"समाजवाद": अवतरणों में अंतर

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=== जर्मनी का पुनरावृत्तिवाद ===
{{मुख्य|पुनरावृत्तिवाद}}
[[जर्मनी]] का '''[[पुनरावृत्तिवाद]]''' (revisionism) ब्रिटेन के फेबियसवाद तथा जर्मनी की परिवर्तित परिस्थतियों से प्रभावित हुआ था। जर्मनी और पूर्व यूरोपीय समाज का स्वरूप सामंतवादी तथा राज्य का प्रजातांत्रिक और निरंकुश था, अत: 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक यहाँ के समाजवादी विचार उग्र क्रांतिकारी तथा संगठन षड्यंत्रकारी थे। इन देशों पर मार्क्स के विचारों का प्रभाव था। परंतु 19वीं शताब्दी के अंत में जर्मनी में भी औद्योगिक उन्नति हुई और राज्य ने कुछ व्यक्तिगत तथा राजनीतिक अधिकार स्वीकार किए। फलत: मजदूरों का जीवनस्तर ऊँचा हुआ तथा उनके राजनीतिक दल - सामाजिक लोकतंत्रवादी पार्टी (Social democratic party) का प्रभाव, भी बढ़ा। उसके अनेक सदस्य संसद् के सदस्य बन गए। इस स्थिति में यह बल सिद्धांतत: मार्क्स के क्रांतिकारी मार्ग को स्वीकार करते हुए भी व्यवहार में सुधारवादी हो गया। [[एडुआर्ड बर्नस्टाइन]] (Eduard Bernstein 1850-1932) ने इस वास्तविकता के आधार पर [[मार्क्सवाद]] के संशोधन का प्रयत्न किया। बर्नस्टाइन सामाजिक लोतंत्रवादी पार्टी का प्रमुख दार्शनिक और एंगिल्स का निकट शिष्य था। वह ब्रिटेन में कई वर्ष तक निर्वासित रहा और वहाँ फेबियसवाद से प्रभावित हुआ।
 
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क्रॉपोटकिन ने वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा यह सिद्ध किया कि समाज का विकास स्वतंत्र सहयोग की ओर है। शिल्पिक उन्नति के कारण मनुष्य बहुत कम श्रम द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकेगा और शेष समय स्वतंत्र जीवन व्यतीत करेगा। मनुष्य स्वभावत: सामाजिक, अत: सहयोगी प्राणी है। स्वतंत्रता और सहयोग की वृद्धि के साथ साथ राज्य की आवश्यकता कम हो जाएगी।
 
[[टाल्सटाय]] भी राज्य और व्यक्तिगत संपत्ति का विरोधी था, परंतु वह हिंसात्मक तथा क्रांतिकारी मार्ग का पोषक नहीं वरन् ईसाई और अंहिसात्मक तरीकों का समर्थक था। वह बुद्धिसंगत ईसाई था, अंधविश्वासी नहीं। [[महात्मा गाँधी|गांधीजी]] के विचारों पर टाल्सटाय की गहरी छाप है।
 
अराजकतावादियों का विचार है कि मनुष्य स्वभाव से अच्छा है और यदि उसके ऊपर राज्य का नियंत्रण न रहे तो वह समाज में शांतिपूर्वक रह सकता है। राज्य के रहते हुए मनुष्य का बौद्धिक, नैतिक और रागात्मक विकास संभव नहीं। इनके अनुसार राजकीय समाजवाद (समूहवाद) नौकरशाहीवाद और राजकीय पूँजीवाद है। ये युद्ध और सैन्यवाद (militarisrn) के विरोधी और विकेंद्रीकरण के पक्ष में हैं।
 
[[अराजकतावाद]] से बुद्धिजीवी और मजदूर, दोनों ही प्रभावित हुए हैं। अनेक लेखक और दार्शनिकों ने स्वाधीनता संबंधी विचारों को स्वीकार किया है। इनमें जॉन स्टुआर्ट मिल, हरबर्ट स्पेंसर, हैरोल्ड लास्की और बट्रेंड रसल के नाम मुख्य हैं। इस विचारधारा के बुद्धिजीवी समर्थक फ्रांस, स्पेन, इटली, रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य अमरीका आदि अनेक देशों में पाए जाते थे, परंतु फ्रांस और ब्रिटेन के मजदूर आंदोलनों ने भी इन विचारों को संशोधित रूप में स्वीकार किया। इसके फ्रांसीसी स्वरूप का नाम सिंडिकवाद (Syndicalism) और ब्रिटिश का गिल्ड समाजवाद (Guild Socialism) है।
 
