"ज़फ़रनामा": अवतरणों में अंतर

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गुरु गोविंद सिंह ने अपने स्वाभिमान तथा वीरभाव का परिचय देते हुए लिखा, व्मैं ऐसी आग तेरे पांव के नीचे रखूंगा कि पंजाब में उसे बुझाने तथा तुझे पीने को पानी तक नहीं मिलेगा। व् गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को चुनौती देते हुए लिखा, 'मैं इस युद्ध के मैदान में अकेला आऊंगा। तुम दो घुड़सवारों को अपने साथ लेकर आना।' फिर लिखा, व्क्या हुआ (परवाह नहीं) अगर मेरे चार बच्चे (अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह, जोरावर सिंह) मारे गये, पर कुंडली मारे डंसने वाला नाग अभी बाकी है।'
 
गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को इतिहास से सीख लेने की सलाह देते हुए लिखा, 'सिकंदर और शेरशाह कहां हैं? आज तैमूर कहां है, बाबर कहां है, हुमायूं कहां है, अकबर कहां है?' उन्होंने पुन: औरंगजेब को ललकारते हुए लिखा, 'अगर[] (तू) कमजोरों पर जुल्म करता है, उन्हें सताता है, तो कसम है कि एक दिन आरे से चिरवा दूंगा।' इसके साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने युद्ध तथा शांति के बारे में अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए लिखा, 'जब सभी प्रयास किये गये हों, न्याय का मार्ग अवरुद्ध हो, तब तलवार उठाना सही है तथा युद्ध करना उचित है।' और अंत के पद में ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा, 'शत्रु भले हमसे हजार तरह से शत्रुता करे, पर जिनका विश्वास ईश्वर पर है, उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।'
 
वस्तुत: गुरु गोविंद सिंह का जफरनामा केवल एक पत्र नहीं बल्कि एक वीर का काव्य है, जो भारतीय जनमानस की भावनाओं का द्योतक है। अतीत से वर्तमान तक न जाने कितने ही देशभक्तों ने उनके इस पत्र से प्रेरणा ली है। गुरु गोविंद सिंह के व्यक्तित्व तथा कृतित्व की झलक उनके जफरनामा से प्रकट होती है। उनका यह पत्र संधि नहीं, युद्ध का आह्वान है। साथ ही शांति, धर्मरक्षा, आस्था तथा आत्मविश्वास का परिचायक है। उनका यह पत्र पीड़ित, हताश, निराश तथा चेतनाशून्य समाज में नवजीवन तथा गौरवानुभूति का संचार करने वाला है। यह पत्र अत्याचारी औरंगजेब के कुकृत्यों पर नैतिक तथा आध्यात्मिक विजय का परिचायक है।