"माघ (मास)": अवतरणों में अंतर

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माघ स्नान पौष मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर माघी पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। इस वर्ष माघ स्नान 19 जनवरी से प्रारंभ होकर 18 फरवरी को संपन्न हो रहा है। यह स्नान किसी पवित्र नदी या सरोवर के शीतल जल में रात्रि के अंतिम प्रहर में सूर्योदय से 1 घंटा 36 मिनट पूर्व से सूर्य के उदित होने तक हो जाना चाहिए। माघ-स्नान के लिए तीर्थराज प्रयाग को सर्वोत्तम माना गया है। किंतु यदि कोई श्रद्धालु वहां न जा सके तो वह जहां कहीं भी स्नान करे, वहीं प्रयागराज का स्मरण कर ले। माघ-स्नान के दौरान नियमानुसार निराहार, शाकाहार या फलाहार करना चाहिए। किंतु ऐसा करने में असमर्थ लोग दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन कर सकते हैं। जो व्यक्ति माघ में मासपर्यत विधिवत स्नान करने में असमर्थ हों, वह माघ के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को अरुणोदय में स्नान करके यथाशक्ति दान अवश्य करें।
 
 
विशेष बिंदु
 
कार्तिक मास में एक हज़ार बार यदि गंगा स्नान करें और माघ मास में सौ बार स्नान करें, बैशाख मास में नर्मदा में करोड़ बार स्नान करें तो उन स्नानों का जो फल होता है वह फल प्रयाग में कुम्भ के समय पर स्नान करने से प्राप्त होता है।।
माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है
माघ मास में कुछ महत्त्वपूर्ण व्रत होते हैं, यथा– तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी।
माघ शुक्ल चतुर्थी 'उमा चतुर्थी' कही जाती है, क्योंकि इस दिन पुरुषों और विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा कुन्द तथा कुछ अन्यान्य पुष्पों से उमा का पूजन होता है। साथ ही उनको गुड़, लवण तथा यावक भी समर्पित किये जाते हैं। व्रती को सधवा महिलाओं, ब्राह्मणों तथा गौओं का सम्मान करना चाहिए।
माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया, तदनन्तर देवगण ने भगवान विष्णु को तिलों का स्वामी बनाया। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों से भगवान का पूजन कर तिलों से ही हवन करना चाहिए। तदुपरान्त तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए।
माघ शुक्ल सप्तमी को इस माघ शुक्ल सप्तमी व्रत का अनुष्ठान होता है। अरुणोदय काल में मनुष्य को अपने सिर पर सात बदर वृक्ष के और सात अर्क वृक्ष के पत्ते रखकर किसी सरिता अथवा स्रोत में स्नान करना चाहिए। तदनन्तर जल में सात बदर फल, सात अर्क के पत्ते, अक्षत, तिल, दूर्वा, चावल, चन्दन मिलाकर सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए तथा उसके बाद सप्तमी को देवी मानते हुए नमस्कार कर सूर्य को प्रणाम करना चाहिए।
कुछ अन्य ग्रन्थों के अनुसार माघ में स्नान तथा इस स्नान में कोई अन्तर नहीं है। जबकि अन्य ग्रन्थों के अनुसार ये दोनों पृथक-पृथक कृत्य हैं।
माघ मास में बड़े तड़के गंगाजी अथवा अन्य किसी पवित्र धारा में स्नान करना परम प्रशंसनीय माना जाता है। इसके लिए सर्वोत्तम काल ब्रह्म मुहूर्त है। जब नक्षत्र दर्शनीय रहते हैं। उससे कुछ कम उत्तम काल वह है जब तारागण टिमटिमा रहे हों। किन्तु सूर्योदय न हुआ हो।
अधम काल सूर्योदय के बाद स्नान करने का है। माघ मास का स्नान पौष शुक्ल एकादशी अथवा पूर्णिमा से आरम्भ कर माघ शुक्ल द्वादशी या पूर्णिमा को समाप्त होना चाहिए। कुछ इसे संक्रान्ति से परिगणन करते हुए स्नान का सुझाव उस समय देते हैं, जब सूर्य माघ मास में मकर राशि पर स्थित हो।
समस्त नर-नारियों को इस व्रत के आचरण का अधिकार है। सबसे महान पुण्य प्रदाता माघ स्नान गंगा तथा यमुना के संगम स्थल का माना जाता है।
पद्म पुराण [1] में माघ स्नान के माहात्म्य को ही वर्णन करने वाले 2800 श्लोक, अध्याय 219 से 250 तक प्राप्त होते हैं; हेमाद्रि, [2] आदि में विस्तृत वर्णन मिलता है।
 
