"विकासात्मक मनोविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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'''शिशु अनुभूति:''' शिशु की अनुभूति को समझने के लिए 'जीन पियाजेट' एक प्रसिद्ध नामक विकासात्मक मनोविज्ञानी ने अनुभूति विकास के सिदधांत लिखे है। पियाजेट के अनुसार शिशुओ को दुनिया कि समझ और अनुभूति मोटर विकास के द्वारा हो सकती है और इसी के साथ वस्तु को छूने या पकडने से शिशु को वस्तु के बारे मे पता चलता है। पियाजेट यए भी कह्ते है कि शिशुओ को १८ सपताह से पह्ले वस्तुओ कि कोई समझ नही होती बल्कि शिशु उस वस्तु को बार बार देखने और समझने की कोशिश करता है।
 
===() शिशु अवस्थाबचपन===
बचपन मानसिक विकास का चौथा चरण माना जाता है। इसको 'खोजपूर्ण उम्र' और 'खिलौना उम्र' भी कहा जाता है। जब बच्चे बढ़ते है तो उनके अतीत अनुभवो से उनके जीवन का आकार होता है और दुनिया को समझने की क्षमता मिलती है। तीन वर्ष से ही बच्चों की भाषा का विकास होता है। बच्चे ९००-१००० अलग शब्द और हर दिन १२००० शब्दो का उपयोग करता है। छह वर्ष होने तक बच्चा २,६०० शब्द का उपयोग करता है और २०,००० शब्दो को समझते है। बच्चो की समझने की क्षमता इस वर्ष तक बढ़ जाती है और विधालय जाने से उसको बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
जब शिशु एक या दो वर्ष के हो जाते है तो उस विकासात्मक चरण को शिशु अवस्था कहते है। कैसे चलना, बात करना और कैसे अपने बारे मे निर्णय लेना है, शिशुओ इस चरण मे सीखना शुरू करता है। इस चरण मे शिशुओ की भाषा मे विकास होता है। आसपास के लोगो से संवाद करने और अपनी भावनाओ को दिखाने के लिए मुखर आवाज़, बड्बडा और अंत मे शब्दो का प्रयोग करते है।
बच्चे इस उम्र मे आसानी से दोस्त बना लेते है। भाषा विकास होने से बच्चो को ज्ञान और कौशलता भी प्राप्त होता है और अपने लोगो से र्वातालाप करने और समझने मे आसानी होती है। ब्च्चे लोगो को पहचानने लगते है।
 
===(५) किशोरावस्था===
[[समाज]] मे बचयन स युवावस्थ का आकंलन एक बहुत बडे समय अतंराम मे किया जाता है। इसकी शुरुआत यौयनारंभ के साथ होही है जिससे [[इंसान]] शारीरिक रुप से यौना संबंध बनाने हेतु और प्रजनन हेतु तैयार हौ जाता है। भावनात्मक परिपक्वता इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य अपनी पहचान खुद बनाले, आत्म निर्भर हो जाए तथा समाज मे उसकी प्रशंसा हो। परंतु कुछ लोग कभी भी मानसिक रुप से प्रौढ़ नही होते चाहे पेशारीरिक रुप से कितने भी बडे क्यो ना हो जाए। शुसआती वयस्कता बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम रखने से शुरु होती है, जहा समाजजिक रुप से भी बडा होता है। वह संभोग एवं प्रजनन तथा अपनी देखभाल करने हो जाता है।
यौवन- इसकी शुरुआत तेजी से सेक्स हार्मोन के बनने से होती है। लडकियाँ मे इसके लक्षण है-[[अंडाशय]] मे एस्ट्रोजन बढ़ जाती है, जिसकी वजह से महिला जननांगों मे विकास होता है। लड़कों मे इसके लक्षण है- वृषण मे एण्ड्रोजन बढ़ जाती है, विशेष रूप से [[टेस्टोस्टेरोन]],जिसकी वजह से [[पुरुष गुप्तांग]], मांसपेशियों और शरीर के बाल मे विकास होता है।
शुरुआती अवस्था- यह करीब दो वर्षों तक चलता है। इसके खत्म होते ही इंसान यौन परिपक्वता करने योग्य हो जाता है। लडकियाँ मे करीब ११-१३ वर्षों की उम्र मे अपने उम्र के लड़कों से उम्रदराज और मोती हौ जाती है। लड़कों मे यह अवस्थ १४-१६ वर्षों मे अती है और इस वर्षों लड़के अपने उम्र की लडकियाँ से लंबे तथा शारीरिक रुप से मजबुत होते है। लडकिया और लड़को अपना सारा विकास १८ वर्षों मे होजाता हे। युवावस्था के प्रारंभिक लक्षण जननांग की शृध्दि तथा संभोग हेतु तैयार होते से जुडी होती है। व्दितिथ लक्षण मानसिक रुपसे संभोग हेतु तैयार होने से है। इस दौरान युवको के गलत रास्ते पर चलने इग्स इत्यादि के सेवन के खतरे बढजाते है।
 
===(६) जवान युवावस्था===
यह [[युवावस्था]] का सही समय होता है। इस समय पे शारीरिक और मानसिक रुप से काफी सबल होने है। शरीर के सारे अंग सही काम कर रहे होते है। मध्यावस्था २०-१५ वर्षों मे, शरीर के आधिकतर अंग पूर्ण से विकसित होते है। २०-४० वर्षों के अंतराल मे नज़र, श्वान, स्पर्श तथा [[कान]](सुनने हेतु) पूर्ण रुप से विकदित होते है। ४५ के बाद कान के सुनने की शक्ति कम होने लगती है, खासकर ज्यादा हेज ध्वनि के प्रति।
[[अनुवांशिक]] संक्रमण तथा स्वास्थ्था- बहुत सारी बिमारियँ बहुत सारे तथ्यो पर निर्भर करती है। अनुवांशिक और प्रकृतिक दोनो का मनुष्य के जीवन पर काफी प्रभाव पडता है। 'मोटापा' इसका एक बहुतबड कारण है। इसके अलावा अन्या कारण है, कसरत की कमी, [[धूम्रपान]] और कुपोषण।
 
===(७)माध्यामिक युवावस्था===
उम्र के इस पडाव का कोई सामाजिक तथा जैविक संबंध नही है। स्वास्थ्य मे सुधार तथा आपुमे बटोत्तेरी हेतु यह उम्र का पडाव काफी महत्वपूर्ण है। ४०-६५ आयु अधिकतर लोगो के बीच दुरियँ लाता है। इस उम्र मे मनुष्य पर कफी जिम्मेदारी आ जाती है तथा उसे अनेक भुमिकाएँ निभानि पडती है। मध्यमभायु के अधिकतर लोग अपना स्थान बना चुके होते हो तथा पूर्णतः स्वतंत्र रुप से जीवन प्यतीत फर रहे होते है। सफलता, काम तथा समाजिक जिम्मेदारीयो के बीच समाज का बंधन स्वीकार नही कर पाते।
 
===(८)ट़लती युवावस्था===
आजकल मनुष्य की आयु लंबी होती जा रही है, खासकर विकसित देशो मे। आर्थिक सपंन्नता, अच्छा खाना, रोत्रोका अच्छी तरह से उपचार, साफ पानी तथा अच्छे चिकित्सालय इसके कारण है। प्रारंभिक आयुवोदि धिरे-धिरे होती है तथा उम्र के शुसाआती अद्तो पर निर्भर रहती है। इसे आप रोक वही सकते। दितिय आयुवृर्ध्दि वीमारी के कारण।
 
 
===संदर्भ===
मानव विकास
 
===(४) बचपन===