"आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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'''आधुनिक काल
[[हिंदी साहित्य]] के इस युग को में भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। [[स्वतंत्रता संग्राम]] लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी [[पद्य]] साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहां काव्य में इसे [[छायावादी युग]], [[प्रगतिवादी युग]], [[प्रयोगवादी युग]] और [[यथार्थवादी युग]] इन चार नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को [[भारतेंदु हरिश्चंद्र युग]] और [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] युग के दो और युगों में बांटा गया। इसके विशेष कारण भी हैं।
==भारतेंदु हरिश्चंद्र युग की कविता (
ईस्वी सन
==पं महावीर प्रसाद द्विवेदी युग की कविता (
सन 1900 के बाद दो दशकों पर [[पं महावीर प्रसाद द्विवेदी]] का पूरा प्रभाव पड़ा। इस युग को इसीलिए द्विवेदी-युग कहते हैं। [['सरस्वती']] पत्रिका के संपादक के रूप में आप उस समय पूरे हिंदी साहित्य पर छाए रहे। आपकी प्रेरणा से ब्रज-भाषा हिंदी कविता से हटती गई और खड़ी बोली ने उसका स्थान ले लिया। भाषा को स्थिर, परिष्कृत एवं व्याकरण-सम्मत बनाने में आपने बहुत परिश्रम किया। कविता की दृष्टि से वह इतिवृत्तात्मक युग था। आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम वगैरह कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। भाषा खुरदरी और सरल रही। मधुरता एवं सरलता के गुण अभी खड़ी-बोली में आ नहीं पाए थे। सर्वश्री [[मैथिलीशरण गुप्त]], [[अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']], [[श्रीधर पाठक]], [[रामनरेश त्रिपाठी]] आदि इस युग के यशस्वी कवि हैं। [[जगन्नाथदास 'रत्नाकर']] ने इसी युग में ब्रज भाषा में सरस रचनाएं प्रस्तुत कीं।
==छायावादी युग की कविता (
सन
==प्रगतिवादी युग की कविता (
छायावादी काव्य बुद्धिजीवियों के मध्य ही रहा। जन-जन की वाणी यह नहीं बन सका। सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलनों का सीधा प्रभाव इस युग की कविता पर सामान्यतः नहीं पड़ा। संसार में समाजवादी विचारधारा तेज़ी से फैल रही थी। सर्वहारा वर्ग के शोषण के विरुध्द जनमत तैयार होने लगा। इसकी प्रतिच्छाया हिंदी कविता पर भी पड़ी और हिंदी साहित्य के [[प्रगतिवादी युग]] का जन्म हुआ।
==प्रयोगवादी युग की कविता==
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