"समाजवाद": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=सितंबर 2011}}
'''समाजवाद''' (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक [[दर्शन]] है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं।
 
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ऑवेन के बाद ब्रिटेन में मजदूरों के अंदर चार्टिस्ट, (Chartist) विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ। यह आंदोलन मताधिकार प्राप्त कर संसद् पर अधिकार स्थापित करना और इस प्रकार राज्यशक्ति प्राप्त करने के बाद आर्थिक तथा सामाजिक सुधार करना चाहता था। आगे चलकर फेबियन तथा अन्य समाजवादियों ने इस संवैधानिक मार्ग का आश्रय लिया। परंतु फ्रांसीसी समाजवादी लुईज्लाँ (Louis Blonc, 1811-1882) क्रांतिकारी था। वह उद्योगों के समाजीकरण ही नहीं, मजदूरों के काम करने के अधिकार का भी समर्थक था। ""प्रत्येक अपनी सामथ्र्य के अनुसार कार्य करे और प्रत्येक को उसकी आवश्यकता के अनुसार प्राप्ति हो"" उसने इस साम्यवादी विचार का प्रचार किया।
 
[[कार्ल मार्क्स]] (1818-83) के साथी एंगिल्स ने उपर्युक्त आधुनिक समाजवादी विचारों को काल्पनिक समाजवाद का नाम दिया। इन विचारों का आधार भौतिक और वैज्ञानिक नहीं, नैतिक था; इनके विचारक ध्येय की प्राप्ति के सुधारवादी साधनों में विश्वास करते थे; और भावी समाज की विस्तृत परंतु अवास्तविक कल्पना करते थे।
 
=== [[मार्क्स]] का वैज्ञानिक समाजवाद ===
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=== फेबियसवाद ===
{{मुख्य|फ़ेबियन समाजवाद]]
[[ब्रिटेन]] में [[फेबियन सोसायटी]] की स्थापना सन् 1883-84 ई. में हुई। [[रॉवर्ट ऑवेन]] तथा [[चार्टिस्ट आंदोलन]] के प्रभाव से यहाँ स्वतंत्र मजदूर आंदोलन की नींव पड़ चुकी थी, फेबियन सोसाइटी ने इस आंदोलन को दर्शन दिया। इस सभा का नाम फेबियस कंकटेटर फेबियन (Fabius Cunctater) के नाम से लिया गया है। फेबियस प्राचीन [[रोम]] का एक सेनानी था जिसने कार्थेंज के प्रसिद्ध सेनानायक हन्नीबल (Hannibal) के विरुद्ध संघर्ष में धैर्य से काम लिया और गुरीला नीति द्वारा उसको कई वर्षों में परास्त किया। इसी प्रकार फेबियन समाजवादियों का विचार है कि पूँजीवाद को केवल एक मुठभेड़ में क्रांतिकारी मार्ग द्वारा परास्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए पर्याप्त काल तक सोच -विचार और तैयारी की आवश्यकता है। इनका तरीका विकास और सुधारवादी है। स्वतंत्र मजदूर दल की स्थापना के पूर्व ये ब्रिटेन के विभिन्न राजनीतिक दलों में प्रवेश कर अपना उद्देश्य पूरा करना चाहते थे। इनका मुख्य ध्येय चरम नैतिक संभावनाओं के अनुसार समाज का पुनर्निर्माण था। ये राज्य को वर्गशासन का यंत्र न मानकर एक सामाजिक यंत्र मानते हैं जिसके द्वारा समाजकल्याण और समाजवाद की स्थापना संभव है। इन विचारकों ने न केवल संसद् वरन् नगरपालिका और ग्रामीण क्षेत्रीय परिषदों द्वारा भी समाजवादी प्रयोगों का कार्यक्रम अपनाया। अत: इनके विचारों को लोकतंत्रीय, संसदीय, बैलट बक्स, चुंगी, विकास अथवा सुधारवादी समाजवाद की संज्ञा दी जाती है। इन विचारकों में प्रमुख [[सिडनी जेम्स वेव|सिडनी वेब]] (Sydney Webb), [[जाज बर्नाड शाँशॉ]], कोल (G. D. H. Cole), [[ऐनी बेसेंट]] (Anne Besant), [[ग्रहम वालस]] (Grahem Wallace) इत्यादि हैं। इन विचारकों पर ब्रिटिश परंपरा, [[उपयोगितावाद]], राबर्ट ऑवेन, ईसाई समाजवाद और चार्टिस्ट आंदोलन तथा जान[[जॉन स्टुआर्ट मिल]] के अर्थशास्त्रियों के विचारों का गहरा प्रभाव है।
 
