"मार्कण्डेय": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Markandey.jpg|300px|right|thumb|कथाकार मार्कण्डेय
'''मार्कण्डेय''' (
उनका जन्म [[उत्तर प्रदेश]] में [[जौनपुर]] जिले के
इनकी कहानियाँ आज के गाँव के पृष्ठभूमि तथा समस्यायों के विश्लेषण की कहानियाँ हैं। इनकी भाषा में [[उत्तर प्रदेश]] के गाँवों की बोलियों की अधिकता होती है, जिससे कहानी में यथार्थ पृष्ठभूमि का निरुपण होता है। अब तक इनके कई कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनके 'अग्निबीज','सेमल के फूल' [[उपन्यास]] तथा 'पानफूल','हंसा जाई अकेला','महुए का पेड़','भूदान','माही','सहज और शुभ','बीच के लोग','हलयोग' कहानी-संग्रह प्रसिद्ध
कथाकार मार्कण्डेय के करीबी और उनपर शोध करने वाले बालभद्र ने कहा कि मार्कण्डेय सहज भाषा के धनी थे। कथाकार और संपादक होने के साथ-साथ वह [[समीक्षक]] भी थे। 15 वर्षो तक उन्होंने कहानियों और साहित्य की समीक्षा की और रचनाकारों को इस बारे में पता भी नहीं चल सका। दरअसल, [[हैदराबाद]] से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'कल्पना' में उनकी कहानियाँ वृहद पैमाने पर छपती रहीं। उसी पत्रिका में मार्कण्डेय जी 15 वर्षो तक 'चक्रधर' नाम से स्तंभ लिखते रहे। उन्होंने पत्रिका के संपादक को मना कर दिया था, कि वह चक्रधर के बारे में किसी को न बताएं।
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