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भोजपुरी-मैथिली-हिन्दी
 
परिचय दास
 
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परिचय दास
DR. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव
'परिचय दास'
 
- जीवनवृत्तांत
 
DR. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव
'परिचय दास'
था: सचिव *
हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार (2009-22.6.2012)
 
सचिव, * मैथिली - भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार.
Samudaay भवन, पदम नगर, किशनगंज,
दिल्ली 110007-(2008-22.6.2012)
 
(* सचिव: प्रधान कार्यकारी / संगठन, हिंदी अकादमी और मैथिली - भोजपुरी अकादमी के सदस्य सचिव के अधिकारी प्रमुख)
 
वर्तमान में:
सी. संपादक (हिंदी)
सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण के लिए केन्द्र (CCRT)
(संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार.)
नई दिल्ली. (तारीख +१९९५ तक)
 
और
 
मानद प्रोफेसर (हिंदी और भारतीय कला संस्कृति), पीएच.डी. गाइड (रिसर्च),
Subharati विश्वविद्यालय, मेरठ.
 
योग्यता: एमए, पीएचडी (fgUnh dfork esa uxjh, तू, FkkFkZ समाजशास्त्र, इतिहास और हिंदी कविता में कला)
 
डी. लिट (नहीं) प्रस्तुत (पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च :: सांस्कृतिक नृविज्ञान)
 
आवासीय: 76, दीन, एपार्टमेंट्स
पता सेक्टर 4, द्वारका,
नई दिल्ली - 110,078
फोन 011 +२,५०,७५,२५२
मोबाइल - 9968269237
Website-kavitachaturthi/parichay दास
E.mail - parichaydass @ rediffmail.com
asianwriter@rediffmail.com
 
Brith की तारीख: 1 मार्च, 1964
 
• मेरा जैव फोटोग्राफी और लेखन एमए (भोजपुरी) भारत में दो विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष के पाठ्यक्रम में हैं.
 
काठमांडू में भोजपुरी पर वितरित (नेपाल) 2012 फ़रवरी में व्याख्यान. कार्यक्रम साहित्य अकादमी (भारत और नेपाल अकादमी (नेपाल की सरकार) संयुक्त रूप से सरकार द्वारा आयोजित किया गया था.
 
सार्क सम्मेलन, दिल्ली (2011) में कविताओं का पाठ किया.
 
कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए नोडल अधिकारी (दिल्ली सरकार) था.
 
• अध्यक्ष हिन्दी पुस्तक Kray समिति, दिल्ली सरकार (2011) थी.
 
• सदस्य हिन्दी पुस्तक Kray समिति, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, सरकार थी. भारत का.
 
• हिंदी पत्रिका "इंद्र Prasth भारती" (हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार) और Mathili भोजपुरी पत्रिका "Parichhan" (Mathili - भोजपुरी Ackedmy, दिल्ली सरकार) के संपादक के संपादक थे.
 
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के योग्य राष्ट्रीय शिक्षा परीक्षा (नेट)
डॉक्टरेट रिसर्च में वरिष्ठ रिसर्च फैलो (यूजीसी).
 
• एक पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च स्कॉलर (आगरा विश्वविद्यालय)
 
• हिंदी एवं संस्कृति विभाग में पीएचडी गाइड. Subharati विश्वविद्यालय, मेरठ में
 
दिल्ली सरकार के बीच सह - ordinater था. और भारत के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए सरकार कॉमनवेल्थ खेलों के बारे में, 2010
 
• 'थारू जनजातियों' (सांस्कृतिक anthropoligical दृश्य) पर एक किताब लिखी
 
• साहित्य, संस्कृति, और खबर के संवर्धन के कार्य की ओर योगदान निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है:
 
1. क्रिएटिव writingBooks
2. संपादन और महत्वपूर्ण literarycultural textnews पत्रिका का प्रकाशन.
3. विभिन्न विषयों / कविता सस्वर पाठ पर सत्संग और व्याख्यान (वर्तमान) देते
4. आयोजन अभिनव घटनाओं और गतिविधियों के बारे में एक बढ़ाने awarenesscreation के लिए और भारत के लिए सम्मान के साथ अमीर culturalliterary विरासत है.
5. समाचार गहराई से विश्लेषण कर सकते हैं.
6. राजनीतिक और सामाजिक खबर में नया आयाम दिया है.
7. संपादित politicalcultural पत्रिकाओं.
 
