"राजनयिक दूत": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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मध्यकालीन यूरोप में दूतों की वरिष्ठता और पौर्वांपर्यक्रम के प्रश्नों पर बहुधा विवाद होता था अतएव [[वियना कांग्रेस|वियेना की कांग्रेस]] ने 1815 में दूतों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया। 1818 में एक्स-ला-शैपल की कांग्रेस ने एक चौथी श्रेणी जोड़ दी। तदनुसार वरिष्ठता के क्रम से दूतों के चार वर्ग हैं-
*(1) राजदूत (Ambassadors),
*(2) पूर्णशक्तियुक्त महादूत तथा असाधारण दूत (Ministers Plenipotentiory & Envoys extraordinary), ▼
*(3) निवासीमंत्री (Ministers Resdent), ▼
*(4) कार्यभारवाहक (Charges de' affaires)। ▼
औपचारिकता एवं शिष्टचार के अतिरिक्त इस वर्गीकरण का अब कोई महत्व नहीं है। [[राष्ट्रमंडल]] के सदस्य राष्ट्रों के बीच परस्पर भेजे जानेवाले दूत '[[उच्चायुक्त]]' कहे जाते हैं।▼
▲(2) पूर्णशक्तियुक्त महादूत तथा असाधारण दूत (Ministers Plenipotentiory & Envoys extraordinary),
▲(3) निवासीमंत्री (Ministers Resdent),
▲(4) कार्यभारवाहक (Charges de' affaires)।
▲औपचारिकता एवं शिष्टचार के अतिरिक्त इस वर्गीकरण का अब कोई महत्व नहीं है। राष्ट्रमंडल के सदस्य राष्ट्रों के बीच परस्पर भेजे जानेवाले दूत '[[उच्चायुक्त]]' कहे जाते हैं।
एक राष्ट्र में स्थित विदेशों के राजनयिक दूतों के समूह को 'राजनयिक निकाय' (Diplomatic corps) कहते हैं। इसमें वरिष्ठतम दूत को 'दूतशिरोमणि' (Doyen) कहते हैं। राजनयिक निकाय दूतों के सम्मान एवं उन्मुक्तियों के पालन का ध्यान रखता है।
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