"वाणिज्यवाद": अवतरणों में अंतर

नया पृष्ठ: '''वाणिज्यवाद''' (Mercantilism) १६वीं से १८वीं शदी में यूरोप में प्रचलित एक...
 
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==वाणिज्यवाद के दोष==
(1) '''पूँजीवाद''' - वाणिज्यवाद ने उद्योग-धंधों के प्रसार से पूंजीवाद को जन्म दिया। इस पूँजीवाद से यूरोपीय समाज में दो वर्गों का उदय हुआ- प्रथम पूँजीपतियों और उद्योगपतियों का वर्ग जिसने उत्पादन के साधनों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया, और द्वितीय सर्वहारा वर्ग जिसके पास स्वयं के स्वामित्व के उत्पादन के साधन नहीं होने से अपने श्रम को सस्त दामों पर बेचना पड़ता था। इससे कालांतर में पूँजीपति और सर्वहारा वर्ग में कहाकड़ा संघर्ष छिड़ गया, जिससे विद्रोह और क्रांतियाँ हुई तथा आर्थिक व्यवस्था डगमगा गयी।
 
(2) '''संकीर्ण राष्ट्रीयता''' - वाणिज्यवाद ने एक राष्ट्र को महत्व देकर उसकी समृद्धि के लिए दूसरे अन्य राष्ट्रों के शोषण का मार्ग प्रशस्त किया। एक राष्ट्र अधिक सशक्त और संपन्न हो गया और अन्य छोटे-छोटे देश शोषित होने से और गरीब हो गये। इस प्रकार संकीर्ण राष्ट्रीयता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
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(3) '''अन्तरराष्त्रीय व्यापारिक और औपनिवेशिक स्पर्धा''' - वाणिज्यवाद ने विभिन्न देशों में मधुर मैत्रीपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक और औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया, इससे विध्वंसकारी युद्ध हुए।
 
(4) '''सोने-चांदी के संचय की निरर्थकता''' - वाणिज्यवाद ने सोना-चांदी प्राप्त कर उसके संचय पर अधिक महत्व दिया। फलतः जिस वर्ग के पास स्वर्ण और चांदी संचित होते गये वह अपार धन सम्पत्ति के आधार पर अनैतिक, विलासी और भ्रष्ट हो गया। समाज में नैतिक मूल्य समाप्त हो गए। उद्योग धंधों के विकास होने पर यह तथ्य सामने आया कि किसी देश में सोने-चांदी के भण्डार की अपेक्षा [[लोहा]], [[इस्पात]], [[कोयला]], [[खनिज तेल]] आदि अधिक मूल्यवान है। इनके समुचित दोहन से राष्ट्र अधिक समृ़़़द्धसमृद्ध और शक्तिशाली होगा। इस सिद्धांत ने सोने-चांदी के भण्डार को निरर्थक कर दिया।
 
(5) '''कृषि की उपेक्षा''' - वाणिज्यवाद के समर्थकों ने उद्योग-धंधों और व्यवसायों के अधिकतम विकास पर बल दिया। इससे [[कृषि]] का क्षेत्र अविकसित और पिछड़ा रह गया। किसी भी देश की आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि और उद्योग-धंधों का संतुलित विकास होना चाहिए।
 
(6) '''लोक कल्याण का अभाव''' - वाणिज्यवाद ने राजनीतिक क्षेत्र में राज्य और शासक और आर्थिक क्षेत्र में उद्योग-धंधों और व्यापार को अधिक महत्व दिया। [[सर्वहारा वर्ग]] या दरिद्र जनता या आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के हित में, लोक कल्याण में कोई अभिरुचि नहीं ली, इसके लिए कोई योजना या सिद्धांत नहीं थे। वाणिज्यवाद में गरीबों, शिल्पियों, श्रमिकों का शोषण हुआ।
 
(7) '''राजसत्ता और राजभक्ति में वृद्धि''' - वाणिज्यवाद के समर्थकों, व्यापारियों और उद्योगपतियों ने शक्तिशाली राज्य का समर्थन किया क्योंकि उनके हित संवर्धन के लिए सशक्त राजा ही आंतरिक शांति और बाह्य सुरक्षा प्रदान कर सकता था। कालांतर में देश में धन की प्रचुरता और समृद्धि से बलशाली राजा निरंकुश स्वेच्छाचारी शासक हो गये। राजाओं और शासकों ने अपनी शक्तियों अधिकारों का दुरुपयोग किया। कालांतर में उनकी निरंकुशता के विरूद्ध विद्रोह हुए। उपरोक्त कारणों से वाणिज्यवाद के विरूद्ध तीव्र अंसतोष फैलने लगा और 19वीं सदी में परिवर्तित परिस्थितियों में इसके सिद्धांतों का विरोध हुआ। इन्हीं कारणों से वाणिज्यवाद का हृसह्रास हो गया।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[वाणिज्यिक क्रांति]]
 
[[श्रेणी:यूरोप का इतिहास]]