"ओ. हेनरी": अवतरणों में अंतर

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जीते नहीं बल्कि उससे खिलवाड़ करते प्रतीत होते है। पाठको का मनोरंजन करना उसका ध्येय था और उनकी कौतूहलव्रत्ति को जगाते रखने के लिए, उनहोने अपनेपात्रों से तरह-तरह के तमाशे करवाये हैं। वे रोमांस के भूखे, बुरे वक्त का हिम्मत से मुकाबला करने वाले, कुलीनता का ढोंग करने वाले और आधुनिक '[[अलिफ़-लैला]]' की रंगीन दुनिया में विचरने वाले चित्रित किए गये हैं।
 
मनुष्य का सर्वस्पर्शी और सागोपांग विश्लेषण उन्होने शायद ही कहीं किया हो। उन्होने तो मनुष्य का, आधुनिक शहरी जीवन के भंवर मे फ़से हुए, असहाय व्यक्ति के रूप मे ही, दर्शन कराया। 'स्नेह दीप' कहानी की नान्सी को सिर्फ़ एक दुकान में काम करने के कारण, एक दुकानदार लड़की मानने से वह इन्कार कर देता है और कहता है," ऎसी कोई किस्म नहीं होती। आज के भ्रष्ट समाज को किस्म खोजने की आदत पड़ गयी है।" उसने मनुष्य को इतना गिरा हुआ शायद हीचित्रित किया हो कि वह अपनी कमजोरियों के लिए शर्मिंदा भी न हो। उसकी सब कहानियों के नीचे सह्रदयता और सहानुभुति की अन्तर्धारा बह रही है। जीवनमें भूले-भटके या पिछड़े हुए हर बदनसीब को वह मनुष्यता के व्यापक कुटुम्ब में स्थान देने को सदा तत्पर रहा। कभी-कभी वे उसका मनोरंजन करते हैं, कभीअपने जीवन की विडम्बनाओं से उसे दुखी कर देते है और कभी वह भावुक भी हो उठता अहि परन्तु हर हालत में, वह भाग्य की हर छेड़छाड़ को स्वीकार कर लेतेहै और उसके खलनायक भी हास्यास्पद ही हो पाते हैं- दुष्ट नहीं।
 
'Yes'
 
ओ० हेनरी की कला, उसकी दूसरी किताब '[[द फ़ोर मिलियन]]' में निखर उठी, जिससे उसे काफ़ी लोकप्रियता भी मिली। प्रथम बार प्रकाशित होने के चालीस वर्ष बाद, उसकी 'उपहार' नामक कहानी का चलचित्र बना। उसकी अन्य कहानियों के कई संकलन प्रकाशित हुए जैसे 'स्नेह दीप' (१९०७), 'पश्चिम की आत्मा' (१९०७), 'शहर की आवाज' (१९०८),'भाग्यचक्र' (१९०९),'विकल्प' (१९०९),'धन्धे की बात' (१९१०),' जीवन चक्र' (१९१०)। उसकी म्रत्यु के बाद तीन किताबें और छपीं- 'सफ़ेदपोश ठग', 'आवारा' और 'भूले-भटके'।