"यजुर्वेद": अवतरणों में अंतर

No edit summary
पंक्ति 17:
* [[अग्निचयन]]
[[ऋग्वेद]] के लगभग ६६३ मंत्र यथावत् यजुर्वेद में मिलते हैं। यजुर्वेद वेद का एक ऐसा प्रभाग है, जो आज भी जन-जीवन में अपना स्थान किसी न किसी रूप में बनाये हुऐ है।<ref name="विद्या">[http://www.veda-vidya.com/veda.php वेद]। वेद विद्या.कॉम</ref> संस्कारों एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों के अधिकांश मन्त्र यजुर्वेद के ही हैं।<ref name="सत्य">[http://search-satya.blogspot.com/2010/04/blog-post_21.html ब्रह्म क्या है? जीव क्या है? आत्मा क्या है? ब्रह्मांण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई है?]। सत्य की खोज</ref>
 
=== राष्ट्रोत्थान हेतु प्रार्थना ===
: '''ओ३म् आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे-निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥''' -- यजुर्वेद २२, मन्त्र २२
 
'''अर्थ-'''
: ब्रह्मन् ! स्वराष्ट्र में हों, द्विज ब्रह्म तेजधारी ।
: क्षत्रिय महारथी हों, अरिदल विनाशकारी ॥
: होवें दुधारू गौएँ, पशु अश्व आशुवाही ।
: आधार राष्ट्र की हों, नारी सुभग सदा ही ॥
: बलवान सभ्य योद्धा, यजमान पुत्र होवें ।
: इच्छानुसार वर्षें, पर्जन्य ताप धोवें ॥
: फल-फूल से लदी हों, औषध अमोघ सारी ।
: हों योग-क्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी ॥
 
== संप्रदाय, शाखाएं और संहिताएं ==
Line 35 ⟶ 48:
 
यजुर्वेद के भाष्यकारों में [[उवट]] (१०४० ईस्वी) और [[महीधर]] (१५८८) के भाष्य उल्लेखनीय हैं। इनके भाष्य यज्ञीय कर्मों से संबंध दर्शाते हैं। [[श्रृंगेरी मठ |शृंगेरी]] के शंकराचार्यों में भी यजुर्वेद भाष्यों की विद्वत्ता की परंपरा रही है।
 
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[वैदिक साहित्य]]
* [[ऋग्वेद]]
* [[सामवेद]]
* [[अथर्ववेद]]
* [[वैदिक काल]]
* [[वैदिक धर्म]]