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आदिशक्ति विंध्यवासिनी और विंध्य धाम
 
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विश्वास और तंत्र पथ के अनुसार, अलग-अलग देवी के तीन अलग-अलग रूपों की अलग-अलग विधि से उपासना की जाती है. जनसाधारण मां के सौम्य रूप की आराधना करते हैं. देवी के प्रचंड रूप की पूजा कापालिक और कालमुख जैसे घोर पंथी करते हैं. इसमें पंचमकार तक का प्रयोग होता है. कामरूपिणी देवी की उपासना शाक्त लोग करते हैं. ये देवी को त्रिपुर सुंदरी, आनंद भैरवी और ललिता आदि नामों से पुकारते हैं. यहां भैरव को देवी की आत्मा माना गया है, जिनके नौ व्यूह हैं. काल व्यूह, कुल व्यूह, नाम व्यूह, ज्ञान व्यूह एवं अहंकार व्यूह आदि प्रमुख हैं. विंध्याचल में इन तीनों रूपों की स्थापना है. दार्शनिक सत्ता में शिव और शक्ति आदि तत्व हैं. शक्ति ही अंतर्मुखी होने पर शिव हैं और शिव ही बहिर्मुखी होने पर शक्ति हैं. विंध्यवासिनी देवी का उल्लेख महाभारत, वाल्मीकि रामायण, मार्कंडेय पुराण, कल्कि पुराण, देवी पुराण, देवी भागवत, श्रीमदभागवत, लक्ष्मी यंत्र, हरिवंश पुराण, वामन पुराण, दुर्गा सप्तशती, चंद्रकला नाटिका और कादंबरी जैसे महाकाव्यों, पुराणों और साहित्य में है. 12 महापीठों में भी इस धाम का पावन स्थान है. तारकेश्वर महादेव से लेकर विरोही तक विंध्य क्षेत्र में असंख्य मंदिर और कुंड हैं, जिनमें तारकेश्वर महादेव, पंचमुखी महादेव, लोंहदी महावीर, संकट मोचक महावीर, कृष्ण मंदिर, मुक्तेश्वर महादेव, तारा देवी, रामेश्वर महादेव, दुग्धेश्वर महादेव, अक्रोधेश्वर लिंग, वीर भद्रेश्वर मंदिर, गोकणेश्वर महादेव, कामतेश्वर महादेव, कंकाल काली नंदजा, नारायण कुंड, लक्ष्मी कुंड, ब्रह्म कुंड, सप्तर्षि कुंड, नकादि कुंड, धर्मकुंड, गोकर्ण कुंड, सीता कुंड, रामकुंड, मुक्ति कुंड, भैरव कुंड श्मशान तारा एवं भैरव कुंड स्थित तारा शिवालय-श्रीयंत्र आदि विंध्यधाम के वैभव और प्राचीनता को प्रमाणित करते हैं. भगवान राम ने त्रेता युग में विंध्याचल आकर शिवपुर के निकट रामगंगा घाट की प्रेतशिला पर अपने पूर्वजों का तर्पण किया. इतिहासकार मानते हैं कि माटी या पत्थर के जिस टुकड़े पर लाखों लोगों की श्रद्धा समर्पित होती है, वह माटी-पत्थर देवता और तीर्थ समान है. भारत को विंध्याचल की पावनता के कारण तीर्थों का देश कहा जाता है.
 
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