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"ब्रह्मस्फुटसिद्धांत" के साढ़े चार अध्याय मूलभूत गणित को समर्पित हैं। १२वां अध्याय, गणित, अंकगणितीय शृंखलाओं तथा ज्यामिति के बारे में है। १८वें अध्याय, कुट्टक ([[बीजगणित]]) में [[आर्यभट्ट]] के रैखिक [[अनिर्धार्य समीकरण]] (linear indeterminate equation, equations of the form '''ax − by = c''') के हल की विधि की चर्चा है। ([[बीजगणित]] के जिस प्रकरण में अनिर्धार्य समीकरणों का अध्ययन किया जाता है, उसका पुराना नाम ‘[[कुट्टक]]’ है। ब्रह्मगुप्त ने उक्त प्रकरण के नाम पर ही इस विज्ञान का नाम सन् ६२८ ई. में ‘कुट्टक गणित’ रखा।)<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/bs/home.php?bookid=2558|title= वैदिक बीजगणित
|accessmonthday=[[१२ फरवरी]]|accessyear=[[२००८]]|format= पीएचपी|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref>
ब्रह्मगुप्त ने द्विघातीय अनिर्णयास्पदअनिर्धार्य समीकरणों (Nx<sup>2</sup> + 1 = y<sup>2</sup>) के हल की विधि भी खोज निकाली। इनकी विधि का नाम '''[[चक्रवाल विधि]]''' है। गणित के सिद्धान्तों का [[ज्योतिष]] में प्रयोग करने वाला वह प्रथम व्यक्ति था। उसकेउनके ब्रह्मस्फुटसिद्धांत[[ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त]] के द्वारा ही [[अरबों]] को भारतीय ज्योतिष का पता लगा। [[अब्बासिद]] [[ख़लीफ़ा]] [[अल-मंसूर]] (७१२-७७५ ईस्वी) ने [[बग़दाद]] की स्थापना की और इसे शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकसित किया। उसने [[उज्जैन]] के [[कंकः]] को आमंत्रित किया जिसने ब्रह्मस्फुटसिद्धांत के सहारे भारतीय ज्योतिष की व्याख्या की। अब्बासिद के आदेश पर [[अल-फ़ज़री]] ने इसका [[अरबी भाषा]] में अनुवाद किया।