"जर्मनी का एकीकरण": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Wernerprokla.jpg|right|thumb|300px|१८ जनवरी १८७१ को [[वर्सेली]] के 'हॉल ऑफ मिरर्स' में [[जर्मन साम्राज्य]] की स्थापना]]
 
मध्य यूरोप के स्वतंत्र राज्यों (प्रशा, बवेरिआ, सैक्सोनी आदि) को आपस में मिलाकर १८७१ में एक राष्ट्र-राज्य व [[जर्मन साम्राज्य]] का निर्माण किया गया। इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का नाम '''जर्मनी का एकीकरण''' है। इसके पहले यह भूभाग (जर्मनी) ३९ राज्यों में बंटा हुआ था। इसमें से [[ऑस्ट्रियाई साम्राज्य]] तथा प्रशा राजतंत्र अपने आर्थिक तथा राजनीतिक महत्व के लिये प्रसिद्ध थे।
 
==परिचय==
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वियना कांग्रेस द्वारा जर्मन-राज्यों की जो नवीन व्यवस्था की गयी, उसके अनुसार उन्हें शिथिल संघ के रूप में संगठित किया गया और उसका अध्यक्ष ऑस्ट्रिया को बनाया गया। राजवंश के हितों को ध्यान में रखते हुए विविध जर्मन राज्यों का पुनरूद्धार किया गया। इन राज्यों के लिए एक संघीय सभा का गठन किया गया, जिसका अधिवेशन [[फ्रेंकफर्ट]] में होता था। इसके सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित न होकर विभिन्न राज्यों के राजाओं द्वारा मनोनीत किए जाते थे। ये शासक नवीन विचारों के विरोधी थे और राष्ट्रीय एकता की बात को नापसंद करते थे किन्तु जर्मन राज्यों की जनता में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना विद्यमान थी। यह नवीन व्यवस्था इस प्रकार थी कि वहाँ आस्ट्रिया का वर्चस्व विद्यमान था। इस जर्मन क्षेत्र में लगभग 39 राज्य थे जिनका एक संघ बनाया गया था।
 
जर्मनी के विभिन्न राज्यों में चुंगीकर के अलग-अलग नियम थे, जिनसे वहां के व्यापारिक विकास में बड़ी अड़चने आती थीं । इस बाधा को दूर करने के लिए जर्मन राज्यों ने मिलकर चुंगी संघ का निर्माण किया। यह एक प्रकार का व्यापारिक संघ था, जिसका अधिवेशन प्रतिवर्ष होता था। इस संघ का निर्णय सर्वसम्मत होता था। अब सारे जर्मन राज्यों में एक ही प्रकार का सीमा ॉाल्क-शुल्क लागू कर दिया गया। इस व्यवस्था से जर्मनी के व्यापार का विकास हुआ, साथ ही इसने वहाँ एकता की भावना का सूत्रपात भी किया। इस प्रकार इस आर्थिक एकीकरण से राजनीतिक एकता की भावना को गति प्राप्त हुई। वास्तव में, जर्मन राज्यों के एकीकरण की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम था।
 
===फ्रांस की क्रान्तियों का प्रभाव===
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===स्पेन की राजगद्दी का मामला===
इसी बीच स्पेन में उत्तराधिकार का प्रश्न उपस्थित हो गया, जिससे वहां [[गृहयुद्ध]] प्रारंभ हो गया। 1863 ई. में स्पेन की जनता ने विद्रोह करके रानी ईसाबेला द्वितीय को देश से निकाल दिया और उसके स्थान पर प्रशा के सम्राट के रिश्तेदार लियोपोर्ल्ड को वहाँ का नया शासक बनाने का विचार किया। नेपोलियन इसके तैयार न था, क्योंकि ऐसा होने से स्पेन पर भी प्रशा का प्रभाव स्थापित हो जाता। फ्रांस के विरोध को देखते हुए लियोपोल्ड ने अपनी उम्मीदवारी का परित्याग कर दिया। किन्तु फ्रांस इससे संतुष्ट नहीं हुआ। उसने यह आश्वासन चाहा कि भविष्य में भी प्रशा का कोई राजकुमार स्पेन का शासक नहीं होगा। यह नेपोलियन की मनमानी और प्रशा का अपमान था। अतः इस घटना के कारण 15 जुलाई 1870 ई. को फ्रांस ने प्रशा के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
 
यह युद्ध [[सीडान]] के मैदान में लड़ा गया, जिसमें नेपोलियन तृतीय पराजित कर दिया गया। जर्मन सेनाएँ फ्रांस के अंदर तक घुस गयीं। 20 जनवरी 1871 ई. को पेरिस के पतन के पश्चात युद्ध समाप्त हो गया। अंततः दोनों के बीच एक संधि हुई, जो इतिहास में ‘फेंकफर्ट की संधि’ के नाम से विख्यात हुआ। इसकी शर्तें इस प्रकार थीं-