"महाराजा जसवंत सिंह (मारवाड़)": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
→हिन्दू धर्म का विरोध नहीं कर पाए थे औरंगजेब: दिये गए सन्दर्भ में नहीं है |
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महाराजा जसवंतसिंह वीर ही नहीं दानशील और विद्यानुरागी भी था। उसके रचित ग्रंथों में भाषाभूषण, अपरीक्षसिद्धांत, अनुभवप्रकाश, आनंदविलास, सिद्धांतबोध, सिद्धांतसार और प्रबोधचंद्रोदय आदि प्रसिद्ध हैं। [[सूरतमिश्र]], [[नरहरिदास]] और [[नवीनकवि]] उसकी सभा के रत्न थे। जसवंतसिंह का हृदय हिंदुत्व के प्रेम से परिपूर्ण था और उसके सदुद्योग और निरुद्योग से भी हिंदू राजाओं को पर्याप्त सहायता मिली। औरंगजेब भी इस बात स अपरिति न था। यह प्रसिद्ध है कि उसके मरने पर बादशाह ने कहा था, 'आज कुफ्र का दरवाजा टूट गया'। जसंवतसिंह के लिये हिंदूमात्र के हृदय में सम्मान था और इसी कारण जब औरंगजेब ने उसकी मृत्यु के बाद जोधपुर को हथियाने और कुमारों को मुसलमान बनाने का प्रयत्न किया तो समस्त [[राजस्थान]] में विद्वेषाग्नि भड़क उठी और राजपूत युद्ध का आरंभ हो गया।
== जिस बालक ने सेना के ऊंटों के काटे थे सिर, उसे को बनाया अंगरक्षक ==
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