"होली": अवतरणों में अंतर

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इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। [[विजयनगर]] की राजधानी [[हंपी]] के १६वी शताब्दी के एक चित्रफलक पर होली का आनंददायक चित्र उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। १६वी शताब्दी की [[अहमदनगर]] की एक चित्र आकृति का विषय वसंत रागिनी ही है। इस चित्र में राजपरिवार के एक दंपत्ति को बगीचे में झूला झूलते हुए दिखाया गया है। साथ में अनेक सेविकाएँ नृत्य-गीत व रंग खेलने में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे पर पिचकारियों से रंग डाल रहे हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की [[मेवाड़]] की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। [[बूंदी जिला|बूंदी]] से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।<ref name="history">{{cite web |url=http://www.holifestival.org/history-of-holi.html|title= History of Holi|accessmonthday=[[3 मार्च]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएमएल|publisher= होलीफेस्टिवल.ऑर्ग|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
होली के त्योहार की असली कहानी
कोई आपके पिता या दादा की हत्या कर दे तो आप उस अपराधी से बदला लेने की सोचेंगे या उस आदमी की पूजा करेंगे , बेशक बदला लेने की सोचेंगे । तो फिर क्यों आज हम अपने पूर्वजो के हत्यारो से बदला लेने की बजाय उनकी पूजा करते आ रहे है ....??
हमारे भारत देश पर अंग्रेजो और मुग़लो से भी सैकड़ों साल पहले (2500-4500 yrs. ago) यूरोप और एशिया बार्डर यानि मध्य यूरेशिया की वोल्गा नदी के तट पर रहने वाले लोगो ने आक्रमण किया था । हमारे देश पर आक्रमण करने वाले पहले विदेशी यही "आर्य" लोग थे । ये लुटेरे/डकैत भारत मे गड़रिये/बकरीबाज़ का रूप धरकर आए थे , और फिर ये धीरे धीरे भारत के छोटे बड़े हिस्सो पर हमला करते गए और उस हिस्से को अपना ग़ुलाम बनाते गए , घोड़ा(Horse)और गरुड़ पक्षी भारत मे नहीं पाये जाते थे , ये विदेशी आर्य उन्हे अपने साथ लेकर आए थे । हमारी सेना पैदल हुआ करती थी और ये लुटेरे घुड़सवार हुआ करते थे , इसलिए हमारी सेनाएँ लड़ाई मे कमजोर पड़ती गयी और इनहोने धीरे-धीरे लगभग पूरे देश के हिस्से मे अपना प्रभाव जमा लिया । साथ ही साथ ये भारत मे पहले से मौजूद महान और विकसित सिन्धु घाटी सभ्यता और हमारी मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति को नष्ट करने लगे और जहां जहां नष्ट नहीं कर पाये वहाँ उसका रूप विकृत कर उसको अपने मतलब/फ़ायदे के हिसाब से ढालने लगे और अपने द्वारा रचे गए घटिया और काल्पनिक वेद - पुराण के हिसाब से नया इतिहास बनाने लगे जो सिर्फ उनको श्रेष्ठ साबित करता था ।
हमारा होली का त्योहार भी हमारे देश के महान मूलनिवासी राजाओ और विदेशी आर्य लुटेरो के बीच हुए संघर्ष की एक गाथा है, प्राचीन काल मे हमारे देश के कश्यप राजा रहे हिरण्यकश्यप और उसके परिवार की कहानी कहता है हमारा होली का त्योहार ।
ऐतेहासिक गाथा के अनुसार हमारे मूलनिवासी राजा "हिरण्यकश्यप" बहुत पराक्रमी हुआ करते थे , राजा हिरण्यकश्यप ने विदेशी हिंसक ग्रंथ वेद-पुराणों की नीति को अपने यहा लागू नहीं होने दिया और अपना प्राचीन मूलनिवासी और नागवंशी धर्म ही मानते रहे जिसकी वजह से विदेशी आर्य लुटेरे उनके राज्य पर कब्जा नहीं कर पा रहे थे तो उन्होने अपनी हमेशा की छल और बहरूपिये वाली नीति अपनाने की कोशिश की जिसके सहारे वो हमारे देश मे घुसे थे । उन्होने राजा हिरण्यकश्यप के साथ छल/धोखा करके उनकी हत्या तो कर दी लेकिन उस राज्य की प्रजा ने भी विदेशी आर्य लुटेरों की सत्ता को स्वीकारने से इंकार कर दिया । तो उन्होने "हिरण्यकश्यप" के अल्पायु पुत्र "प्रहलाद" को ही राजा बनाने की योजना बनाई लेकिन साथ ही उन्होने ये सोचा की प्रहलाद को विदेशी आर्य ग्रंथो वेद-पुराणों की शिक्षा देकर उसे अपने वश मे कर लेंगे जिससे प्रजा की नज़र मे तो राजा प्रहलाद ही रहेगा लेकिन वो काम उन लुटेरों के फ़ायदे का करेगा । लेकिन उनके इस षड्यन्त्र का पता "होलिका" को चल गया था तो वो प्रहलाद को बचाने के लिए उसको अपने साथ लेकर सुरक्षित स्थान की ओर चल दी लेकिन उन आर्य लुटेरों की कुटिल नजरों से वो नहीं बच पाई और उन आर्य लोगो ने निहत्थी होलिका को जिंदा जलाकर उसको मार डाला ।
