"नर्मदा नदी": अवतरणों में अंतर

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सभी देवता, ऋ़षि मुनि, गणेश, कार्तिकेय, राम, लक्ष्मण, हनुमान आदि ने नर्मदा तट पर ही तपस्या करके सिद्धियाँ प्राप्त की। दिव्य नदी नर्मदा के दक्षिण तट पर सूर्य द्वारा तपस्या करके आदित्येश्वर तीर्थ स्थापित है। इस तीर्थ पर (अकाल पड़ने पर) ऋषियों द्वारा तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की। तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के) तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। इस आदित्येश्वर तीर्थ पर हमारा आश्रम अपने भक्तों के अनुष्ठान करता है।
 
नर्मदा चिर कुंवारी मानी जाती है और इसके पीछे भी प्रणय और परिणय से संबंधित कई पौराणिक गाथाएं हैं। एक कथा के अनुसार राजकुमारी नर्मदा राजकुमार सोनभद्र से विवाह करने को तैयार थी। उसने जोहिला को प्रेम संदेश देकर सोन के पास भेजा, मगर सोन जोहिला पर आसक्त हो गया। जोहिला के आने में विलम्ब होते देख जर्ब नर्मदा विवाह मंडप के निकट पहुंची तो दोनों को एक साथ हंसी-मजाक करते देख हतप्रभ रह गई। तभी उसने सोन की बेवफाई से क्षुब्ध होकर उसे पहाड़ से नीचे धकेल दिया और खुद पश्चिम दिशा की तरफ चल दी। इस प्रकार नर्मदा बिन ब्याही रह गई।
 
== ग्रंथों में उल्लेख ==