"घनानन्द": अवतरणों में अंतर

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== कलापक्ष ==
घनानंद भाषा के धनी थे। उन्होंने अपने काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग किया है । रीतिकाल की यही प्रमुख भाषा थी । इनकी ब्रजभाषा अरबी, फारसी, राजस्थानी, खड़ी बोली आदि के शब्दों से समृद्ध है । उन्होंने सरल-सहज लाक्षणिक व्यंजनापूर्ण भाषा का प्रयोग किया है । घनानंद ने लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग से भाषा सौंदर्य को चार चाँद लगा दिए हैं ।
घनानंद ने अपने काव्य में अलंकारो का प्रयोग अत्यंत सहज ढंग से किया है । उन्होंने काव्य में [[अनुप्रास]], [[यमक]], [[उपमा]],
रूपक, उत्प्रेछा एवं विरोधाभास आदि अलंकारो का प्रयोग बहुलता के साथ हुआ है । 'विरोधाभास ' घनानंद का प्रिय
अलंकर है । आचार्य विश्वनाथ ने उनके बारे में लिखा है ।"विरोधाभास के अधिक प्रयोग से उनकी कविता भरी पड़ी है ।