अनुवाद
• 9 काव्य पुस्तकों जैव lingually भोजपुरी - हिन्दी में प्रकाशित किया है.
हिन्दी में कुछ कविताएँ और अंग्रेजी से डॉ. सीताकांत महापात्र की निबंध अनुवाद और भोजपुरी डा. इंदिरा गोस्वामी, डॉ. शोभना नारायण, रीको ली और अन्य लेखकों के निबंध का अनुवाद.
हिन्दी में भोजपुरी से थारू लोक गीतों का अनुवाद.
 
क्रिएटिव WritingsBooks
 
• थारू जनजातियों की सांस्कृतिक परंपराओं को ': एक (उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के लिए.)
• भारत के लोक थिएटर दो संस्करणों (संस्कृति संसाधन और प्रशिक्षण के लिए केंद्र के लिए)
• शहरी समकालीन हिन्दी कविता में जीवन की वास्तविकता (आलोचना अनुसंधान)
• Sarveshwar दयाल सक्सेना कविता (आलोचना) में लोक चेतना
• Dhoosar panduilipi (भोजपुरी में व्यक्तिगत और सांस्कृतिक निबंध, हिन्दी में अनुवाद)
• Kyonki कविता संस्कृति की shabd लिपि है
• Hamaraa Aigo कबिता likhe के मिमियाना (भोजपुरी में कविताएं)
• shabd, कबिता, संस्कृति (वर्ड, काव्य, संस्कृति: भोजपुरी में कविताएं)
• Katton na hahakar (भोजपुरी में कविताएं)
• एक नया vinyas (भोजपुरी - हिंदी में कविताएं)
• Charuta (भोजपुरी - हिंदी में कविताएं)
• पृथ्वी से रास Leke (भोजपुरी - हिंदी में कविताएं)
• Yugpat Sameekaran मुझे (भोजपुरी - हिंदी में कविताएं)
• आकांक्षा से adhik satvar (हिंदी - भोजपुरी में कविता)
• संसद भवन की छत बराबर khada होक (हिंदी - भोजपुरी में कविता)
• कविता - चतुर्थी (हिंदी - भोजपुरी में कविता)
• Dhoosar कविता (हिंदी - भोजपुरी में कविता)
 
मुद्रण के तहत:
• 3 काव्य संग्रह:
1. Vayah संधि की chatak रेखा
2. Asahamati से vilgav नही
3. Agle samay की कविता
 
• साहित्य, कला / / सौंदर्य पर पुस्तकें:
1. संस्कृति और सौंदर्यशास्त्र
2. साहित्य और कला
3. तुलनात्मक साहित्य
4. लोक संस्कृति / साहित्य (थारू जनजातियों की लोक गीतों)
5. एशियाई साहित्यिक आलोचना और सौंदर्यशास्त्र
6. साहित्य के Culturality
7. संस्कृति और कला का समाजशास्त्र
8. भोजपुरी संस्कृति
 
• संपादित / पाठ संपादित पुस्तकें / Folios
निबंध लेखक, मानवविज्ञानी, सांस्कृतिक विचारक, Idiologist, Manushyata की भाषा का marm (डॉ. सीताकांत महापात्र, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता और प्रख्यात उड़िया लेखक के लेखन पर रचनात्मक आलोचना), डॉ. सीताकांत महापात्र एक कवि, आलोचक है.
 
डा. महापात्र यूनेस्को एशियाई क्षेत्र के सांस्कृतिक अध्याय के राष्ट्रपति थे. डा. महापात्र भारत में एक सिविल सेवक था. संस्कृति मंत्रालय में सचिव और राजभाषा विभाग, भारत सरकार का था. भारत का. वह भी मुख्यमंत्री, ओडिशा सरकार के सचिव थे.
 
• विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थलों (4 संस्करणों)
• सांस्कृतिक इतिहास (3 वॉल्यूम)
• नागरिकों चिह्न (भारत के)
• संस्कृति और विकास
• तीर्थ राज प्रयाग
• किलों और भारत का स्थान
• किलों और राजस्थान के स्थानों
• किलों और महाराष्ट्र स्थल
• भरत नाट्यम नृत्य
• कथक नृत्य
• ओडिसी नृत्य
• मणिपुरी नृत्य
• कुचिपुड़ी नृत्य
• भारत के साज़ (2 मात्रा)
• भारत की वास्तुकला
• वस्त्र डिजाइन (2 मात्रा)
 
संपादित / पाठ संपादित पत्रिका
• इंद्रप्रस्थ (हिन्दी साहित्यिक और सांस्कृतिक हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा प्रकाशित पत्रिका Bharti
• Srotasvini
(CCRT द्वारा प्रकाशित साहित्यिक - सांस्कृतिक पत्रिका, भारत सरकार.)
• Saamskritiki
(साहित्यिक - सांस्कृतिक पत्रिका, भारत के CCRT सरकार द्वारा प्रकाशित किया है.)
• प्रद्न्य
(एक सामाजिक - सांस्कृतिक, राजनीतिक पत्रिका)
• Parichhan (मैथिली - भोजपुरी अकादमी द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका, दिल्ली)
 
वर्तमान सत्संग और व्याख्यान / काव्य सस्वर पाठ देते
सार्क साहित्यिक त्योहार में काव्य सस्वर पाठ, दिल्ली (2011)
• Saahiya और Samskriti का एटीएम Saundarya (सितम्बर, 2006, भारतीय व्यापार अकादमी, ग्रेटर नोएडा)
• Bhoomandalikaran samskriti - साहित्य और (अक्तूबर, 2007, भारतीय व्यापार अकादमी, ग्रेटर नोएडा)
• Bhoomandalikaran, Vishwabandhutva साहित्य Samskriti और ​​(दिसम्बर, 2007, भारतीय व्यापार अकादमी, ग्रेटर नोएडा)
• साहित्य और संस्कृति (Kandriya Sachivalay हिंदी समिति)
• दिल्ली में 50 अन्य व्याख्यान
 
आयोजन घटनाओं और गतिविधियों: सांस्कृतिक कार्यक्रम
हिन्दी और मैथिली भोजपुरी अकादमी, दिल्ली, भारत सरकार के लिए 100 सांस्कृतिक गतिविधियों आदि (साहित्य, कला, संस्कृति) / / नाटक नृत्य) ऊपर संगठित है.
• संस्कृति और विकास
• हिन्दी: समकालीन दृश्य
 
पुरस्कार
• भारतीय दलित साहित्य संस्कृति के लिए Sahiya अकादमी पुरस्कार
• श्याम नारायण पांडे सम्मान
• चतुर्वेदी सम्मान
• संपादक की पसंद पुरस्कार
• भोजपुरी कीर्ति सम्मान
रोटरी क्लब पुरस्कार आदि
• Dwivaageesh पुरस्कार
 
जन - सेवा
अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक - शैक्षिक विकास के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश राज्य अमेरिका (भारत) और नेपाल के थारू जनजातियों के समुदाय में.
 
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parichay das
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DR. RAVINDRA NATH SRIVASTAVA
‘PARICHAY DAS’
 
Biodata
 
DR. RAVINDRA NATH SRIVASTAVA
‘PARICHAY DAS’
Was : Secretary,*
Hindi Academy, Delhi Government (2009-22.6.2012 )
 
Secretary,* Maithili-Bhojpuri Academy, Delhi Govt.
Samudaay Bhavan, Padam Nagar, Kishanganj,
Delhi-110007 (2008-22.6.2012)
 
(*Secretary : Principal Executive Officer/Head of the Organization, Member –secretary of Hindi Academy and Maithili-Bhojpuri Academy )
 
Currently :
C. Editor (Hindi)
Centre for Cultural Resources and Training (CCRT)
(Ministry of Culture, Govt. of India)
New Delhi. (1995-till date )
 
and
 
Hony Professor (Hindi and Indian Art Culture), Ph.d. (Research) guide,
Subharati University, Meerut.
 
