"सनातन धर्म के संस्कार": अवतरणों में अंतर

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यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं अर्थात् यज्ञोपवीत जिसे जनेऊ भी कहा जाता है अत्यन्त पवित्र है। प्रजापति ने स्वाभाविक रूप से इसका निर्माण किया है। यह आयु को बढ़ानेवाला, बल और तेज प्रदान करनेवाला है। इस संस्कार के बारे में हमारे धर्मशास्त्रों में विशेष उल्लेख है। यज्ञोपवीत धारण का वैज्ञानिक महत्व भी है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी उस समय प्राय: आठ वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हो जाता था। इसके बाद बालक विशेष अध्ययन के लिये गुरुकुल जाता था। यज्ञोपवीत से ही बालक को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती थी जिसका पालन गृहस्थाश्रम में आने से पूर्व तक किया जाता था। इस संस्कार का उद्देश्य संयमित जीवन के साथ आत्मिक विकास में रत रहने के लिये बालक को प्रेरित करना है।
 
कुछ मूर्ख ये मानते है....की जनेऊ केवल पंडित जाती के लोग ही धारण कर सकते है। तो ये सोच उनकी गलत है वेद व् पुराण के अनुसार जनेऊ किसी भी धर्म जाती व् वर्ग के लोग धारण कर सकते है। बौद्ध धर्म में भी इस का प्रचालन है तथा सरदार भी इसे धारण करते है। यहाँ तक को स्त्री भी इसे भरण कर सकती है जो इसके कड़े नियम का पालन कर सके।
कुछ लोग तर्क देते है की वेद में तो ब्राम्हण लिखा है तो ये बता दू की ब्राम्हण का अर्थ है ब्रह्म को जानने वाला यानि ज्ञानी पुरुष इसका अर्थ है वो व्यक्ति जो ज्ञानी हो वो जनेऊ धारण करे न की किसी विशेष जाती के लोग ब्राम्हण कोई भी हो सकता है। इस चर्चा पर कोर्ट ने भी जनेऊ को किसी भी वर्ग में पेहेन्ने का अधिकार माना है। साथ ही स्त्रियो को भी स्वीकृति दी है। मै एक ब्राम्हण हु जाती से भी और कर्म से भी
-पंडित रामदास
 
== [[वेदारम्भ]] ==