"नारंगी": अवतरणों में अंतर

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[[नारंगी (रंग)]] अथवा [[नारंगी (फल)]] पर संत [[कबीर]] का [[दोहा]] काफी प्रसिद्ध है -
 
'''रंगी को नारंगी कहे, सार-तत्व को खोया ।'''
उठा को बैठा कहे,देख कबीरा रोया ।।'''
 
'''उठा को बैठा कहे,देख कबीरा रोया ।।'''
यहॉं समाज में प्रचलित शब्दों के शब्दार्थ और वास्तविक अर्थ के पारस्परिक विरोधी होने की ओर सूचित किया गया है । नारंगी का शब्दार्थ ''बिना रंग के'' होता है जबकि नारंगी के रंग से एक नये वर्ण का नामाकरण हुआ है !
 
यहॉंयहां समाज में प्रचलित शब्दों के शब्दार्थ और वास्तविक अर्थ के पारस्परिक विरोधी होने की ओर सूचित किया गया है । नारंगी का शब्दार्थ ''बिना रंग के'' होता है जबकि नारंगी के रंग से एक नये वर्ण का नामाकरण हुआ है !
 
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