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[[चित्र:0405.AnnabellProstitute 002tj.jpg|thumb|जर्मन[[टियुआना]], [[मेक्सिको]] में वेश्या समकालीन.में]]
अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर [[यौनसंबंधयौन संबंध]] '''वेश्यावृत्ति''' कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौनसंबंधों का एक प्रमुख अंग है। विधान एवं परंपरा के अनुसार वेश्यावृत्ति उपस्त्री सहवास, [[परस्त्रीगमन]] एवं अन्य अनियमित [[वासना|वासनापूर्ण]] संबंधों से भिन्न होती है। संस्कृत कोशों में यह वृत्ति अपनाने वाले स्त्रियों के लिए विभिन्न संज्ञाएँ दी गई हैं। [[वेश्या]], रूपाजीवा, पण्यस्त्री, गणिका, वारवधू, लोकांगना, नर्तकी आदि की गुण एवं व्यवसायपरक अमिघा है - 'वेशं (बाजार) आजोवो यस्या: सा वेश्या' (जिसकी आजीविका में बाजार हेतु हो, 'गणयति इति गणिका' (रुपया गिननेवाली), 'रूपं आजीवो यस्या: सा रूपाजीवा' (सौंदर्य ही जिसकी आजीविका का कारण हो); पण्यस्त्री - 'पण्यै: क्रोता स्त्री' (जिसे रुपया देकर आत्मतुष्टि के लिए क्रय कर लिया गया हो)।
[[चित्र:Prostitution in Asia.PNG|thumb|right|300px| {{legend|#336600|वेश्यावृत्ति कानूनी और विनियमित}} {{legend|#336699|(पैसे के लिए सेक्स की मुद्रा) कानूनी वेश्यावृत्ति, लेकिन वेश्यालयों अवैध हैं, वेश्यावृत्ति है''नहीं''विनियमित}} {{legend|#993333|अवैध वेश्यावृत्ति}} {{legend|#ababab|कोई डेटा नहीं}}</small>]]
 
अर्थलाभ के लिए स्थापित संकर [[यौनसंबंध]] '''वेश्यावृत्ति''' कहलाता है। इसमें उस भावनात्मक तत्व का अभाव होता है जो अधिकांश यौनसंबंधों का एक प्रमुख अंग है। विधान एवं परंपरा के अनुसार वेश्यावृत्ति उपस्त्री सहवास, [[परस्त्रीगमन]] एवं अन्य अनियमित [[वासना|वासनापूर्ण]] संबंधों से भिन्न होती है। संस्कृत कोशों में यह वृत्ति अपनाने वाले स्त्रियों के लिए विभिन्न संज्ञाएँ दी गई हैं। [[वेश्या]], रूपाजीवा, पण्यस्त्री, गणिका, वारवधू, लोकांगना, नर्तकी आदि की गुण एवं व्यवसायपरक अमिघा है - 'वेशं (बाजार) आजोवो यस्या: सा वेश्या' (जिसकी आजीविका में बाजार हेतु हो, 'गणयति इति गणिका' (रुपया गिननेवाली), 'रूपं आजीवो यस्या: सा रूपाजीवा' (सौंदर्य ही जिसकी आजीविका का कारण हो); पण्यस्त्री - 'पण्यै: क्रोता स्त्री' (जिसे रुपया देकर आत्मतुष्टि के लिए क्रय कर लिया गया हो)।
 
== इतिहास ==
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=== प्राचीन भारत ===
[[चित्र:Prostitute tj.jpg|thumb|वेश्या में [[टियुआना]] में [[मेक्सिको]].]]
[[वेद|वेदों]] के दीर्घतमा [[ऋषि]], [[पुराण|पुराणों]] की [[अप्सरा|अप्सराएँ]], आर्ष काव्यों, [[रामायण]] एवं [[महाभारत]] की शताधिक [[उपकथा|उपकथाएँ]] [[मनु]], [[याज्ञवल्क्य]], [[नारद]] आदि स्मृतियों का आदिष्ट कथन, [[तंत्र|तंत्रों]] एवं गुह्य साधनाओं की शक्तिस्थानीया रूपसी कामिनियाँ, उत्सवविशेष की शोभायात्रा में आगे-आगे अपना प्रदर्शन करती हुई नर्तकियाँ किसी न किसी रूप में प्राचीन भारतीय समाज में सदैव अपना सम्मानित स्थान प्राप्त करती रही है। [[दशकुमारचरित]], [[कालिदास]] की रचनाएँ, [[समयमातृका]], [[दामोदर गुप्त]] का [[कुट्टनीमतम्]] आदि ग्रंथों में वीरांगनाओं का अतिरंजित वर्णन मिलता है। [[कौटिल्य]] [[अर्थशास्त्र]] ने इन्हें [[राजतंत्र]] का अविच्छिन्न अंग माना है तथा एक सहस्र पण वार्षिक शुल्क पर प्रधान गणिका की नियुक्ति का आदेश दिया है। महानिर्वाणतंत्र में तो तीर्थस्थानों में भी देवचक्र के समारंभ में शक्तिस्वरूपा वेश्याओं को सिद्धि के लिए आवश्यक माना है। वे राजवेश्या, नागरी, [[गुप्तवेश्या]], [[ब्रह्मवेश्या]] तथा [[देववेश्या]] के रूप में पंचवेश्या हैं। स्पष्ट है कि समाज का कोई अंग एवं इतिहास का कोई काल इनसे विहीन नहीं था। इनके विकास का इतिहास समाजविकास का इतिहास है। त्रिवर्ग ([[धर्म]], [[अर्थ]], [[काम]]) की सिद्धि में ये सदैव उपस्थित रही हैं। वैदिक काल की अप्सराएँ और गणिकाएँ [[मध्ययुग]] में [[देवदासी|देवदासियाँ]] और नगरवधुएँ तथा मुसलिम काल में वारांगनाएँ और वेश्याएँ बन गर्इं। प्रारंभ में ये धर्म से संबद्ध थीं और [[चौसठ कलाएँ|चौसठों कलाओं]] में निपुण मानी जाती थीं। मध्युग में सामंतवाद की प्रगति के साथ इनका पृथक् वर्ग बनता गया और कलाप्रियता के साथ कामवासना संबद्ध हो गर्इं, पर यौनसंबंध सीमित और संयत था। कालांतर में [[नृत्यकला]], [[संगीतकला]] एवं सीमित यौनसंबंध द्वारा जीविकोपार्जन में असमर्थ वेश्याओं को बाध्य होकर अपनी जीविका हेतु लज्जा तथा संकोच को त्याग कर अश्लीलता के उस पर उतरना पड़ा जहाँ पशुता प्रबल है।
 
