"इतालवी एकीकरण": अवतरणों में अंतर

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==कैबूर का योगदान==
इटली के एकीकरण मेंं जिस व्यक्ति का सर्वाधिक योगदान था, उसका नाम [[काउंट केमिलो डी कैबूर]] था। वह अपने युग का एक महत्वपूर्ण और कुशल कूटनीतिज्ञ था। उसका जन्म 1810 ई. में ट्यूरिन के एक जमींदार परिवार में हुआ था। उसने अपना जीवन एक सैनिक के रूप में आरंभ किया, पर बाद में उसने उसका परित्याग कर दिया। वह वैध राजसत्ता का समर्थक था और इंग्लैण्ड की संसदीय प्रणाली से प्रभावित था। उसका प्रभाव देश में धीरे-धीरे बढ़ता गया। 1848 ई. में वह देश की संसद का सदस्य बना। अपनी योग्यता के बल पर वह 1852 ई. में पीडमाँट का प्रधानमंत्री बन गया। प्रधानमंत्री बनते ही उसने पीडमाँट की उन्नति की ओर विशेष ध्यान दिया। वह व्यावहारिक और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति था। उसने परिस्थितियों के अनुसार कार्य करके इटली के एककीरण के कार्य को संभव बनाया।
 
===गृह नीति ===
कैबूर की यह मान्यता थी कि जब तक राज्य मजबूत नहीं होगा, तब तक वह अपने संघर्षों में सफल नहीं हो सकेगा। इसलिए सर्वप्रथम उसने पीडमाँट को एकीकरण का नेतृत्व प्रदान करने के लिए उसे मजबूत बनाने का प्रयास किया। राज्य को सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से उसने अनेक सुधारों को क्रियान्वित किया। व्यापार और व्यवसाय के विकास लिए उसके द्वारा विशेष प्रयास किये गये। उसने व्यापार के क्षेत्र में ‘‘खुला छोड़ दो’’ की नीति का अनुसरण करते हुए व्यवसाय को राजकीय संरक्षण प्रदान किया। उसके मार्ग-दर्शन में यातायात के साधनों के विकास को मजूबत बनाया गया और कृषि के क्षेत्र को विकसित किया गया। शिक्षा की उन्नति की ओर भी विशेष ध्यान दिया गया। उसने सेना और कानून के क्षेत्र में भी नये सुधारों को क्रियान्वित किया। बैंक संबंधी नियमों में अनुकूल सुधार किये गये। इस प्रकार उसने प्रशासन के सभी अंगों को सुधार कर राज्य के प्रशासन को गतिशील और मजबूत बनाया। उसके इन प्रयासों के कारण पीडमाँट राज्य की बहुमुखी उन्नति हुई और अब वह एक सशक्त राज्य बन गया। अपनी बुनियाद को मजबूत कर लेने के बाद उसने सभी वर्ग के लोगों से सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि मेजिनी और गैरीबॉल्डी जैसे नेता उससे सहयोग करने के लिए तैयार हो गये। इस प्रकार राष्ट्रीय एकीकरण के कार्य में वह बहुसंख्यक जनता का सहयोग प्राप्त करने में सफल हुआ।
 
कैबूर एक समझदार और व्यवहारिक व्यक्ति था। उसने यह अनुभव किया कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विदेश सहायता आवश्यक है। सौभाग्य की बात थी कि वह अपने इस उद्देश्य में भी सफल हुआ। वह इटली में आस्ट्रिया के प्रभाव को समाप्त करने का इच्छुक था, क्योंकि इसके बिना वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकता था। वह भलीभांति समझ गया था कि आस्ट्रिया के खिलाफ यदि कोई यूरोपीय राज्य तत्परता से सहयोग प्रदान कर सकता है, तो वह फ्रांस है। अतः उसने फ्रांस को खुश करने का प्रयास किया। इसके लिए उसने क्रीमिया के युद्ध में फ्रांस की सहायता की। यह युद्ध 1854 ई. में पूर्वी समस्या के प्रश्न लेकर लड़ा गया था। इसकी समाप्ति 1856 ई. में पेरिस की संधि द्वारा हुई। पेरिस की संधि पर विचार-विमर्श करने के लिए जिस सम्मेलन का आयोजन किया गया, उसमें कैबूर भी उपस्थित हुआ। वह उस सम्मेलन में इटालियन स्वाधीनता के दावे को कुशलतापूर्वक प्रस्तुत करने में सफल हुआ। उसने देश की दयनीय स्थिति के लिए आस्ट्रिया को जिम्मेदार ठहराते हुए इटली से उसके प्रभाव को समाप्त करने की वकालत की। उसके द्वारा दिए गए तर्कों से फ्रांस का तत्कालीन राष्ट्रपति नेपोलियन तृतीय प्रभावित हुआ और उसने इटली को सैनिक मदद देना स्वीकार किया, ऐसा करने में उसका अपना निजी राजनीतिक लाभ था। उसने फ्रांसीसी जनता को अपनी महत्ता से प्रभावित करने की दृष्टि से इस कार्य में भागीदार होना आवश्यक समझा। फलस्वरूप जून 1858 ई. में दोनों के बीच प्लाम्बियर्स नामक स्थान पर एक समझौता हुआ, जो इस प्रकार था-
 
