"शालिवाहन शक": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Rudrasena.jpg|thumb|250px|पश्चिमी क्षत्रप शासक रूद्रसेना का एक चांदी का सिक्का ([[200]] - [[222]]). इस सिक्के की दूसरी तरफ ब्राह्मी लिपि में शक् युग की तिथि: 131 अंकित है। 16 मिमी, 2.2 ग्राम.]]
 
'''शालिवाहन युगशक''' जिसे '''शक्[[शक युगसंवत]]''' के रूप में भी जाना जाताकहते हैं, हिंदू कैलेंडर, [[भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर]] और कम्बोडियन बौद्ध कैलेंडर के संदर्भ के रूप मे प्रयोग किया जाता है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत वर्ष 78 के वसंत विषुव के आसपास हुई थी।{{fact}}
 
शालिवाहन राजा, [[शालिवाहन]] (जिसे कभी कभी गौतमीपुत्र शताकर्णी के रूप में भी जाना जाता है) को ''शालिवाहन शक् युगशक'' कीके शुरुआतशुभारम्भ का श्रेय दिया जाता है जब उसने वर्ष 78 में उज्जैनीउजयिनी के नरेश विक्रमादित्य को युद्ध मे हराया था और इस युद्ध की स्मृति मे उसने इस युग को आरंभ किया था।{{fact}}
 
एक मत है कि, शक् युग उज्जैन, मालवा के राजा विक्रमादित्य के वंश पर शकों की जीत के साथ शुरु हुआ। इस जीत के बाद, शकों ने उस [[पश्चिमी क्षत्रप]] राज्य की स्थापना की जिसने तीन से अधिक सदियों तक इस क्षेत्र पर शासन किया।<ref>"The dynastic art of the Kushans", John Rosenfield, p130</ref>
 
सन 1633 तक इसे जावानीस[[जावा]] की अदालतों द्वारा भी प्रयुक्त किया जाता था, पर उसके बाद इसकी जगह '''अन्नो जावानिको''' ने ले ली जो जावानीस और इस्लामी व्यवस्था का मिला जुला रूप था।<ref>M.C. Ricklefs, ''A History of Modern Indonesia Since c. 1300, 2nd ed. Stanford: Stanford University Press, 1993, pages 5 and 46.</ref>
 
== संदर्भ ==