समय भारी कटु आलोचना हुई परंतु आज यह निर्विवाद तथ्य है कि आधुनिक हिंदी कविता की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि इसी समय के कवियों द्वारा हुई। [[जयशंकर प्रसाद]], [[निराला]], [[सुमित्रानंदन पंत]], [[महादेवी वर्मा]] इस युग के प्रधान कवि हैं।
 
==प्रगतिवादी युग की कविता (1930१९३०-)==
छायावादी काव्य बुद्धिजीवियों के मध्य ही रहा। जन-जन की वाणी यह नहीं बन सका। सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलनों का सीधा प्रभाव इस युग की कविता पर सामान्यतः नहीं पड़ा। संसार में समाजवादी विचारधारा तेज़ी से फैल रही थी। सर्वहारा वर्ग के शोषण के विरुध्द जनमत तैयार होने लगा। इसकी प्रतिच्छाया हिंदी कविता पर भी पड़ी और हिंदी साहित्य के [[प्रगतिवादी युग]] का जन्म हुआ। 1930१९३० क़े बाद की हिंदी कविता ऐसी प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित है।
 
==प्रयोगवादी युग की कविता==