"महाराजा जसवंत सिंह (मारवाड़)": अवतरणों में अंतर

पंक्ति 34:
 
महाराजा जसवंतसिंह वीर ही नहीं दानशील और विद्यानुरागी भी था। उसके रचित ग्रंथों में भाषाभूषण, अपरीक्षसिद्धांत, अनुभवप्रकाश, आनंदविलास, सिद्धांतबोध, सिद्धांतसार और प्रबोधचंद्रोदय आदि प्रसिद्ध हैं। [[सूरतमिश्र]], [[नरहरिदास]] और [[नवीनकवि]] उसकी सभा के रत्न थे। जसवंतसिंह का हृदय हिंदुत्व के प्रेम से परिपूर्ण था और उसके सदुद्योग और निरुद्योग से भी हिंदू राजाओं को पर्याप्त सहायता मिली। औरंगजेब भी इस बात स अपरिति न था। यह प्रसिद्ध है कि उसके मरने पर बादशाह ने कहा था, 'आज कुफ्र का दरवाजा टूट गया'। जसंवतसिंह के लिये हिंदूमात्र के हृदय में सम्मान था और इसी कारण जब औरंगजेब ने उसकी मृत्यु के बाद जोधपुर को हथियाने और कुमारों को मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया तो समस्त [[राजस्थान]] में विद्वेषाग्नि भड़क उठी और राजपूत युद्ध का आरंभ हो गया।
 
== हिन्दू धर्म का विरोध नहीं कर पाए थे औरंगजेब ==
जोधपुर के राजा जसवंत सिंह ने अपने शासन काल के दौरान कई युद्धों में दिल्ली के बादशाह शाहजहां और औरंगजेब का साथ दिया। इसमें उन्होंने सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। हालांकि, जब तक जसवंत सिंह जीवित थे, तब तक औरंगजेब मंदिर तोडऩा तो दूर जजिया कर (एक तरह का धार्मिक कर) भी नहीं ले पाए थे। लेकिन जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने राजस्थान पर आक्रमण करना और अपना प्रभुत्व जमाना शुरू कर दिया। शायद यही वजह थी कि जसवंत सिंह के जीवित रहते औरंगजेब कभी सफल नहीं हो सका। 28 नवम्बर 1678 को काबुल में जसवंत सिंह के निधन का समाचार जब औरंगजेब ने सुना, तब उसने कहा, "आज धर्म विरोध का द्वार टूट गया है"।<ref>http://www.bhaskar.com/article/c-10-1556794-NOR.html?HFL-4=</ref>
 
== जिस बालक ने सेना के ऊंटों के काटे थे सिर, उसे को बनाया अंगरक्षक ==