=== जर्मनी का पुनरावृत्तिवाद ===
[[जर्मनी]] का '''[[पुनरावृत्तिवाद]]''' (revisionism) ब्रिटेन के फेबियसवाद तथा जर्मनी की परिवर्तित परिस्थतियों से प्रभावित हुआ था। जर्मनी और पूर्व यूरोपीय समाज का स्वरूप सामंतवादी तथा राज्य का प्रजातांत्रिक और निरंकुश था, अत: 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक यहाँ के समाजवादी विचार उग्र क्रांतिकारी तथा संगठन षड्यंत्रकारी थे। इन देशों पर मार्क्स के विचारों का प्रभाव था। परंतु 19वीं शताब्दी के अंत में जर्मनी में भी औद्योगिक उन्नति हुई और राज्य ने कुछ व्यक्तिगत तथा राजनीतिक अधिकार स्वीकार किए :किए। फलत: मजदूरों का जीवनस्तर ऊँचा हुआ तथा उनके राजनीतिक दल - सामाजिक लोकतंत्रवादी पार्टी (Social democratic party) का प्रभाव, भी बढ़ा। उसके अनेक सदस्य संसद् के सदस्य बन गए। इस स्थिति में यह बल सिद्धांतत: मार्क्स के क्रांतिकारी मार्ग को स्वीकार करते हुए भी व्यवहार में सुधारवादी हो गया। [[एडुआर्ड बर्नस्टाइन]] (Eduard Bernstein 1850-1932) ने इस वास्तविकता के आधार पर [[मार्क्सवाद]] के संशोधन का प्रयत्न किया। बर्नस्टाइन सामाजिक लोतंत्रवादी पार्टी का प्रमुख दार्शनिक और एंगिल्स का निकट शिष्य था। वह ब्रिटेन में कई वर्ष तक निर्वासित रहा और वहाँ फेबियसवाद से प्रभावित हुआ।
 
मार्क्स का कथन था कि परस्पर प्रतियोगिता और आर्थिक संकटों के कारण पूँजीवादी तथा मध्यवर्ग संकुचित होता जाएगा और मजदूर वर्ग निर्धन, विस्तृत, संगठित तथा क्रांतिकारी बनता जाएगा जिससे शीघ्र ही समाजवाद की स्थापना संभव हो सकेगी। स्थिति इसके विपरीत थी, जिसको बर्नस्टाइन ने स्वीकार किया और इस आधार पर उसने क्रांतिकारी कार्यक्रम के स्थान में तात्कालिक समाजसुधार और समाजवाद की सफलता के लिए वर्गसंघर्ष के स्थान में श्रेणीसहयोगश्रेणी-सहयोग तथा संसदात्मक और संवैधानिक मार्ग पर जोर दिया। वह मार्क्स के [[ऐतिहासिक भौतिकवाद]] के स्थान पर नैतिक तथा अनार्थिक (non-economic) तत्वों के प्रभाव को भी स्वीकार करने लगा। बर्नस्टाइन के विचारों को '''पुनरावृत्तिवाद''' को नाम दिया गया। यद्यपि जर्मन मजदूर आंदोलन व्यवहार में सुधारवादी रहा तथापि कार्ल कौटस्की (Karl Kautsky 1854-1938) के नेतृत्व में उसने बर्नस्टाइन के संशोधनों का अस्वीकार करके मार्क्स के विचारों में विश्वास प्रकट किया।
 
