"ओ. हेनरी": अवतरणों में अंतर
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जीते नहीं बल्कि उससे खिलवाड़ करते प्रतीत होते है। पाठको का मनोरंजन करना उसका ध्येय था और उनकी कौतूहलव्रत्ति को जगाते रखने के लिए, उनहोने अपनेपात्रों से तरह-तरह के तमाशे करवाये हैं। वे रोमांस के भूखे, बुरे वक्त का हिम्मत से मुकाबला करने वाले, कुलीनता का ढोंग करने वाले और आधुनिक '[[अलिफ़-लैला]]' की रंगीन दुनिया में विचरने वाले चित्रित किए गये हैं।
मनुष्य का सर्वस्पर्शी और सागोपांग
ओ० हेनरी की कला, उसकी दूसरी किताब '[[द फ़ोर मिलियन]]' में निखर उठी, जिससे उसे काफ़ी लोकप्रियता भी मिली। प्रथम बार प्रकाशित होने के चालीस वर्ष बाद, उसकी 'उपहार' नामक कहानी का चलचित्र बना। उसकी अन्य कहानियों के कई संकलन प्रकाशित हुए जैसे 'स्नेह दीप' (१९०७), 'पश्चिम की आत्मा' (१९०७), 'शहर की आवाज' (१९०८),'भाग्यचक्र' (१९०९),'विकल्प' (१९०९),'धन्धे की बात' (१९१०),' जीवन चक्र' (१९१०)। उसकी म्रत्यु के बाद तीन किताबें और छपीं- 'सफ़ेदपोश ठग', 'आवारा' और 'भूले-भटके'।
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