"भयानक रस": अवतरणों में अंतर

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{{हहेच लेख|research work with no proof attached}}'''भयानक रस हिन्दी काव्य में मान्य''' नौ रसों में से एक रस है। भानुदत्त के अनुसार, ‘भय का परिपोष’ अथवा ‘सम्पूर्ण इन्द्रियों का विक्षोभ’ भयानक रस है। अर्थात भयोत्पादक वस्तुओं केको दर्शनदेखने या श्रवणसुनने से अथवा शत्रु इत्यादि के विद्रोहपूर्ण आचरण सेकी है,स्थिति तब वहाँमें भयानक रस उद्भुत होता है। हिन्दी के आचार्य सोमनाथ ने ‘रसपीयूषनिधि’ में भयानक रस की निम्न परिभाषा दी है-
 
‘सुनि कवित्त में व्यंगि भय जब ही परगट होय। तहीं भयानक रस बरनि कहै सबै कवि लोय’।