== सिंडिकवाद ==
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ध्येय की प्राप्ति का सिंडिकावादी मार्ग क्रांति है, परंतु इस क्रांति के लिए भी वह राजनीतिक दल को अनावश्यक समझता है क्योंकि इसके द्वारा मजदूरों की क्रांतिकारी इच्छा के कमजोर हो जाने का भय है। इसका हड़तालों में अटूट विश्वास है। सोरेल के अनुसार ईसाई पौराणिक पुनरुत्थान (Resurrection) की भाँति यह भी मजदूरों पर जादू का असर करती है और उनके अंदर ऐक्य और क्रांति की भावनाओं को प्रोत्साहन देती है। ये विचारक मशीनों की तोड़फोड़, बाइकाट, पूँजीपति की पैदावार को बदनाम करना, काम टालना आदि के पक्ष में भी हैं। अंत में एक आम हड़ताल द्वारा पूँजीवादी व्यवस्था का अंत कर ये सिंडिकवादी समाज को स्थापना करना चाहते हैं।
 
इन विचारों से अनेक लातीनी (Latin) देश फ्रांस, इटली, स्पेन, मध्य और दक्षिण अमरीका प्रभावित हुए हैं। इनका असर संयुक्त राज्य अमरीका में भी था, परंतु वहाँ विकेंद्रीकरण पर जोर नहीं दिया गया क्योंकि उस देश में बड़े पैमाने के उद्योग एक वास्तविकता थे। रूसी विचारक पिं्रसप्रिंस क्रॉपोटकिन ने इससे प्रेरणा प्राप्त की और ब्रिटेन ने इसको संशोधित रूप में स्वीकार किया।
 
== गिल्ड (संघ) समाजवाद ==
{{मुख्य|श्रेणी समाजवाद}}
 
गिल्ड समाजवाद सिंडिकवाद की प्रतिलिपि मात्र नहीं, उसका ब्रिटिश परिस्थितियों में अभ्यनुकूलन (adaptation) है। गिल्ड समाजवाद के ऊपर स्वाधीनता की परंपरा और फेबियसवाद का भी प्रभाव है। इसका नाम यूरोप के मध्यकालीन व्यावसायिक संगठनों से लिया गया है। उस समय से संघ आर्थिक और सामाजिक जीवन पर हावी थे और विभिन्न संघों के प्रतिनिधि नगरों का शासन चलाते थे। गिल्ड समाजवादी उपर्युक्त संघ व्यवस्था से प्रेरणा ग्रहण करते थे। वे राजनीतिक क्षेत्र और उद्योग धंधों में लोकतंत्रात्मक सिद्धांत और स्वायत्तशासन स्थापित करना चाहते थे। ये विचारक उद्योगों के राष्ट्रीयकरण मात्र से संतुष्ट नहीं क्योंकि इससे नौकरशाही का भय है परंतु वे राज्य का अंत भी नहीं करना चाहते। राज्य को अधिक लोकतंत्रात्मक और विकेंद्रित करने के बाद वे उसको देशरक्षा और भोक्ता (consumer) के हितसाधान के लिए रखना चाहते हैं। उनके अनुसार राजकीय संसद् में केवल क्षेत्रीय ही नहीं, व्यावसायिक प्रतिनिधित्व भी होना चाहिए। ये राज्य और उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण चाहते हैं अत: सिंडिकवाद के निकट हैं परंतु राज्यविरोधी न होने के कारण इनका झुकाव समूहवाद की ओर भी है। ये असफलता के भय से क्रांतिकारी मार्ग को स्वीकार नहीं करते लेकिन केवल वैधानिक मार्ग को भी अपर्याप्त समझते हैं और मजदूरों के सक्रिय आंदोलन, हड़ताल आदि का भी समर्थन करते हैं।
 
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== ईसाई समाजवाद ==
{{मुख्य|ईसाई समाजवाद}}
ईसाई समाजवाद के मुख्य प्रचारक ब्रिटेन के जान मेलकम लुडलो (John Malcohm Luldow 1821-1911), फ्रांस के बिशप क्लाड फॉशे (Claude Fauchet) और जर्मनी के विक्टर आइमे ह्यूबर (Victor Aime Huber) हैं। पूँजीवादी शोषण द्वारा मजदूरों की दुर्दशा देखकर इन विचारकों ने इस व्यवस्था की आलोचना की और मजदूरों में सहकारी आंदोलन का प्रचार किया। उन्होंने उत्पादक तथा भोक्ता सहकारी समितियों की स्थापना भी की। ईसाई समाजवाद का प्रभाव ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के अतिरिक्त आस्ट्रिया तथा बेल्जियम में भी था।
 
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*[[साम्यवाद]]
*[[पूँजीवाद]]
*[[फेबियन समाजवाद]]
*[[श्रेणी समाजवाद]]
*[[पुनरावृत्तिवाद]] या [[संशोधनवाद]]
*[[ईसाई समाजवाद]]
*[[साम्यवाद]]
*[[अराजकतावाद]]
 
== बाहरी कड़ी ==