== समूहवाद बनाम अराजकतावाद ==
फेबियसवादी और पुनरावृत्तिवादी विचारक समाजवाद की स्थापना के लिए राज्य को आवश्यक समझते हैं। साम्यवादी विचारक भी संक्रमण काल के लिए ऐडम की शक्ति का प्रयोग करना चाहते हैं। अत: इनको '''समूहवादी''' (Collectivist) कहा जाता है। अराजकतावादी विचारक भी पूँजीवाद विरोधी और समाजवाद के समर्थक हैं परंतु वे राज्य, राजनीति और धर्म को शोषणव्यवस्था का समर्थक मानते हैं और आरंभ से ही इनका अंत कर देना चाहते हैं। अराजकतावाद जीवन और आचरण का एक सिद्धांत है जो शासनविहीन समाज की कल्पना करता है। यह समाज के ऐक्य की स्थापना शासन और कानून द्वारा नहीं, वरन् व्यक्ति तथा स्थानीय और व्यावसायिक समूहों के स्वतंत्र समझौतों द्वारा करना चाहता है। इस विचार के अनुसार उपर्युक्त समूहों द्वारा उत्पादन, वितरण आदि की अनेक मानव आवश्यकताएँ पूरी हो सकती हैं।
 
अराजकता शब्द के फ्रांसीसी रूपांतर का प्रयोग पहली बार फ्रांसीसी क्रांति के समय (1789) उन क्रांतिकारियों के लिए किया गया था जो सामंतों की जमीन को जब्त करके किसानों में बाँटना और धनिकों की आय को सीमित करना चाहते थे। तत्पश्चात् सन् 1840 में फ्रांसीसी विचारक [[प्रुधों]] (Proudhon) ने अपनी पुस्तक ""संपत्ति क्या है?"" में इस शब्द का प्रयोग किया। सन् 1871 के बाद जब अंतरराष्ट्रीय मजदूर संघ में फूट पड़ी तब मार्क्स के संघवादी विरोधियों को अराजकतावादी कहा गया। आए दिन की भाषा में आतंकवाद और अराजकतावाद पर्यायवाची शब्द हैं; परंतु वस्तुत: दार्शनिक अराजकतावादी केवल राजकीय दमन के विरुद्ध ही आतंक और क्रांतिकारी उपायों के पक्ष में हैं।
 
संसार का प्रथम अराजकतावादी विचारक चीनी दार्शनिक [[लाओ त्से]] (Lao Tse) माना जाता है। प्राचीन यूनान के विचारक अरिस्टीप्पस (Aristippus) और जीनो (Zeno) के दर्शन में भी इन विचारों का पुट है। ब्रिटेन का गोडविन (Godwin) और फ्रांसीसी प्रूधों राज्य और शासनसंस्थाओं-न्यायालय आदि का विरोध करते थे। प्रूधों के अनुसार संपत्ति चोरी का माल है। वह श्रम के आधार पर पण्य विनिमय और लेनदेन में एक प्रतिशत सूदब्याज की दर के पक्ष में था।
 
इस संबंध में रूस के तीन अराजकतावादियों के विचार महत्वपूर्ण हैं। बाकूनिन (Bakunin) क्रांतिकारी अराजकतावादी था, पिं्रस क्रॉपोटकिन (Kropotkin 1842-1921) वैज्ञानिक अराजकतावादी तथा लिआ[[लिओ टाल्सटाय]] (Leo Tolstoy) ईसाई अराजकतावादी। बाकूनिन राज्य को एक आवश्यक दुर्गुण और पिछड़ेपन का चिन्ह तथा संपत्ति और शोषण का पोषक मानता था। राज्य व्यक्ति की स्वाधीनता, उसकी प्रतिभा और क्रयशक्ति, उसके विवेक और नैतिकता को सीमित करता है। इस प्रकार अराजकतावाद व्यक्तिवाद की चरम सीमा है। बाकूनिन क्रांतिकारी मार्ग द्वारा राज्य और उसकी संस्थाओं पुलिस, जेल, न्यायालय आदि का अंत कर स्वतंत्र स्थानीय संस्थाओं की स्थापना के पक्ष में था। ये समुदाय पारस्परिक सहयोग के लिए अपना राष्ट्रीय संघ स्थापित कर सकते थे। रूसो और कांट (Kant) भी इसी प्रकार के स्वतंत्र समुदायों और संघों के समर्थक थे।
 
