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१९ वीं शताब्दी तक न्यूटन-सिद्धांत के सौर परिवार संबंधी सत्यापन होते रहे। यद्यपि वे यथाथत: शुद्ध नही थे, तथापि इस सिद्धांत में सन् १९१५ तक कोई दोष नही निकाला जा सका। तब बुध ग्रह की गति में एक छोटी सी त्रुटि की व्याख्या, जो न्यूटन के सिद्धांत पर नहीं हो सकती थी, [[एलबर्ट आइंस्टाइन]] ने अपने सापेक्षवाद सिद्धांत के आधार पर की। इससे ७० वर्ष पहले जब वारूणी (यूरेनस) के पथक्षोभ का ज्ञान हुआ तो उसकी व्याख्या के प्रयत्न में वरूण (नेपचून) की खोज हुई थी। बुध के बारे में भी ऐसे ही एक ग्रह की खोज का कठिन परिश्रम किया गया, किंतु सफलता नहीं मिली। अंत में सापेक्षवाद सिद्धांत से यह स्थापित हो गया कि सूर्य के इतने समीप पथ के लिये केप्लर का नियम पूर्णत: यथार्थ नहीं है। सन् १८१७ और १९२२ के सूर्यग्रहण संबंधी प्रेक्षणों से सापेक्षवाद द्वारा प्राप्त सूर्य के समीप तारों के विस्थापन सत्य निकले। यही नहीं, वरन् यह सिद्धांत दार्शनिक दृष्टिकोण से भी पूर्णत: संतोषजनक है। ऐसी बात गुरूत्वाकर्षण सिद्धांत के बारे में नहीं थी।
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