"कात्यायन (वररुचि)": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) छो वररुचि कात्यायान का नाम बदलकर कात्यायान (वररुचि ) कर दिया गया है |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 6:
कात्यायन वररुचि के वार्तिक पढ़ने पर कुछ तथ्य सामने आते हैं - यद्यपि अधिकांश स्थलों पर कात्यायन ने पाणिनीय सूत्रों का अनुवर्ती होकर अर्थ किया है, तर्क वितर्क और आलोचना करके सूत्रों के संरक्षण की चेष्टा की है, परंतु कहीं-कहीं सूत्रों में परिवर्तन भी किया है और यदा-कदा पाणिनीय सूत्रों में दोष दिखाकर उनका प्रतिषेध किया है और जहाँ तहाँ कात्यायन को परिशिष्ट भी देने पड़े हैं। संभवत: इसी वररुचि कात्यायन ने वेदसर्वानुक्रमणी और प्रातिशाख्य की भी रचना की है। कात्यायन के बनाए कुछ भ्राजसंज्ञक श्लोकों की चर्चा भी महाभाष्य में की गई है। कैयट और नागेश के अनुसार भ्राजसंज्ञक श्लोक वार्तिककार के ही बनाए हुए हैं।
==इन्हें भी देखें==
* [[विश्वामित्रवंशीय कात्यायन]] - जिन्होंने श्रोत, गृह्य और प्रतिहार सूत्रों की रचना की।
* [[गोमिलपुत्र कात्यायन]] - जिन्होंने छंदोपरिशिष्टकर्मप्रदीप की रचना की।
[[श्रेणी:संस्कृत आचार्य]]
[[श्रेणी:ऋषि मुनि]]
|