Qualifications : M.A., Ph. d (fgUnh dfork esa uxjh; thou ;FkkFkZ Sociology, History and Art in Hindi poetry)
 
D.Litt (not Submitted) (Post Doctoral Research : :fgUnh miU;klksa esa nfyr psruk Cultural Anthropology)
 
Residential : 137, Din Apartments,
Address Sector-4, Dwarka,
New Delhi-110078
Phone-011-25075252
Mobile-9968269237
Website-kavitachaturthi/parichay das
E.mail-parichaydass@rediffmail.com
asianwriter@rediffmail.com
 
Date of Brith : 1st March, 1964
 
• My bio-graphy and writings are in M.A. (Bhojpuri) final year curriculum in two Universities in India.
 
• Delivered lecture on Bhojpuri in Kathmandu (Nepal) in Feb. 2012. The programme was organized by Sahitya Akademi (Government of India and Nepal Academy (Govt. of Nepal) jointly.
 
• Recited poems in SAARC conference, Delhi (2011).
 
• Was Nodal Officer (Delhi Government) for Cultural programmes during Common Wealth Games .
 
• Was Chairman Hindi Pustak Kray Samiti, Delhi Government (2011).
 
• Was member Hindi Pustak Kray Samiti, Delhi Public Library, Govt. of India.
 
• Was Editor of Hindi magazine “Indra Prasth Bharti” (Hindi Academy, Delhi Government) and Editor of Mathili-Bhojpuri magazine “Parichhan” (Mathili – Bhojpuri Ackedmy, Delhi Government).
 
• Qualified National Education Test (N.E.T.) of U.G.C.
Was Senior Research Fellow (UGC) in Doctoral Research.
 
• Was a post Doctoral Research Scholar (Agra University)
 
• Ph.D guide in Hindi & Culture Deptt. in Subharati University, Meerut
 
• Was Co-ordinater between Delhi Govt. & Govt of India for Cultural programmes regarding Common Wealth Games, 2010
 
• Written a book on ‘Tharu Tribes’ (a Cultural anthropoligical view)
 
• Contributions toward the task of promotion of literature, culture and news can be presented under the following headings:
 
1. Creative writingBooks
2. Editing and Publishing of important literarycultural textnews magazine.
3. Giving Discourses and lectures (Current) on different subjects/poetry Recitation
4. Organizing innovative events and activities with a view to enhancing awarenesscreation about and respect for India is rich culturalliterary heritage.
5. Can analyse News deeply.
6. Has new Dimension in political and social news.
7. Edited politicalcultural magazines.
 
Translation
• Published 9 poetry books bio-Lingually in Bhojpuri- Hindi.
• Translated some poems and essays of Dr. Sitakant Mahapatra from English into Hindi and Bhojpuri Translated essays of Dr. Indira Goswami, Dr. Shobhna Narayan, Rico Lee and Other Writers.
• Translated Tharu folk songs from Bhojpuri into Hindi.
 
Creative WritingsBooks
 
• ‘Cultural traditions of tharu tribes’: a (for North Zone cultural centre, Ministry of Culture, Govt. of India.)
• Folk theatre of India two volumes (for Centre for Culture Resources and Training)
• Urban life-reality in contemporary Hindi poetry (criticism, research)
• Folk consciousness in Sarveshwar Dayal Saxena poetry (criticism)
• Dhoosar panduilipi (personal and cultural essays in Bhojpuri, translated into Hindi)
• Kyonki Kavita sanskriti ki shabd lipi hai
• Hamaraa Aigo Kabita likhe ke baa (Poems in Bhojpuri)
• Shabd, Kabita, Sanskriti (Word, Poetry, Culture : Poems in Bhojpuri)
• Katton na hahakar (Poems in Bhojpuri)
• Ek naya vinyas (Poems in Bhojpuri-Hindi)
• Charuta (Poems in Bhojpuri-Hindi)
• Prithvi se ras leke (Poems in Bhojpuri-Hindi)
• Yugpat Sameekaran me (Poems in Bhojpuri-Hindi)
• Akanksha se adhik satvar (poems in Hindi-Bhojpuri)
• Sansad Bhavan ki Chhat par khada hoke (poems in Hindi-Bhojpuri)
• Kavita-Chaturthi (poems in Hindi-Bhojpuri)
• Dhoosar Kavita (poems in Hindi-Bhojpuri)
 
Under printing :
• 3 Poetry Collections:
1. Vayah Sandhi ki chatak rekha
2. Asahamati se vilgav nahi
3. Agle samay ki kavita
 