हम होली अपने महान राजा हिरण्यकश्यप और वीर होलिका के बलिदान को याद रखने हेतु शोक दिवस के रूप मे मनाते थे और जिस तरह मृत व्यक्ति की चिता की हम आज भी परिक्रमा करते है और उस पर गुलाल डालते है ठीक वही काम हम होली मे होलिका की प्रतीकात्मक चिता जलाकर और उस पर गुलाल डालकर अपने पूर्वजो को श्रद्धांजलि देते आ रहे थे ताकि हमे याद रहे की हमारी प्राचीन सभ्यता और मूलनिवासी धर्म की रक्षा करते हुए हमारे पूर्वजो ने अपने प्राणो की आहुति दी थी । लेकिन इन विदेशी आर्य लुटेरों ने हमारे इस ऐतेहासिक तथ्य को नष्ट करने के लिए उसको तोड़ मरोड़ दिया और उसमे काल्पनिक "विष्णु" और उसका बहरूपिये पात्र "नृसिंह अवतार" की कहानी घुसेड़ दी । और जिसकी वजह से आज हम अपने ही पूर्वजो को बुरा और राक्षस मानते आ रहे है , और इन लुटेरों को भगवान मानते आ रहे है ।
ये विदेशी आर्य असल मे अपने आपको "सुर" कहते थे और हमारे भारत के लोगो और हमारे पूर्वज राजाओ की बेइज्जती करने के लिए उनको "असुर" कहा करते थे । और इन लुटेरों/डकैतो की टोली के मुख्य सरदारो को इन्होने भगवान कह दिया और अलग अलग टोलियो/सेनाओ के मुखिया/सेनापतियों को इन्होने भगवान का अवतार दिखा दिया अपने इन काल्पनिक वेद-पुराणों मे । और इस तरह ये विदेशी आर्य हमारे भारत के अलग-अलग इलाको मे अपने लुटेरों की टोली भेजते रहे और हमारे पूर्वज राजाओ को मारकर उनका राजपाट हथियाते रहे । और उसी क्रम मे इन्होने हमारे अलग-अलग क्षेत्र के राजाओ को असुर घोषित कर दिया और वहाँ जीतने वाले सेनापति को विभिन्न अवतार बता दिया ।
और आज इससे ज्यादा दुख की बात क्या होगी की पूरा देश यानि की हम लोग इनके काल्पनिक वेद-पुराणों मे निहित नकली भगवानों याने हमारे पूर्वजो के हत्यारो को पूज रहे है और अपने ही पूर्वजो को हम राक्षस और दैत्य मानकर उनका अपमान कर रहे है ।
याद रहे की वेदो और पुराणों मे लिखा है की सारे भगवान "लाखो" साल पुराने है और भगवान अश्व अर्थात घोड़े की सवारी किया करते थे और विष्णु का वाहन "गरुड़" पक्षी है लेकिन "घोड़ा(हॉर्स)" और गरुड़ पक्षी भारत मे नहीं पाये जाते थे , ये विदेशी आर्य उन्हे कुछ "सैकड़ों" साल पहले अपने साथ लेकर आए थे , जिससे ये साबित होता है की ये विष्णु और उसके सारे अवतार काल्पनिक है और इन्होने अपनी बनाई हुई सेना के राजाओ और सेनापतियों को ही भगवान और उनका अवतार घोषित किया है ।
अब समय आ गया है की हम अपने देश का असली इतिहास पहचाने और अपने पूर्वज राजा जो की असुर या दैत्य ना होकर वीर और पराक्रमी महान पुरुष हुआ करते थे उनका सम्मान करना सीखे और जिन्हे हम भगवान मानते है दरअसल वो हमारे गुनहगार है और हमारे पूर्वजो के हत्यारे है जिनकी पूजा और प्रतिष्ठा का हमे बहिष्कार करना है ।
जैसे की दक्षिण भारत मे हमारे एक महान पूर्वज राजा "महिषासुर" थे जिन्हे इन भगवान की नकली कहानियों मे असुर बताया गया है , जबकि वो एक बहुत विकसित राज्य के राजा थे , उसका सबूत उनके नाम पर कर्नाटक मे मौजूद प्रसिद्ध शहर (महिससुर) "मैसूर" है , जहां उनकी प्रतिमा भी मौजूद है ।
और प्राचीन केरल राज्य के हमारे महान राजा "बालि" जिनसे उनका राजपाट छल से आर्यों के एक सेनापति (विष्णु का "बामन" अवतार) ने हड़प लिया था , उनके नाम पर आज भी समुद्र मे मौजूद द्वीप(एक देश) बालि (बालि ,जावा ,सुमात्रा) नाम से है , इनकी चर्चा अगली बार करेंगे ....
नोट :- और आखिरी मे सबसे दुख और शर्म की बात ये है की ये विदेशी आर्य लुटेरे कोई और नहीं आज के ब्राह्मणों के पूर्वज ही है , डीएनए टेस्टिंग (D.N.A. Testing) से साबित हो चुका है की ब्राह्मण इन्ही के वंशज है । विदेशी आर्यों और लुटेरों से मतलब आज हिन्दू (Hindu) धर्म मे मौजूद उच्च वर्ण और जाति के लोगो से है ( यानि ब्राह्मण/पंडित , क्षत्रिय/राजपूत और वैश्य/बनिया ) । और भारत मे मौजूद दूसरे धर्म "इस्लाम (Islaam)" और "सिख (Sikh)" धर्म मे मौजूद उच्च वर्गीय/वर्णीय/जातीय रईस लोग भी यही विदेशी आर्य लुटेरों के वंशज है जिनहोने बाद मे कुछ स्वार्थवाश अपना धर्म परिवर्तन कर लिया ।
 
== कहानियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/होली" से प्राप्त