"शान्तनु": अवतरणों में अंतर

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शांतनु [[महाभारत]] के एक प्रमुख पात्र हैं। वे [[हस्तिनापुर]] के महाराज प्रतीप के पुत्र थे। उनका विवाह [[गंगा (देवी)|गंगा]] से हुआ था। जिससे उनका [[देवव्रत]] नाम का पुत्र हुआ। यही देवव्रत आगे चलकर महाभारत के प्रमुख पात्र [[भीष्म]] के नाम से जाने गए। शान्तनु का दूसरा विवाह निषाद कन्या [[सत्यवती]] से हुआ था। इस विवाह को कराने के लिए ही देवव्रत ने राजगद्दी पर न बैठने और आजीवन कुँवारा रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की थी, जिसके कारण उनका नाम भीष्म पड़ा। सत्यवती के [[चित्रांगद]] और [[विचित्रवीर्य]] नामक दो पुत्र हुये।
 
राजा भरत की परंपरा में आगे चलते कुरू वंश में एक महान राजा का जन्म हुआ। उसका नाम था शांतनु। हस्तिनापूर के इस सम्राट की कथा भी मनोरंजक है। आज इसे हम कुछ विस्तार से पढेंगे ताकि आगे आनेवाले पात्रों से हमारा परिचय हो जाए। ये पात्र हैं भीष्म पितामह, पांडु और उसके पुत्र पांडव, धृतराष्ट और उसके पुत्र कौरव और महाभारत के युध्द में अहम किरदार निभाने वाले श्रीकृष्ण। इस तरह हम देख सकते हैं कि शांतनु से ही महाभारत की शुरूआत हो जाती है।
 
हस्तिनापूर के महानतम राजाओ में थे एक राजा शांतनु। अपनी पहली पत्नी गंगा से उन्हे एक पुत्र प्राप्त हुआ था जो योगी और ज्ञानी भीष्म के नाम से प्रसिध्द हुआ। पत्नी गंगा के चले जाने के पश्चात शांतनु राजा कुछ अकेलापन महसूस करने लगे।
 
एक दिन राजा कुछ सैनिको के साथ वन में मृगया करने गये। बहुत तेज भागने वाले एक खूबसूरत हिरन का पीछा करते राजा अन्य सैनिको का साथ खो बैठे और उस विशाल वन में अपना रास्ता भी। थकाहारा राजा नदी किनारे विश्राम कर रहा था कि एक मछुआरा अपनी नैया लेकर वहां से गुजर रहा था। शांतनुराजाने उसे आवाज दी और कहा ''मै बहुत थक चुका हूं। आप मुझे अपनी नौका में हस्तिनापुर पहुंचा दें।''
 
अपने महाराजा की सेवा करने का एक सुअवसर मछुआरा खोना नहीं चाहता था। उसने राजा से बडे विनम्र स्वर में कहा ''हे अन्नदाता मै आपको राजभवन ले चलता हूं लेकिन आप कृपया इस गरीब की झोपडी पर पधारकर मुझे अनुग्रहीत करें। मेरी झोपडी पास ही में है और मै आपका अधिक समय भी नहीं लूंगा''।
 
राजाने मछुआरे की प्रार्थना स्वीकार की और दोनो उसके घर पधारे। आरामदेह आसनपर राजा विराजमान थे। मछुआरे ने अपनी युवा कन्या सत्यवती को आवाज देते हुए कुछ फल और जलपान लाने को कहा। माछिमार की बेटी सत्यवती अत्यंत रूपवान और गुणवान थी। शांतनुराजा उसपर मोहित हो गया और प्रथम मुलाकात में सत्यवती भी अपना दिल शांतनुराजा को दे बैठी। मछुआरा भी समझ गया कि राजा का उसकी पुत्री पर मन आ गया है और उसे अपनी कन्या के महारानी बनने के आसार नजर आने लगे।
 