• Books on Literature/Art/Aesthetics:
1. Culture and Aesthetics
2. Literature and art
3. Comparative Literature
4. Folk Culture/Literature (Folk songs of tharu tribes)
5. Asian Literary Criticism and aesthetics
6. Culturality of Literature
7. Sociology of Culture and Art
8. Bhojpuri Culture
 
• Edited/Text-edited books/Folios
Manushyata ki bhasha ka marm (Creative criticism on the writing of Dr. Sitakant Mahapatra, Jnanpith Award winner and eminent Oriya Writer), Dr. Sitakant Mahapatra is a poet, critic; Essay-writer, Anthropologist, Cultural-Thinker, Idiologist.
 
Dr. Mahapatra was a President of Cultural Chapter of UNESCO Asian Region. Dr. Mahapatra was a civil servant in India. was Secretary in Ministry of Culture, and Department of Official Language, Govt. of India. He was also Secretary to the Chief Minister, Govt of Odisha.
 
• World Cultural Heritage sites (4 volumes)
• Cultural History (3 Volumes)
• Nationals Symbols (of India)
• Culture and development
• Tirth Raj Prayag
• Forts and Places of India
• Forts and Places of Rajasthan
• Forts and Places of Maharashtra
• Bharat Natyam Dance
• Kathak Dance
• Odissi Dance
• Manipuri Dance
• Kuchipudi Dance
• Musical Instrument of India (2 Volumes)
• Architecture of India
• Textile Designs (2 Volumes)
 
Edited/Text Edited Magazines
• Indraprastha Bharti (Hindi literary and Cultural Magazine published by Hindi Academy, Delhi
• Srotasvini
(Literary-Cultural Magazine, Published by CCRT, Govt. of India)
• Saamskritiki
(Literary-Cultural Magazine, Published by CCRT Govt. of India)
• Pradnya
(A Socio-Cultural, Political Magazine)
• Parichhan (Literary Magazine published by Maithili-Bhojpuri Academy, Delhi)
 
Giving Current Discourses and Lectures/ Poetry Recitation
• Poetry Recitation in SAARC literary festival, Delhi (2011)
• Saahiya aur Samskriti ka Atm Saundarya (September, 2006, Indian Business Academy, Greater Noida)
• Bhoomandalikaran aur samskriti-Sahitya (October, 2007, Indian Business Academy, Greater Noida)
• Bhoomandalikaran, Vishwabandhutva aur Sahitya-Samskriti (December, 2007, Indian Business Academy, Greater Noida)
• Literature and Culture (Kandriya Sachivalay hindi Samiti)
• 50 other lectures in Delhi
 
Organising Events and Activities: Cultural Programmes
• Organised above 100 Cultural Activities (literature,art,Culture)/Drama/dance etc.)for Hindi and Maithili-Bhojpuri Academy, Delhi, Govt.
• Culture and Development
• Hindi : Contemporary Scene
 
Awards
• Bhartiya Dalit Sahiya Academy Award for Literature-Culture
• Shyam Narayan Pandey Samman
• Chaturvedi Samman
• Editor’s Choice Award
• Bhojpuri Kirti Samman
• Rotary Club Award etc
• Dwivaageesh Puraskar
 
Public Service
In community of Tharu Tribes of Bihar, Uttar Pradesh States (India) and Nepal for their Cultural and Socio-educational-development.
 
 
 
 
साहित्य की गति का आधार लोक संस्कृति
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PARICHAY DAS ka lekh / Rashtriy Sahara /10 feb, 2013
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विमर्श/ परिचय दास
 
लोक में जो संकेत, आत्मीय रचाव और सहज संचरणशीलता है, वह अति आधुनिकता में भी स्वीकार्य है, बल्कि बहु उपयोगी है। लोक-रचनात्मकता का विशिष्ट आधारपरक कार्य लोककला की कलात्मक एकता है। अतीत का उपयोग वर्तमान की आलोचना के बिना संभव नहीं। बिना आकांक्षा के न तो जीवन जिया जा सकता है और न ही कविता या साहित्य की रचना संभव है
 