आस्ट्रिया को इटली के नियंत्रण से निकालने के लिए फ्रांस इटली को सैनिक सहायता देगा, और इस सहायता के बदले इटली, नीस और सेवाय के प्रदेश फ्रांस को देगा।
 
इस प्रकार विदेश सहायता प्राप्त करने की समस्या का भी समाधान हो गया। अब कैबूर आस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध करने के लिए तैयार हो गया।
 
===आस्ट्रिया से युद्ध===
फ्रांस की सहायता का आश्वासन पाकर कैबूर आस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध करने के लिए तत्पर था। अतः कैबूर के इशारे पर लोम्बार्डी औरवेनेशिया में आस्ट्रिया के खिलाफ विद्रोह हो गया। विद्रोह की स्थिति को देखते हुए आस्ट्रिया युद्ध की अनिवार्यता को समझ गया। फलस्वरूप 1859 ई. में दोनों पक्षों में युद्ध प्रारंभ हा गया। युद्ध जारी ही था कि अचानक फ्रांस ने अपने का युद्ध से अलग कर लिया। इसका कारण था प्रशिया का युद्ध में आस्ट्रिया की सहायता के लिए तैयार होना तथा उसका खर्चीला होना। साथ ही, नेपोलियन ने यह अनुभव किया कि इटली का संगठित होना फ्रांस के प्रति उचित न था। ऐसी स्थिति में इटली और आस्ट्रिया बीच ज्यूरिक की संधि हो गयी, जिसकी शर्तें इस प्रकार थीं -
 
*1. लोम्बार्डी का प्रदेश पीडमाँट के अधिकार में दे दिया गया।
*2.वेनेशिया को आस्ट्रिया के ही अधिकार में रखा गया।
*3. नीस और सेवाय के प्रदेश फ्रांस को दे दिए गए।
 
इस संधि से इटली संतुष्ट नहीं हुआ, क्योंकिवेनेशिया का आस्ट्रिया के अधीन रहना उसे खल रहा था, फिर भी लोम्बार्डी की प्राप्ति एकीकरण की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि थी, हालांकि मध्य और दक्षिण में एकीकरण का कार्य अभीशेष था।
 
==मध्य-इटली का एकीकरण==
मध्य-इटली के राज्यों में भी स्वतंत्रता की माँग जोर पकड़ने लगी थी। ये राज्य भी अब [[पीडमाँट]] के साथ मिलने का प्रयास करने लगे थे। 1860 ई. में मोडेना, परमा और टस्कनी आदि मध्य-इटली के राज्यों ने जनमत द्वारा पीडमाँट में मिलने का फैसला किया। इस प्रकार मध्य-इटली के राज्यों का भी एकीकरण हो गया। अब केवल दक्षिण-इटली के राज्यों को संगठित करना शेष था।शेष इटली को पीडमाँट में शामिल करने का जो आंदोलन चला उसमें किसी विदेश शक्ति का सहयोग नहीं लिया गया। यह इटालियन राष्ट्रीयता की अपनी मिसाल थी, जिसका नेता गैरीबॉल्डी था। दक्षिण-इटली के प्रमुख राज्य थे - [[सिसली]] और [[नेपल्स]], जहाँ बूर्वो-वंश की सत्ता विद्यमान थी।
 
==गैरीबॉल्डी के कार्य==
गैरीबॉल्डी ने देश के राष्ट्रीय-एकीकरण के कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जन्म 1807 ई. में नीस में हुआ था। उसने नौ-सेना की शिक्षा प्राप्त थी। वह समुद्री व्यापार से जुड़ा हुआ था। वह मेजिनी से बड़ा प्रभावित था, इसीलिए वह रिपब्लिकन-दल का पक्षपाती हो गया था। सरकार उसके इस उदार विचार से नाराज थी, इसीलिए वह गिरफ्तार कर लिया गया। सजा से बचने के लिए वह दक्षिण-अमेरिका भाग गया। वहाँ अनेक वर्षों तक रहकर वह 1848 ई. में पुनः इटली वापस लौटा। क्रांति में असफलता प्राप्त करने के पश्चात वह पुनः अमेरिका चला गया। वहाँ से खूब धन कमाकर वह पुनः इटली आया। कैबूर और विक्टर एमेनुअल के साथ उसने संपर्क बनाये रखा। अपने नेतृत्व में उसने लालकुर्ती दल का संगठन किया, जिसके सहयोग से वह सिसली और नेपल्स को स्वतंत्र कर उन्हें राष्ट्रीय-धारा से जोड़ने में सफल हुआ।
 
