"अरण्यकाण्ड": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1:
[[अरण्यकाण्ड]] [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] का एक भाग ([[काण्ड]]) है ।
 
कुछ काल के पश्चात [[राम]] ने [[चित्रकूट]] से प्रयाण किया तथा वे [[अत्रि]] ऋषि के आश्रम पहुँचे। [[अत्रि]] ने [[राम]] की स्तुति की और उनकी पत्नी [[अनसूया]] ने [[सीता]] को [[पातिव्रत धर्म]] के मर्म समझाये। वहाँ से फिर [[राम]] ने आगे प्रस्थान किया और [[शरभंग]] मुनि से भेंट की। [[शरभंग]] मुनि केवल [[राम]] के दर्शन की कामना से वहाँ निवास कर रहे थे अतः [[राम]] के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और [[ब्रह्मलोक]] को गमन किया। और आगे बढ़ने पर [[राम]] को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े जिनके विषय में मुनियों ने [[राम]] को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों को खा डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं। इस पर [[राम]] ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को [[राक्षस]] विहीन कर देंगे। [[राम]] और आगे बढ़े और पथ में [[सुतीक्ष्ण]], [[अगस्त्य]] आदि ऋषियों से भेंट करते हुये [[दण्डक वन]] में प्रवेश किया जहाँ पर उनकी मुलाकात [[जटायु]] से हुई। [[राम]] ने [[पंचवटी]] को अपना निवास स्थान बनाया।