"गुलाब": अवतरणों में अंतर

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भारतवर्ष में जो चैती गुलाब होते है वे प्रायः बसरा या दमिश्क जाति के हैं। ऐसे गुलाब की खेती [[गाजीपुर]] में [[इत्र]] और गुलाबजल के लिये बहुत होती है। एक बीघे में प्रायः हजार पौधे आते हैं जो चैत में फूलते है। बड़े तड़के उनके फूल तोड़ लिए जाते हैं और अत्तारों के पास भेज दिए जाते हैं। वे देग और भभके से उनका जल खींचते हैं। देग से एक पतली बाँस की नली एक दूसरे बर्तन में गई होती है जिसे भभका कहते हैं और जो पानी से भरी नाँद में रक्खा रहता है। अत्तार पानी के साथ फूलों को देग में रख देते है जिसमें में सुगंधित भाप उठकर भभके के बर्तन में सरदी से द्रव होकर टपकती है। यही टपकी हुई भाप गुलाबजल है।
 
गुलाब का इत्र बनाने की सीधी युक्ति यह है कि गुलाबजल को एक छिछले बरतन में रखकर बरतन को गोली जमीन में कुछ गाड़कर रात भर खुले मैदान में पडा़ रहने दे। सुबह सरदीसर्दी से गुलाबजल के ऊपर इत्र की बहुत पतली मलाई सी पड़ी मिलेगी जिसे हाथ से काँछ ले। ऐसा कहा जाता है कि गुलाब का इत्र नूरजहाँ ने १६१२ ईसवी में अपने विवाह के अवसर पर निकाला था।
 
[[भारतवर्ष]] में गुलाब जंगली रूप में उगता है पर बगीचों में दह कितने दिनों से लगाया जाता है। इसका ठीक पता नहीं लगता। कुछ लोग 'शतपत्री', 'पाटलि' आदि शब्दों को गुलाब का पर्याय मानते है। रशीउद्दीन नामक एक मुसलमान लेखक ने लिखा है कि चौदहवीं शताब्दी में गुजरात में सत्तर प्रकार के गुलाब लगाए जाते थे। बाबर ने भी गुलाब लगाने की बात लिखी है। [[जहाँगीर]] ने तो लिखा है कि [[हिंदुस्तान]] में सब प्रकार के गुलाब होते है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/गुलाब" से प्राप्त