"साहित्य दर्पण": अवतरणों में अंतर
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'''प्रथम परिच्छेद''' में काव्य प्रयोजन, लक्षण आदि प्रस्तुत करते हुए ग्रंथकार ने मम्मट के काव्य लक्षण "तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुन: क्वापि" का बड़े संबंभ के साथ खंडन किया है और स्वरचित लक्षण '''वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्''' को ही शुद्धतम काव्य लक्षण प्रतिपादित किया है। पूर्वमतखंडन एवं स्वमतस्थापन की यह पुरानी परंपरा है।
'''द्वितीय परिच्छेद''' में वाच्य और पद का लक्षण कहने के बाद अभिधा, लक्षणा, व्यंजना आदि शब्द
'''तृतीय परिच्छेद''' में रसनिष्पत्ति का बड़ा ही सुंदर विवेचन है और रसनिरूपण के साथ-साथ इसी परिच्छेद में नायक-नायिका-भेद पर भी विचार किया गया है।
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