"बृजमोहन लाल मुंजाल": अवतरणों में अंतर

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''' बृजमोहन लाल मुंजाल ''' को [[भारत सरकार]] द्वारा सन [[२००५]] में [[उद्योग एवं व्यापार]] के क्षेत्र में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया था। ये [[दिल्ली]] राज्य से हैं।
{{२००५ पद्म भूषण}}
हीरो समूह के चेयरमैन बृजमोहन लाल मुंजाल ने अपनी
मेहनत, दूरदर्शिता से वह कर दिखाया, जो बहुत से
लोगों के लिए सिर्फ एक सपना ही रह जाता है।
उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत व लगन से आज अपनी टू-
व्हीलर कंपनी को इस क्षेत्र में विश्व की नंबर एक कंपनी
बना दिया है। आज बृजमोहन लाल मुंजाल हीरो
मोटोकॉर्प के चेयरमैन हैं। उनकी कुल संपत्ति 1.5 अरब
डॉलर है और वह भारत के 38वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं।
बृजमोहन लाल मुंजाल ने सपना देखा था कि परिवहन
का एक ऐसा सस्ता माध्यम बनाया जाए, जिसे
गरीबों के लिए अपनाना मुश्किल न हो। उनके भाई ने
उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने साइकिल
उद्योग स्थापित किया और उसे गरीबों का वाहन
बना दिया। इसके बाद बृजमोहन मुंजाल ने कभी पीछे
मुड़कर नहीं देखा।
मुंजाल 20 साल की उम्र में 1944 में अपने तीन भाइयों—
दयानंद, सत्यानंद और ओमप्रकाश के साथ पाकिस्तान
के कमालिया से अमृतसर आए और उन्होंने साइकिल के
कलपुर्जों का कारोबार शुरू किया। उनका जन्म
कमालिया में ही हुआ, जो अब पाकिस्तान में है।
बंटवारे से पहले ही वे अमृतसर चले आए और यहां छोटा-
मोटा काम करने लगे। बाद में वह लुधियाना चले गए,
जहां वह अपने तीन भाइयों के साथ साइकिलों के
पार्ट्स बेचने लगे। 1954 में उन्होंने पार्ट्स बेचने की
बजाए साइकिलों के हैंडल, फोर्क वगैरह बनाना शुरू
किया। उनकी कंपनी का नाम था ‘हीरो साइकिल्स
लिमिटेड’। 1956 में पंजाब सरकार ने साइकिलें बनाने
का लाइसेंस जारी किया। यह लाइसेंस उनकी कंपनी
को मिला और यहां से उनकी दुनिया बदल गई। सरकार
से 6 लाख रुपये की वित्तीय मदद और अपनी पूंजी के दम
पर हीरो साइकिल की नींव रखी। उस समय कंपनी की
सालाना उत्पादन क्षमता 7,500 साइकिलों की थी।
1986 में हीरो साइकिल को दुनिया की सबसे बड़ी
साइकिल कंपनी माना गया।
इसके बाद उन्होंने एक टू-व्हीलर कंपनी खोली, जिसका
नाम था हीरो मैजेस्टिक कंपनी। इसमें उन्होंने मैजेस्टिक
स्कूटर बनाने शुरू किए। 1984 में उन्होंने जापान की
बड़ी ऑटो कंपनी होंडा से करार किया और यहीं से
उनकी दुनिया ने फिर करवट बदली। उन्होंने होंडा के
साथ मिलकर हरियाणा के धारूहेड़ा में प्लांट लगाया।
13 अप्रैल 1985 में हीरो-होंडा की पहली बाइक
सीडी 100 बाजार में आई। 86 वर्षीय बृजमोहन मुंजाल
आज अपने बेटों पवन और सुनील के साथ हीरो समूह चला
रहे हैं।
टीम वर्क व मधुर संबंध
बृजमोहन लाल मुंजाल के अनुसार, किसी भी उद्यम को
आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छी और जुझारू टीम का
