"ज़फ़रनामा": अवतरणों में अंतर
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जफरनामा का शाब्दिक अर्थ है 'जीत की चिट्ठी'। गुरु गोविंद सिंह ने इसे मूलत: [[फारसी]] में लिखा है। इसमें मामूली परिवर्तन भी हुए हैं। अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद किये गये हैं। हिन्दी में इसका अनुवाद [[बालकृष्ण मुंजतर]] (कुरुक्षेत्र, १९९०) तथा जनजीवन जोत सिंह आनंद (देहरादून, २००६) ने किया। महेन्द्र सिंह ने गुरुमुखी में तथा सुरेन्द्र जीत सिंह ने अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया है। कुछ समय पूर्व नवतेज सिंह सरन ने भी इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। इस पत्र में फारसी में कुल १११ काव्यमय पद (शेर) हैं। जफरनामा में गुरु गोविंद सिंह ने वीरता तथा शौर्य से पूर्ण अपनी लड़ाइयों तथा क्रियाकलापों का रोमांचकारी वर्णन किया है। इस काव्यमय पत्र में एक-एक लड़ाई का वर्णन किसी में भी नवजीवन का संचार करने के लिए पर्याप्त है। इसमें [[खालसा पंथ]] की स्थापना, [[आनंदपुर साहिब]] छोड़ना, फतेहगढ़ की घटना, [[चालीस मुक्त|चालीस सिखों की शहीदी]], दो गुरु पुत्रों का दीवार में चुनवाया जाना तथा [[चमकौर का युद्ध|चमकौर के संघर्ष]] का वर्णन है। इसमें मराठों तथा राजपूतों द्वारा औरंगजेब की करारी हार का वृत्तांत भी शामिल किया गया है। साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को यह चेतावनी भी दी है कि उन्होंने पंजाब में उसकी (औरंगजेब की) पराजय की पूरी व्यवस्था कर ली है।
== स्वाभिमान और
गुरु गोविंद सिंह के जफरनामा में वर्णित मंतव्य को स्पष्ट करने के लिए उनके कुछ प्रमुख पदों का यहां भावार्थ देना उपयुक्त होगा। गुरु गोविंद सिंह ने जफरनामा का प्रारंभ ईश्वर के स्मरण से किया है। उन्होंने अपने बारे में लिखा है कि 'मैंने खुदा की कसम खाई है, जो तलवार, तीर-कमान, बरछी और कटार का खुदा है और युद्धस्थल में तूफान जैसे तेज दौड़ने वाले घोड़ों का खुदा है।' उन्होंने औरंगजेब को सम्बोधित करते हुए लिखा, 'उसका (ईश्वर का) नाम लेकर, जिसने तुम्हें बादशाहत दी और मुझे धर्म की रक्षा की दौलत दी है, मुझे वह शक्ति दी है कि मैं धर्म की रक्षा करूं और सच्चाई का झंडा ऊंचा हो।' गुरु गोविंद सिंह ने इस पत्र में औरंगजेब को 'धूर्त', 'फरेबी' और 'मक्कार' बताया। साथ ही उसकी इबादत को 'ढोंग' कहा तथा उसे अपने पिता तथा भाइयों का हत्यारा भी बताया।
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