== वेश्यावृति के कारण ==
आधुनिक युग में स्त्रियों को वेश्यावृत्ति की ओर प्रेरित करनेवाले प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
[[चित्र:Prostitution in Asia.PNG|thumb|right|300px| {{legend|#336600|वेश्यावृत्ति कानूनी और विनियमित}} {{legend|#336699|(पैसे के लिए सेक्स की मुद्रा) कानूनी वेश्यावृत्ति, लेकिन वेश्यालयों अवैध हैं, वेश्यावृत्ति विनियमित नहीं है''नहीं''विनियमित}} {{legend|#993333|अवैध वेश्यावृत्ति}} {{legend|#ababab|कोई डेटा नहीं}}</small>]]
[[चित्र:RedLightDistrictAmsterdamTheNetherlands.jpg|thumb|left|230px|एम्स्टर्डम लाल बत्ती जिले में वेश्याओं द्वारा किराए के कमरे के लिए ग्लास दरवाजे.]]
=== आर्थिक कारण ===
अनेक स्त्रियाँ अपनी एवं आश्रितों की क्षुधा की ज्वाला शांत करने के लिए विवश हो इस वृत्ति को अपनाती हैं। जीविकोपार्जन के अन्य साधनों के अभाव तथा अन्य कार्यों के अत्यंत श्रमसाध्य एवं अल्वैतनिक होने के कारण वेश्यावृत्ति की ओर आकर्षित होती हैं। घनीवर्ग द्वारा प्रस्तु विलासिता, आत्मनिरति तथा छिछोरेपन के अन्यान्य उदाहरण भी प्रोत्साहन के कारण बनते हैं। कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत वेश्याएँ आर्थिक आर्थिक कारणवश इस वृत्ति को अपनाती हैं।
 
=== सामाजिक कारण ===
[[चित्र:RedLightDistrictAmsterdamTheNetherlands.jpg|thumb|left|230px|एम्स्टर्डम लाल बत्ती जिले में वेश्याओं द्वारा किराए के कमरे के लिए ग्लास दरवाजे.]]
समाज ने अपनी मान्यताओं, रूढ़ियों और त्रुटिपूर्ण नीतियों द्वारा इस समस्या को और जटिल बना दिया है। विवाह संस्कार के कठोर नियम, दहेजप्रथा, विधवाविवाह पर प्रतिबंध, सामान्य चारित्रिक भूल के लिए सामाजिक बहिष्कार, अनमेल विवाह, तलाकप्रथा का अभाव आदि अनेक कारण इस घृणित वृत्ति को अपनाने में सहायक होते हैं। इस वृत्ति को त्यागने के पश्चात् अन्य कोई विकल्प नहीं होता। ऐसी स्त्रियों के लिए समाज के द्वारा सर्वदा के लिए बंद हो जाते हैं। वेश्याओं की कन्याएँ समाज द्वारा सर्वथा त्याज्य होने के कारण अपनी माँ की ही वृत्ति अपनाने के लिए बाध्य होती हैं। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक होने तथा शारीरिक, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से बाधाग्रस्त होने के कारण अनेक पुरुषों के लिए विवाहसंबंध स्थापित करना संभव नहीं हो पाता। इनकी कामतृप्ति का एकमात्र स्थल वेश्यालय होता है। वेश्याएँ तथा स्त्री व्यापार में संलग्न अनेक व्यक्ति भोली भाली बालिकाओं की विषम आर्थिक स्थिति का लाभ उठाकर तथा सुखमय भविष्य का प्रलोभन देकर उन्हें इस व्यवसाय में प्रविष्ट कराते हैं। चरित्रहीन माता-पिता अथवा साथियों का संपर्क, अश्लील, साहित्य, वासनात्मक मनोविनोद और चलचित्रों में कामोत्तेजक प्रसंगों का बाहुल्य आदि वेश्यावृत्ति के पोषक प्रमाणित होते हैं।