माघ में प्रयागराज सर्वोपरि
माघ मास की ऐसी दिव्यता है कि इस माह में संपूर्ण पृथ्वी पवित्र हो जाती है, पर माघ में तीर्थराज प्रयाग का माहात्म्य सर्वोपरि सिद्ध हुआ है। महाभारत के अनुशासन पर्व में माघ मास की अमावस्या को प्रयागराज में तमाम तीर्थो के समागम का तथ्य आया है। इस तिथि को मौन होकर स्नान करने का विधान होने के कारण यह मौनी अमावस के नाम से प्रसिद्ध हो गई है। माघ मास का मुख्य स्नान प्रयागराज में इसी दिन संपन्न होता है। माघ मास में देश के कोने-कोने से संत-महात्मा और भक्तजन प्रयाग पहुंचते हैं। संतों और भक्तों की बहुत बड़ी संख्या यहां एकत्र होने से माघ स्नान माघ मेले का रूप ले चुका है। ऐसी धारणा है कि माघ में प्रयागवास तथा त्रिवेणी-संगम में स्नान करने से एक कल्प की तपस्या के समान पुण्यफल मिलता है। इसी कारण इसे प्रयाग में कल्पवास कहा जाता है। वहां माघ मेले का समापन माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ हो जाता है, किंतु सौर संवत्सर के अनुसार मकर राशि में सूर्य की मासपर्यत स्थिति ही सौर माघ कहलाएगी। अत: इस मत के अनुयायी मकर राशि में सूर्य रहने की अवधि तक प्रयाग वास और स्नान करते हैं। देश के कुछ हिस्सों में चंद्र संवत्सर तो कुछ में सौर संवत्सर प्रचलित है।
दान का महत्व
माघ में स्नान करने के उपरांत दान करने का नियम है। माघ-स्नान का शास्त्रोक्त फल पाने की कामना रखने वाले को अपनी शक्ति के अनुसार यथासंभव दान अवश्य करना चाहिए। जाड़ा होने के कारण इस माह में ऊनी वस्त्रों का दान विशेष रूप से करना चाहिए। माघ में तिल के दान का बड़ा महत्व है। जो लोग पूरे महीने दान नहीं कर पाते वे इस मास की अमावस्या और पूर्णिमा के अलावा मकर संक्रांति को भी दान कर सकते हैं, क्योंकि इसे स्नान-दान का महापर्व माना जाता है।
माघ के अन्य व्रत पर्व
माघ मास की शुरुआत में कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। काशी में इस तिथि को श्रीगणेश-जयंती महोत्सव मनाया जाता है। वहां के बड़ा गणेश मंदिर का मेला पूरे पूर्वाचल में विख्यात है। माघ के कृष्णपक्ष में षट्तिला एकादशी के दिन तिलमिश्रित जल से स्नान, तिल का उबटन लगाने, तिल का हवन, तिल मिश्रित जल पीने, तिल का भोजन तथा तिल का दान करने से समस्त पापों का नाश होता है। माघ के शुक्लपक्ष की पंचमी को विद्या की अधिष्ठात्री सरस्वती की पूजा होती है। माघ शुक्ल सप्तमी को सूर्यदेव का व्रत आरोग्य के लिए किया जाता है। वस्तुत: संपूर्ण माघ मास स्नान-दान का पर्वकाल है, इसकी दिव्यता हमें आध्यात्मिक लाभ देती है।
मकर संक्रांति का त्योहार प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है?
इस दिन सूर्य अपनी कक्षा में राशि परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। चूंकि अंग्रेजी का कैलेंडर भी सौर वर्ष के अनुसार संचालित होता है, इसलिए जब सूर्य अपनी कक्षा में परिवर्तन करते हैं, तो उस दिन भारतीय और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार खगोलीय स्थितियां समान होती हैं। इसीलिए यह त्योहार प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को ही मनाया जाता है। कभी-कभी सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी को दिन में न होकर रात में होता है तो ऐसी स्थिति में मकर संक्रांति के स्नान-दान का पुण्यकाल और त्योहार 15 जनवरी को माना जाता है।
 
 
 
 
विवरण माघ हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का ग्यारहवाँ महीना है।
अंग्रेज़ी : जनवरी-फरवरी
हिजरी : माह रबीउल अव्वल - रबीउल आख़िर
 
व्रत एवं त्योहार बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, मौनी अमावस्या, भीष्माष्टमी
जयंती एवं मेले नर्मदा जयंती, माघ मेला
पिछला पौष
अगला फाल्गुन
 
विशेष माघ मास में 'कल्पवास' का विशेष महत्त्व है। 'माघ काल' में संगम के तट पर निवास को 'कल्पवास' कहते हैं।
अन्य जानकारी माघ शुक्ल चतुर्थी 'उमा चतुर्थी' कही जाती है, क्योंकि इस दिन पुरुषों और विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा कुन्द तथा कुछ अन्यान्य पुष्पों से उमा का पूजन होता है। साथ ही उनको गुड़, लवण तथा यावक भी समर्पित किये जाते हैं।