होना जरूरी है, क्योंकि किसी भी व्यावसायिक
लक्ष्य को पाने में 60-70 फीसदी योगदान टीम वर्क
का होता है। वह कहते हैं- मैं हर हफ्ते अपने बेटों को यह
कहना नहीं भूलता था कि वे अपने कर्मचारियों और
डीलरों के साथ मजबूत संबंध बनाएं। उन्होंने अपने 40
डीलरों को बड़े कारोबारियों में बदला है और उनके
बेटों ने उनसे एक कदम आगे बढ़कर इस आंकड़े को दोगुना
और फिर तिगुना कर दिया है।
धैर्य बनाएं रखें
किसी भी उद्यम के प्रारंभ में आने वाली कठिनाइयों
से निपटने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। ऐसा
अक्सर होता है कि आप कोई बिल जमा करने जाएं, धूप
में लंबी लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करें और
आपका नंबर आते-आते खिड़की बंद हो जाए। ऐसी
स्थिति में अपने भाग्य को मत कोसिए, बल्कि धैर्य के
साथ आगे की योजनाओं के बारे में सोचिए। एक
व्यवसायी के लिए आवश्यक है कि वह छोटी-छोटी
बाधाओं से परेशान होकर हताश न हो, बल्कि उनसे
सीख लेकर आगे बढ़े।
सिद्धांतों पर अडिग व अद्वितीय दृष्टिकोण
मुंजाल ने अपने परिवार और अपनी टीम को हमेशा
अपनी सफलता का क्रेडिट दिया। इस सफलता की
सीढ़ी को पाने के लिए उन्होंने अपने जीवन मैं सदैव
सिद्धांतों का पालन किया है। उनका दृष्टिकोण ही
था, जिसकी वजह से वे निराशा के वक्त भी आशा की
एक किरण ढूंढ़ ही लेते थे। उन्होंने नेतृत्व और समझदारी से
महान सम्मान भी अर्जित किए। उनका मानना था
कि दृष्टिकोण ही हमें दूसरों से अलग पहचान दिलाता
है और इससे मंजिल तक पहुंचना भी आसान हो जाता है।
ग्राहकों की नब्ज पहचानें
मुंजाल एक बार तकनीकी ज्ञान लेने जर्मनी गए थे। वहां
जो व्यक्ति उन्हें लेने आया था, उसने हवाई अड्डे से
होटल तक न सिर्फ उन्हें गीता के श्लोक सुनाए, बल्कि
वे स्थान भी दिखाए, जहां साइकिलें बनती थीं। उसे
पता था कि उससे मिलने आने वाला भारतीय है,
इसलिए वह उसी हिसाब से तैयारी करके आया था।
दरअसल सफल व्यवसायी के लिए ग्राहकों की सोच
को पकड़ना जरूरी है। हीरो ग्रुप ने इस मंत्र को अच्छी
तरह समझा और आज यह विश्व में दोपहिया वाहनों की
सबसे बड़ी कंपनी है।
खुद से पूछें क्या नया है
बृजमोहल लाल मुंजाल आज भी विज्ञापनों में ध्यान
खींचने वाली लाइनों के दीवाने हैं। 80 के दशक में
हीरो-होंडा का ‘फिल इट, शट इट, फॉरगेट इट’ मशहूर
हुआ था तो बाद में धक-धक गो, देश की धड़कन ने ले ली।
वे हमेशा लोगों से कहते हैं कि सपने मत देखिए अगर आप
उन्हें हकीकत में नहीं बदल सकते। छह साल की उम्र में एक
बार वे कमालिया (अब पाकिस्तान में) में नए-नए खुले
एक गुरुकुल में सिर्फ ये जानने चले गए कि पारंपरिक स्कूल
में आखिर होता क्या है। वे हर नई चीज में दिलचस्पी लेते
हैं और उसमें नया क्या है, उसको खोज निकालते और
पसंद आने पर अपना लेते हैं। वे हमेशा नएपन की तलाश में
रहते हैं, जो उनके निरंतर आगे बढ़ने का राज है।
 
 
[[श्रेणी:२००५ पद्म भूषण]]