ससमकालीन साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण है स्मृतियों का साक्ष्य। स्मृतियां समकालीनता के विविध उपकरणों के समाहार से असंबद्ध नहीं रह सकतीं। हालांकि तार्किकता, परिवर्तनधर्मिता, शिल्प वैशिष्ट्य, गद्यपरकता इत्यादि संश्लिष्टताओं से आकार ग्रहण करता समकालीन साहित्य स्मृतिविहीन नहीं हो सकता फिर भी लोकोन्मुखता लगातार क्षीण होती गई है। स्थानीयता का पुट विविध रंगों के साथ जैसे उभरने चाहिए, उसमें कमी आती दिख रही है। मौजूदा परिदृश्य में इधर हिन्दी साहित्य में किसान की शक्ति व आभा लगभग नहीं देखने को मिली है या कहें कि प्रभावान्विति परिलक्षित नहीं हुई। कुछ कवियों व उपन्यासकारों ने मौखिक परंपराओं व धरती के उन्मुखीकरण को आधार बनाने का यत्न किया है तो कुछ लोक को नए सिरे से समझ कर लाना चाहते हैं। कुछ कला और समुदाय के बीच के संबंधों से काम करते हैं तो कुछ लोकप्रिय रूपों व ध्वनियों के आधार पर। कुछ सामाजिक आवेग को लोक संस्कृति में समंजन करके नई भाषा रच रहे हैं तो कुछ काव्य-अभ्यास से लोक कविता की संभावनाओं के लिए नई सदी में नए दृष्टिकोण से सक्रिय हैं। लोक संस्कृति की प्रमुख आधार प्रकृति महानगरों से जैसे ओझल हुई है, उससे लेखन-सूत्र की दशा बदल गई है। प्रकृति, नदी, पर्यावरण में जैसी स्मृतियां रही हैं तथा साहित्य की धारा का जैसे गोमुख रहा है, नगरीकरण की स्थिति के चलते (अब हिन्दी साहित्य भी नगरीकरण का प्रतीक होने लगा है) स्वप्न के संदर्भ बदल गए हैं। यह सारा स्वप्न छंदमुक्तता की प्रयोजनता और वाक्यांशों की विविधताओं से भी पता चलता है। लोक की रुचियों व अनेक जड़ताओं को साहित्य में जायज नहीं ठहराया जाना चाहिए, लेकिन उसकी तरलता या प्रवाहमयता या सुगंध का खोना स्मृति-रहित होने जैसा ही है। साहित्य का नगरीकृत होना एक फेज है, लेकिन पारंपरिक अनुगूंजों से वंचित होना दूसरी बात। स्थानीयता के कई तरह के खतरे भी हैं किंतु उसकी अलग आभा उसकी शक्ति भी है। प्रौद्योगिकी को स्थानीयता में खास व्यवहार मिलता है। साहित्य में स्थानीय संस्कृति को रचना एक खास सम्मोहन को शब्द देना है। उस सम्मोहन में एक गति भी होती है। कलात्मक प्रासंगिकता का दृश्यात्मकता व सांगीतिक अनुगूंजों से विशिष्ट संबंध है। इसीलिए लोक में जो दृश्यबंध आते हैं, उन्हें साहित्य में एक आकार दिया जा सकता है। यह अलग बात है कि समकालीनता के तनावों व लोक के समंजन का आधार क्या बनेगा या बनना चाहिए, यह विचार व अनुप्रयोग का विषय है। नए-नए विषयों को उठाते हुए भी मिथक व लोक का समकालीनीकरण संभव है। कथा व कविता में तो यह विशिष्ट आकार ले ही सकता है। यदि नगरीय जीवन की संपृक्ति में लोक कविता की मूर्धन्यता को समझा जाए तो कुछ अनुभव एकत्र किए जा सकते हैं। उससे प्रस्तुति व शैली में निश्चित भिन्नताएं आएंगी। लोक संगीत के लिए ‘यू टय़ूब’ के रूप में एक नया आधार मिला है। सामूहिक कलात्मक गतिविधि, सामाजिक काम, रोजमर्रा की जिंदगी, जीवन व प्रकृति के ज्ञान, धार्मिक प्रथाओं और विश्वासों को साहित्य में ढाल पाना इकहरा कार्य नहीं। लोक-रचनात्मकता का विशिष्ट