"स्वदेशी": अवतरणों में अंतर

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== स्वदेशी आन्दोलन और हिन्दी ==
[[महात्मा गाँधी]] ने सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा था–
:"मैंने सन् 1915 में कांग्रेस]] के (एक के अलावा) सभी अधिवेशनों में भाग लिया है। इन अधिवेशनों का मैंने इस अभिप्राय से अध्ययन किया है कि कार्यवाही को अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दुस्तानी में चलाने से कितनी उपयोगिता बढ़ जायेगी। मैंने सैकड़ों प्रतिनिधियों और हजारों अन्य व्यक्तियों से बातचीत की है और मैंने अन्य सभी व्यक्तियों से अधिक विशाल क्षेत्र का दौरा किया है और अधिक शिक्षित तथा अशिक्षित लोगों से मिला हूँ– लोकमान्य तिलक और श्रीमती ऐनी बेसेन्ट से भी अधिक। और मैं इस दृढ़ निश्चय पर पहुँचा हूँ कि हिन्दुस्तानी के अलावा संभवत: कोई ऐसी भाषा नहीं है, जो विचार विनिमय या राष्ट्रीय कार्यवाही के लिए राष्ट्रीय माध्यम बन सके।"<ref>'''हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य''' डॉ॰ पंडित बन्ने, पृष्ठ संख्या 26</ref>
 
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन 1905 ई. तक [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] के अधिवेशनों में भाग लेने वाले सदस्य अधिकतर अंग्रेजी वेशभूषा में रहते थे और अपने भाषण अंग्रेजी में ही दिया करते थे लेकिन सन 1906 ई. के बाद ‘स्वराज्य’, ‘स्वदेशी’ ने इतना जोर पकड़ा कि ‘स्वभाषा’ और हिन्दी भाषा के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया। [[बालगंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]] ने ‘हिन्द केसरी’ के माध्यम से हिन्दी को प्रचारित–प्रसारित करने का प्रयास किया। [[पंजाब]] में [[लाला लाजपत राय]] ने शिक्षण संस्थाओं में हिन्दी की पढ़ाई को अनिवार्य बनाने में भूमिक निभाई। [[मदन मोहन मालवीय|पण्डित मदनमोहन मालवीय]] ने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] की स्थापना करके एवं पाठ्यक्रम में हिन्दी एक विषय के रूप में सम्मिलित करके तथा ‘अभ्युदय’, ‘मर्यादा’, ‘हिन्दुस्तान’ आदि पत्रों का प्रारम्भ एवं सम्पादन करके हिन्दी का प्रचार–प्रसार किया। राजर्षि [[पुरुषोत्तमदास टंडन]], काका कालेलकर आदि ने हिन्दी को सार्वदेशिक बनाकर जन–जागृति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।