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'''भारतीय साहित्य में'''- गुलाब के अनेक [[संस्कृत]] पर्याय है। अपनी रंगीन पंखुड़ियों के कारण गुलाब पाटल है, सदैव तरूण होने के कारण तरूणी, शत पत्रों के घिरे होने पर ‘शतपत्री’, कानों की आकृति से ‘कार्णिका’, सुन्दर केशर से युक्त होने ‘चारुकेशर’, लालिमा रंग के कारण ‘लाक्षा’ और गन्ध पूर्ण होने से गन्धाढ्य कहलाता है। फारसी में गुलाब कहा जाता है और अंगरेज़ी में रोज, बंगला में गोलाप, तामिल में इराशा और तेलुगु में गुलाबि है। अरबी में गुलाब ‘वर्दे’ अहमर है। सभी भाषाओं में यह लावण्य और रसात्मक है। शिव पुराण में गुलाब को देव पुष्प कहा गया है। ये रंग बिरंगे नाम गुलाब के वैविध्य गुणों के कारण इंगित करते हैं।
 
'''विश्व साहित्य'''- गुलाब ने अपनी गन्ध और रंग से विश्व काव्य को अपना माधुर्य और सौन्दर्य प्रदान किया है। रोम के प्राचीन कवि वर्जिल ने अपनी कविता में वसन्त में खिलने वाले [[सीरिया]] देश के गुलाब की चर्चा की है। अंगरेज़ी साहित्य के कवि टामस हूड ने गुलाब को समय के प्रतिमान के रुप में प्रस्तुत किया है। कवि मैथ्यू आरनाल्ड ने गुलाब को प्रकृति का अनोखा वरदान कहा है। टेनिसन ने अपनी कविता में नारी को गुलाब से उपमित किया है। हिन्दी के श्रृंगारी कवि ने गुलाब को रसिक पुष्प के रुप में चित्रित किया है ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। कवि देव ने अपनी कविता में बालक बसन्त का स्वागत गुलाब द्वारा किए जाने का चित्रण किया है। कवि श्री निराला ने गुलाब को पूंजीवादी और शोषक के रुप में अंकित किया है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसे संस्कृति का प्रतीक कहा है।<ref>{{cite web |url= http://www.srijangatha.com/february%2007/sesh-vishesh.prasangvas.banvarilal.feb07.htm|title=गुलाब दिवस का गौरवशाली अतीत|accessmonthday=[[21 सितंबर]]|accessyear=[[2008]]|format= एचटीएम|publisher=सृजनगाथा|language=}}</ref>
 
== इतिहास में ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/गुलाब" से प्राप्त