क्रॉपोटकिन ने वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा यह सिद्ध किया कि समाज का विकास स्वतंत्र सहयोग की ओर है। शिल्पिक उन्नति के कारण मनुष्य बहुत कम श्रम द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगा और शेष समय स्वतंत्र जीवन व्यतीत करेगा। मनुष्य स्वभावत: सामाजिक, अत: सहयोगी प्राणी है। स्वतंत्रता और सहयोग की वृद्धि के साथ साथ राज्य की आवश्यकता कम हो जाएगी।
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== गिल्ड (संघ) समाजवाद ==
गिल्ड समाजवाद सिंडिकवाद की प्रतिलिपि मात्र नहीं, उसका ब्रिटिश परिस्थितियों में अभ्यनुकूलन (adaptation) है। गिल्ड समाजवाद के ऊपर स्वाधीनता की परंपरा और फेबियसवाद का भी प्रभाव है। इसका नाम यूरोप के मध्यकालीन व्यावसायिक संघ (ÊMɱb÷) संगठनों से लिया गया है। उस समय से संघ आर्थिक और सामाजिक जीवन पर हावी थे और विभिन्न संघों के प्रतिनिधि नगरों का शासन चलाते थे। गिल्ड समाजवादी उपर्युक्त संघ व्यवस्था से प्रेरणा ग्रहण करते थे। वे राजनीतिक क्षेत्र और उद्योग धंधों में लोकतंत्रात्मक सिद्धांत और स्वायत्तशासन स्थापित करना चाहते थे। ये विचारक उद्योगों के राष्ट्रीयकरण मात्र से संतुष्ट नहीं क्योंकि इससे नौकरशाही का भय है परंतु वे राज्य का अंत भी नहीं करना चाहते। राज्य को अधिक लोकतंत्रात्मक और विकेंद्रित करने के बाद वे उसको देशरक्षा और भोक्ता (consumer) के हितसाधान के लिए रखना चाहते हैं। उनके अनुसार राजकीय संसद् में केवल क्षेत्रीय ही नहीं, व्यावसायिक प्रतिनिधित्व भी होना चाहिए। ये राज्य और उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण चाहते हैं अत: सिंडिकवाद के निकट हैं परंतु राज्यविरोधी न होने के कारण इनका झुकाव समूहवाद की ओर भी है। ये असफलता के भय से क्रांतिकारी मार्ग को स्वीकार नहीं करते लेकिन केवल वैधानिक मार्ग को भी अपर्याप्त समझते हैं और मजदूरों के सक्रिय आंदोलन, हड़ताल आदि का भी समर्थन करते हैं।
 
प्रथम महायुद्ध के पूर्व और उसके बीच में इस विचारधारा का प्रभाव बढ़ा। युद्ध के समय मजदूरों ने रक्षा-उद्योगों पर नियंत्रण की माँग की और उसके बाद मजदूर संघों ने स्वयं मकान बनाने के ठेके लिए, परंतु कुछ काल बाद सरकारी सहायता न मिलने पर ये प्रयोग असफल हुए। गिल्ड समाजवाद के प्रमुख समर्थकों में आर्थर पेंटी (Arther Penty), हाब्सन (Hobson), ऑरेंज (Orange) और कोल (Cole) के नाम उल्लेखनीय हैं। ब्रिटेन का मजदूर दल और मजदूर आंदोलन इस विचारधारा से विशेष प्रभावित हुए हैं।
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== भारतीय समाजवाद ==
मुख्य लेख [[भारतीय समाजवाद]] देखिये।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[पेरिस कम्यून]]
*[[साम्यवाद]]
*[[पूँजीवाद]]
 
== बाहरी कड़ी ==