"यास्क": अवतरणों में अंतर

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यास्क के पूर्वकाल में यह मत प्रचलित हो गया था कि वेदमन्त्रों में से कोई अर्थ नहीं निकाला जा सकता है । वैदिक मन्त्रों के जो अर्थ बताये जाते है वे भी वैदिक क्रियाकाण्ड के साथ सुसंगत नहीं हैं। वेदमन्त्रों में ऐसे अनेक वाक्य हैं जिनमें परस्पर विरुद्धार्थ का ही कथन हो ।
यास्क ने जो निरुक्त ग्रन्थ की रचना की है, उसमें प्राधान्येन ( अज्ञातकर्तृक ) निघण्टु नामक वैदिक शब्दकोश में संगृहीत शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करने का ही लक्ष्य रखा है । निरुक्त के प्रारम्भ में ही कहा गया है कि –
 
<b> समाम्नायः समाम्नातः । स व्याख्यातव्यः ।।</b>
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/यास्क" से प्राप्त