आधारपरक कार्य लोककला की कलात्मक एकता है। लोक कला समाज के निचले तबके की आवश्यकताओं की उपस्थितियों के लिए निर्मित होती है। इसमें एक तरह का घरेलूपन है। चाहें तो उसकी ‘पुरातनता’ में एक नवाचार भी ला दें। कविता में पुरातनता में नवसंघनन उसका महत्वपूर्ण पक्ष है। लोक में जो संकेत, आत्मीय रचाव और सहज संचरणशीलता है, वह अति आधुनिकता में भी स्वीकार्य है, बल्कि बहु उपयोगी। अतीत का उपयोग वर्तमान की आलोचना के बिना संभव नहीं। बिना आकांक्षा न तो जीवन जिया जा सकता है और न ही कविता या साहित्य की रचना संभव है। लोक को सस्ते फैशन परस्ती के रास्ते पर ले जाने, उसे उपभोक्तावादी सिस्टम में खपाने और तदनुकूल साहित्य के सरलीकरण को स्तरहीनतापूर्वक बल देने की भी कोशिशें जारी हैं। यह ऐसा प्रश्न है जो हमारे मानसतंत्र को बहुत बारीकी से झकझोरता है। जो लोकगीत अपने एक आम अतीत की रचनात्मक अभिव्यक्ति व समकालीन चेतना से जुड़ा है, उसे बाजार की इच्छाओं की झोंक में सौंपा जा रहा है। बाजार से सहयोग लेना बुरा नहीं, बाजार में जाना भी सहज है, किंतु उसके तंत्र का अनुकत्र्ता मात्र हो जाना मानवीय गरिमा के विरुद्ध है। जबकि साहित्य और लोक के अंतर्सबंध किसी भी अन्य अनुशासन की तरह हमें स्वयं को बेहतर और दूसरों को समझने के लिए सक्षम बनाते हैं। सारा मनोविज्ञान व समाजशास्त्र लोक संदभरे में उपलब्ध हैं। यदि ऐसा न होता तो रामायण व महाभारत शास्त्र से लोक न बन जाते। जब हम आंख खोलते हैं तथा स्मृति-संपन्न होते हैं तो भारतीय समाजों में रामायण व महाभारत को सुनकर अपनी स्मृति को धरती पर उतार लेते हैं। लोक संस्कृति के आत्मीय संचरण को समकालीन साहित्य में मानव अभिव्यक्ति के जबर्दस्त स्पेक्ट्रम की तरह लिया जाना चाहिए। लोक कला पारंपरिक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के माध्यम से सामूहिक कथन है, जीवन के साझे मार्ग पर गुजरना है, जिसमें सौंदर्य, अस्मिता व मूल्यों की अभिव्यक्ति हो सके। वह साहित्य व भाषा में उतरती है तो जीवंत सांस्कृतिक विरासत होती है जो अतीत व वर्तमान के मध्य सेतु होती है। साहित्य में समकाल व लोक संस्कृति को स्थिर न समझें, बल्कि युगानुकूल उसका स्वीकरण होता रहता है। मछली, वृक्ष, हवा, खिलौना, घर, गाय, पुष्प, पत्ते इत्यादि ऐसे आलंबन हैं जो अपने साथ हमारी स्मृति लिये रहते हैं। संरक्षण, प्रक्रिया, उपकरण, सामग्री, डिजाइन, रूपांकन- सभी में एक परंपरा है। यही साहित्य में, आज के साहित्य में भी परिलक्षित होता है। ये साहित्य की परंपरा को जीवित रखने, बहुश्रुत बनाने, संबद्ध रखने, स्मृति संपन्न रखने और रचनात्मक होने को आधार देते हैं। लोक संस्कृति से कविता में विशिष्ट गतिमयता मिल सकती है, क्योंकि स्मृति, संकेत, स्वजनता,आत्मीयता से भिन्न गतिशास्त्र बनाया जा सकता है। यह एक सापेक्षता चुनती है जो कविता की धार है। इसमें सद्भाव व स्वतंत्रता है। वैयक्तिक सम्मान, लोक कल्याण की जगह सृजनात्मकता व सहित का समाहार इसमें हैं जो समकालीन साहित्य के लिए भी अपेक्षित है।
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