"शिखरजी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Shikharji_2004a.jpg|thumb|left]]
'''शिखरजी''' या '''श्री शिखरजी''' या '''पारसनाथ पर्वत पर पवित्र तीर्थ शिखरजी स्थान''' [[भारत]] के [[झारखंड]] राज्य के [[गिरीडीह जिला|गिरीडीह ज़िले]] में [[छोटा नागपुर पठार]] पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण [[जैन धर्म|जैन]] तीर्थ स्थल भी है। श्री सम्मेद शिखरजी के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। माना जाता है कि 24 में से 20 जैन ने पर मोक्ष प्राप्त किया था।<ref name="hindustantimes1">[http://travel.hindustantimes.com/travelogues/on-a-spiritual-odyssey-1.php On a spiritual odyssey - Hindustan Times Travel], Travel.hindustantimes.com, Accessed 2012-07-07</ref> 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है।<ref name="ref36yihig"/>
 
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==मान्यताएँ==
जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया।<ref>http://religion.bhaskar.com/2010/04/09/shrisammed-856616.html</ref>
[[चित्र:Tonk SHRI 10008 PARASNATH BHAGVAN.jpg|thumbnail|leftcenter|शिखर जी , पारसनाथ हिल]]
==मोक्ष स्थान==
जैन नीति शास्त्रों में वर्णन है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान 'आदिनाथ' अर्थात् भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। शेष 20 तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर में मोक्ष प्राप्त किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी इसी तीर्थ में कठोर तप और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था। अत: भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। <ref>http://hi.bharatdiscovery.org/india/सम्मेद_शिखर</ref>