"राजा रामपाल सिंह": अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
राजा रामपाल सिंह का जन्म भादों सुदी 4, संवत्‌ 1905 (1848 ई.) को [[उत्तर प्रदेश]] के [[प्रतापगढ़ जिला|प्रतापगढ़ जिले]] के कालाकाकर राजपरिवार में हुआ। आपके पिता लाल प्रताप सिंह की मृत्यु आपके पितामह राजा हनुमंत सिंह के जीवनकाल में ही हो गई। अत: अपने बाबा के बउद राज्य के उत्तराधिकारी आप ही हुए। आप बचपन से ही स्वभाव के अति चंचल और बहुत ही तीव्र बुद्धि के थे। कुछ ही वर्षों में [[हिंदी]], [[फारसी]], [[संस्कृत]] और [[अँगरेजीअंग्रेजी]] की अच्छी योग्यता आपने प्राप्त कर ली। नए विचारों और पाश्चात्य सभ्यता के प्रति आपकी रुचि हुई और रूढ़िवाद के आप विरोधी हो गए। परिवार के विरोध की उपेक्षा करके आप [[इंग्लैंड]] गए और अपनी रानी स्वभाव कुँवरि को भी साथ ले गए। वहाँ आपने [[फ्रेंच]], [[जर्मन]] और [[लैटिन]] भाषाएँ सीखीं तथा [[गणित]] और [[तर्कशास्त्र]] का अध्ययन किया। विद्योपार्जन के लिए इंग्लैंड आए हुए भारतीय विद्यार्थियों से वहाँ आपने संपर्क स्थापित किया और [[इंडियन एसोसिएशन]] के उपसभापति बने। इंग्लैंड के सामाजिक जीवन में आप घुले मिले और प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त किया। आप भारतीय विद्यार्थियों को धन की सहायता भी देते थे और भारत के पक्ष में सभाओं में व्याख्यान देते थे। भारतवासियों की असुविधाओं को दूर करने तथा उनके स्वत्वों की रक्षा के उद्देश्य से आपने 1883 ई. में इंग्लैंड से ही 'हिंदोस्थान' नामक त्रैमासिक पत्र निकाला जिसमें अँगरेजी, हिंदी तथा उर्दू तीनों भाषाओं में लेख छपते थे। 8-9 वर्ष इंग्लैंड में रहकर आप स्वदेश लौटे। इंग्लैंड प्रवास में ही आपकी रानी का शरीरांत हो गया जिनके शव को सुरक्षित रूप में दाहसंस्कार के लिए आप स्वदेश लाए। कुछ समय बाद आप दुबारा इंग्लैंड गए और वहाँ एक अँगरेज महिला से विवाह करके उसे भारत लाए। आप [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के सदस्य बने तथा उसके लिए धन संग्रह भी करते रहे। नवंबर, 1885 ई. में आपने कालाकाँकर से ही 'हिंदोस्थान' नाम का हिंदी दैनिक निकाला जिसका साप्ताहिक अंग्रेजी संस्करण भी इसी नाम से निकलता था। इन दोनों पत्रों के संपादक आप स्वयं ही रहे परंतु संपादन का काम पं॰ [[मदनमोहन मालवीय]], पं॰ [[प्रतापनारायण मिश्र]], बाबू [[बालमुकुंद गुप्त]] आदि करते थे। अंग्रेजी साप्ताहिक के संपादन के लिए आप एक अँगरेज सहकरी को इंग्लैंड से लाए। 'हिंदोस्थान' में शब्दों की वर्तनी सामान्य से भिन्न रहती थी, जैसे 'जितना' को 'ज्यतना', 'कितना को 'क्यतना', 'मैनेजर' को 'म्यनेजर'।
 
आप हिंदी और फारसी में कविता करते थे और अपने विलायत प्रवास पर अँगरेजी में एक पुस्तक लिखकर प्रकाशित की। अँगरेजी सीखने के लिए आपने 'दि सेल्फ टीचिंग बुक' भी लिखी। शिक्षा, उद्योग और व्यापार को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से आपने स्कूल, कालेज और अस्पताल खोले तथा रेशम के कीड़े पालकर रेशम उद्योग चालूकिया। आप शतरंज के बहुत अच्छे खिलाड़ी तथा व्यायाम और शिकार के प्रेमी थे। समुद्रयात्रा तथा विधवा विवाह के आप समर्थक और बाल विवाह के विरोधी थे। 1909 ई. में आपका शरीरांत हुआ।