क्षेमकुशल पूछकर और जलपान कर राजा राजमहल लौट आया। लेकिन उस का दिल तो अटका था मछुआरे के झोंपडी में। उसे सत्यवती की याद भुलाये ना भूलती। अतः कुछ दिन पश्चात राजा स्वयं सत्यवती को मिलने मछुआरे के घर पहुंचा और उसने माछिमार से सत्यवती का हाथ मांगा। चतुर माछिमार ने एकदम हां नहीं कही बल्कि राजाके सामने कुछ शर्ते रखी। उसने कहा सत्यवती से आपका विवाह तभी संभव है जब आप यह वचन दें कि उसका बेटा ही राजसिंहासन का उत्तराधिकारी होगा, भीष्म नहीं।
 
प्रचलित नियम के अनुसार बडा बेटा होने के नाते भीष्म का राजगद्दी पर अधिकार बनता था इसलिये यह बात मछुआरे ने कही। राजा शांतनु को भीष्म से बहुत प्यार था इसलिये इस शर्त ने उसे बेहद परेशानी में डाल दिया।
 
सोचने के लिये कुछ समय मांगकर राजा महल लौट आया। लेकिन अब तो उसका मन था न खानेमें न सोनेमें और ना ही राजकाज में। भीष्म से पिता की परेशानी छिपी ना रही। वह जान गया कि किसी गंभीर समस्या ने उसके पिता को संकट में उलझा दिया है। अतः एक दिन पिता का पीछा करते हुऐ भीष्म मछुआरे के घर पहुंच गया।
 
अब वह जान गया कि पिता की सारी उलझन की जड है यह मछुआरे की झोंपडी। कुछ दिन पश्चात भीष्म खुद अकेले मछुआरे के घर पहुॅच गया और उससे पिता की उलझन का कारण बताने की विनती की। नवजवान तेजस्वी और शीलवान राजपुत्र के अनोखे प्रभाव ने माछिमार को कुछ क्षण तो सम्मोहित सा कर दिया किन्तु तुरंत ही वह सम्भल गया। उसने भीष्म को उसके पिता और उसकी पुत्री सत्यवती के प्रेमसंबध की जानकारी दी। भीष्म को यह बात समझ में नहीं आई कि इतनी छोटी सी बात को लेकर उसके पिता परेशान क्यों हो उठे। बस कन्या से विवाह कर लेने भर से तो सारी समस्या का हल हो जाता था।
 
इसपर मछुआरे ने भीष्म को अपनी शर्तो का ब्यौरा दिया। ''आप जेष्ठ हैं सो सत्यवती का पुत्र राजगद्दी पर कैसे अधिकार पा सकता है। मैने राजा से वचन माँगा है कि मेरी कन्याका पुत्र ही भविष्य में हस्तिनापुर का राजसिंहासन का वारिस बने।
 
मछुआरे के वचन सुनते ही क्षणभर का भी विलम्ब न करते हुए भीष्म ने न भूतो न भविष्यति प्रतिज्ञा की ''हे मछुआरे! यह गंगापुत्र भीष्म अपने कुल की अपने तप की और अपने इष्टदेव की सौगंध खाकर तुझे और सारे विश्व को वचन देता है कि राजगद्दी का अधिकारी सत्यवती का पुत्र ही होगा। केवल मै ही नहीं मेरे पुत्र भी हस्तिनापुर के सिंहासन पर कभी नजर नहीं डालेगे। और इस प्रतिज्ञा के बीच बाधा न आये इसलिये मै और एक प्रतिज्ञा करता हूं कि मै आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए हस्तिनापुर के सिंहासन की सेवा करूंगा।''
 
गंगाजल हाथ में लेकर मछुआरे को यह वचन देते हुए भीष्म ने दैविक रूप धारण कर रखा था। मछुआरे को अब पूरा विश्वास हो गया कि सत्यवती केवल महारानी ही नहीं बल्कि राजमाता बनकर जियेगी। सत्यवती और शांतनुराजा का विवाह संपन्न हुआ। आगे चलकर उनके पुत्र और प्रपोते हुए जो पंडु और धृतराष्ट्र के नाम जाने गये।
[[श्रेणी:महाभारत के पात्र]]
{{कुरु वंश वृक्ष}}
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