"गंधकुटी": अवतरणों में अंतर
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'''गंधकुटी''' बुद्ध, केवली या भगवान के विराजने का स्थान।
मोह का क्षय होने से कैवल्य (पूर्ण ज्ञान) की प्राप्ति होती है। तीर्थकर केवली के लिए इंद्र विशाल जंगन सभा (समवसरण) का निर्माण करता है। समवसरण के केंद्र में उच्च स्थान पर भगवान के लिए कुटी होती है। इसमें सदैव मलयचंदन, कालागरू आदि जलते रहते हैं अतएव इसे गंधकुटी कहते हैं। साधारण केवलियों के लिए केवल गंधकुटी बनती है। समवसरण के प्रतीक
[[श्रेणी:बौद्ध धर्म]]
[[श्रेणी:जैन धर्म]]
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