"शिखरजी": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 22:
[[चित्र:Tonk SHRI 10008 PARASNATH BHAGVAN.jpg|thumbnail|left|शिखर जी , पारसनाथ हिल]]
'''शिखरजी''' या '''श्री शिखरजी''' या '''पारसनाथ पर्वत पर पवित्र तीर्थ शिखरजी स्थान''' [[भारत]] के [[झारखंड]] राज्य के [[गिरीडीह जिला|गिरीडीह ज़िले]] में [[छोटा नागपुर पठार]] पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण [[जैन धर्म|जैन]] तीर्थ स्थल भी है। श्री सम्मेद शिखरजी के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। माना जाता है कि 24 में से 20 जैन ने पर मोक्ष प्राप्त किया था।<ref name="hindustantimes1">[http://travel.hindustantimes.com/travelogues/on-a-spiritual-odyssey-1.php On a spiritual odyssey - Hindustan Times Travel], Travel.hindustantimes.com, Accessed 2012-07-07</ref> 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है।<ref name="ref36yihig"/>
स्थिति
यह जैनियों का विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल शिखरजी है। एक ओर पारसनाथ पर्वत इस जिले को मिली प्रकृति की अनुपम भेंट है तो दूसरी ओर वह लोगों के हृदय में प्रेम और भक्ति की प्रगाढ़ भावना जगाने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है। इस पावन भूमि की खूबसूरती में भव्य व आकर्षक मंदिरों एवं ठहराव स्थलों चार चाँद लगा दिए हैं। यहाँ साल भर पहुँचने वाले जैन धर्मावलंबियों के साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं। गिरीडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है।
सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह 'सिद्धक्षेत्र' कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात 'तीर्थों का राजा' कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह ज़िले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म के दिगंबर मत का प्रमुख तीर्थ है। इसे 'पारसनाथ पर्वत' के नाम से भी जाना जाता है।
 
प्राचीन अमर तीर्थ
जैन धर्म में प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेद शिखर और अयोध्या, इन दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसका अर्थ यह है कि इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको 'अमर तीर्थ' माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में यहाँ पर तीर्थंकरों और तपस्वी संतों ने कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थयात्रा शुरू होती है तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भरा होता है। इस तप और मोक्ष स्थली का प्रभाव तीर्थयात्रियों पर इस तरह होता है कि उनका हृदय भक्ति का सागर बन जाता है।
 
मान्यताएँ
 
जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया।[1]
 
मोक्ष स्थान
जैन नीति शास्त्रों में वर्णन है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान 'आदिनाथ' अर्थात् भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। शेष 20 तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर में मोक्ष प्राप्त किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी इसी तीर्थ में कठोर तप और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था। अत: भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। <ref>http://hi.bharatdiscovery.org/india/सम्मेद_शिखर</ref>
<ref>http://hindi.webdunia.com/religious-places/श्री-सम्मेद-शिखरजी-110043000037_1.htm</ref>
<ref>http://parasnath.nic.in/mapofparasnath.html</ref>
<ref>http://religion.bhaskar.com/news/shrisammed-856616.html</ref>
[[File:Jal_mandir_parasnath.JPG]]
 
== इन्हें भी देखें ==