===सिसली और नेपल्स पर अधिकार===
इन राज्यों को राष्ट्रीय धारा में जोड़ने का कार्य गैरीबॉल्डी ने किया। दक्षिण-इटली में सिसली और नेपल्स दो राज्य थे, जहाँ बूर्वो-वंश का शासन था। यहाँ की जनता ने विद्यमान शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया और गैरीबॉल्डी से सहयोग की प्रार्थना की। जवाब में गैरीबॉल्डी ने अपनी सेना की सहायता से जून 1860 ई. तक सारे सिसली पर अपना अधिकार कर लिया। यह कार्य सरलता से सम्पन्न हो गया। सिसली अब पीडमाँट के राज्य में शामिल कर लिया गया।
 
इसके पश्चात उसने 1860 ई. में नेपल्स पर भी अपना अधिकार कर लिया। 6 सितम्बर 1860 ई.को सिसली और नेपल्स का शासक फ्रांसिस द्वितीय देश छोड़कर भाग गया। इन दोनों कार्यों का संपादन उसने देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना से प्रभावित होकर किया। राष्ट्र के प्रति उसके प्रेम और त्याग का यह अनूठा उदाहरण है। 1862 ई. में उसका देहांत हो गया।
 
18 फरवरी 1861 ई. को संसद की बैठक में विक्टर इमेनुएल को इटली का शासक स्वीकार किया गया। इस उपलब्धि के बाद 6 जून 1861 ई. को काबूर की मृत्यु हो गयी। इटली को एक राष्ट्र का रूप देने का श्रेय कैबूर को है, जिसमें मेजिनी, गैराबॉल्डी और विक्टर इमेनुएल का सहयोग उल्लेखनीय था। कैबूर की यह इच्छा थी कि रोम संयुक्त इटली की राजधानी बने, पर वह अभी इटली में शामिल नहीं हो पाया था। इसके अतिरिक्तवेनेशिया भी अभी तक ऑस्ट्रिया के अधिकार में था। इस प्रकार इटली के एकीकरण के कार्य में ये दो कमियाँ अभीशेष थीं।
 
जर्मन राज्यों के एकीकरण का कार्य प्रशा के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चल रहा था। इस कार्य की पूर्णता के लिए प्रशा ने 1866 ई. में आस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध कर दिया, जिसमें इटली भी प्रशा की ओर से शामिल हुआ। अंततः प्रशा इस युद्ध में सफल हुआ। इस सहयोग के लिएवेनेशिया का राज्य इटली को प्राप्त हो गया। अक्टूबर 1866 ई. में इसे पीडमाँट में मिला लिया गया।
 
==रोम की प्राप्ति==
रोम का प्राचीन वैभव इटलीवासियों के लिए गौरव कारण था। वे उसे नवीन इटली राज्य की राजधानी बनाना चाहते थे पर उस पर अभी पोप का अधिकार था। 1870 ई. में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध छिड़ गया। ऐसी स्थिति में फ्रांस को रोम में स्थित अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ा। जर्मनी के एकीकरण के दौर में यह युद्ध सीडान के मैदान में लड़ा गया, जिसमें अंतिम सफलता प्रशा को मिली। इस स्थिति ने रोम पर आक्रमण करने के लिए इटली को अनुकूल अवसर प्रदान किया, जिसका लाभ उठाकर उसने रोम पर आक्रमण कर दिया। 20 सितम्बर 1870 ई. को इटली के सेनापति केडोनी ने रोम पर इटली का अधिकार स्थापित कर लिया। इस प्रकार इटलीवासियों की यह अंतिम इच्छा भी पूर्ण हो गयी। 2 जून 1871 ई. को विक्टर इमेनुएल ने रोम में प्रवेश किया। इटली की संसद का उद्घाटन करते हुए उसने कहा, ‘‘हमारी राष्ट्रीय एकता पूर्ण हो गयी, अब हमारा कार्य राष्ट्र को महान बनाना है।‘‘
 
इस प्रकार इटली के एकीकरण का महान् कार्य पूरा हो सका।
 
== इन्हें भी देखें ==