"यूरोपीय ज्ञानोदय": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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प्रबोधन युग के चिंतकों ने मानव के खुशी और भलाई पर बल दिया। उसके अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही विवेकशील और अच्छा है किन्तु स्वार्थी धर्माधिकारियों और उनके बनाए गए नियमों ने मनुष्य को भ्रष्ट कर दिया यदि मनुष्य अपने को इन स्वार्थी धर्माधिकारियों के चुंगल से मुक्त कर सके तो एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सकती है। प्रबोधन के चिंतको का मानना था कि दुनिया मशीन की तरह है जिनका नियंत्रण व संचालन कुछ खास नियमों के तहत् होता है। फलस्वरूप उन्हें आशा बनी कि इस अंतर्निहित नियमों को खोज वे ब्रह्माण्ड के रहस्य को समझ लेंगे और फिर उस पर काबू पा लेंगे। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को अपने पर्यावरण पर नियंत्रण स्थापित करने में समर्थ बना देना था ताकि वे प्राकृतिक शक्तियों की विध्वंसात्मक शक्तियों से अपनी रक्षा कर सके साथ ही साथ प्रकृति की ऊर्जा का मानव जाति के फायदे के लिए इस्तेमाल कर सके। [[आइजक न्यूटन|न्यूटन]] ने प्रकाश के मौलिक रहस्यों का पता लगाया और प्रकाश विज्ञान की स्थापना की। बेंजामिन फ्रैंकलिन सहित कई लोगों ने विद्युत की खोज में अपना योगदान दिया।
===[[देववाद]]===
===समानता एवं स्वतंत्रता पर बल===
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