"कामशास्त्र": अवतरणों में अंतर

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=== वात्स्यायन काल (कामसूत्र) ===
'''{{मुख्य|कामसूत्र}}'''
वात्स्यायन का यह ग्रंथ सूत्रात्मक है। यह सात अधिकरणों, 36 अध्यायों तथा 64 प्रकरणों में विभक्त है। इसमें चित्रित भारतीय सभ्यता के ऊपर गुप्त युग की गहरी छाप है, उस युग का शिष्टसभ्य व्यक्ति "नागरिक" के नाम से यहाँ दिया गया है कि कामसूत्र भारतीय समाजशास्त्र का एक मान्य ग्रंथरत्न बन गया है। ग्रंथ के प्रणयन का उद्देश्य है लोकयात्रा का निर्वाण, न कि राग की अभिवद्धि। इस तात्पर्य की सिद्धि के लिए वात्स्यायन ने गम्भीरउग्र समाधि तथा ब्रह्मचर्य का पालन कर इस ग्रंथ की रचना की—
:'''तदेतद् ब्रह्मचर्येण परेण च समाधिना।'''
:'''विहितं लोकयात्रार्थंलोकयावर्थं न रागार्थोंऽस्य संविधि:।।''' -- (कामसूत्र, सप्तम अधिकरण, श्लोक 57)
ग्रंथ सात अधिकरणों में विभक्त है। प्रथम अधिकरण (साधारण) में शास्त्र का समुद्देश तथा नागरिक की जीवनयात्रा का रोचक वर्णन है। द्वितीय अधिकरण (सांप्रयोगिक) रतिशास्त्र का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। पूरे ग्रंथ में यह सर्वाधिक महत्वशाली खंड है जिसके दस अध्यायों में रतिक्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन आदि कामक्रियाओं का व्यापक और विस्तृत प्रतिपादन हे। तृतीय अधिकरण (कान्यासंप्रयुक्तक) में कन्या का वरण प्रधान विषय है जिससे संबद्ध विवाह का भी उपादेय वर्णन यहाँ किया गया है। चतुर्थ अधिकरण (भार्याधिकारिक) में भार्या का कर्तव्य, सपत्नी के साथ उसका व्यवहार तथा राजाओं के अंत:पुर के विशिष्ट व्यवहार क्रमश: वर्णित हैं। पंचम अधिकरण (पारदारिक) परदारा को वश में लाने का विशद वर्णन करता है जिसमें दूती के कार्यों का एक सर्वांगपूर्ण चित्र हमें यहाँ उपलब्ध होता है। षष्ठ अधिकतरण (वैशिक) में वेश्याओं, के आचरण, क्रियाकलाप, धनिकों को वश में करने के हथकंडे आदि वर्णित हैं। सप्तम अधिकरण (औपनिषदिक) का विषय वैद्यक शास्त्र से संबद्ध है। यहाँ उन औषधों का वर्णन है जिनका प्रयोग और सेवन करने से शरीर के दोनों वस्तुओं की, शोभा और शक्ति की, विशेष अभिवृद्धि होती है। इस उपायों के वैद्यक शास्त्र में "बृष्ययोग" कहा गया है।
 
सामाजिक जीवन में कामसूत्र के महत्त्व का प्रतिपादन करते आचार्य वात्स्यायन का कथन है -
:'''रक्षन् धर्मार्थकामानां स्थितिं स्वां लोकवर्तिनीम्।'''
:'''अस्य शास्त्रस्य तत्त्वज्ञो भवत्येव जितेन्द्रियः।।''' -- (कामसूत्र, सप्तम अधिकरण, श्लोक 57)
 
रचना की दृष्टि से कामसूत्र [[कौटिल्य]] के "[[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]]" के समान है—चुस्त, गंभीर, अल्पकाय होने पर भी विपुल अर्थ से मंडित। दोनों की शैली समान ही है — सूत्रात्मक; रचना के काल में भले ही अंतर है, अर्थशास्त्र [[मौर्य राजवंश|मौर्यकाल]] का और कामूसूत्र [[सातवाहन]]काल अथवा [[गुप्त राजवंश|गुप्तकाल]] का है।
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कामसूत्र के ऊपर हुए प्रकाशित '''समालोचनात्मक ग्रंथ''' निम्न हैं -
* '''कामसूत्र कालीन समाज एवं संस्कृति''' :- यह ग्रन्थ '''डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी''' द्वारा विरचित एवं चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
* '''कामसूत्र परिशीलन''' :- यह ग्रन्थ आचार्य वाचस्पति गैरोला विरचित द्वारा विरचित है।
* '''कामसूत्र का समाजशास्त्रीय अध्ययन''' :- यह ग्रन्थ पं० देवदत्त शास्त्री द्वारा विरचित है।
 
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*(ख) '''अंनंगरंग कल्याणमल्ल कृत''':- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध '''कल्याणमल्ल''' ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ ४२० श्लोकों एवं १० स्थलरूप अध्यायों में निबद्ध है।
 
*(ग) '''रतिरहस्य कोक्कोक कृत''' :- यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा कोक्कोक को कश्मीरीयकश्मीरी स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्रयुक्तककन्यासंप्ररुक्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर पण्डित पारिभद्र के पौत्र तथा पण्डित तेजोक के पुत्र '''आचार्य कोक्कोक''' द्वारा विरचितरचित यह ग्रन्थ ५५५ श्लोकों एवं १५ परिच्छेदों में निबद्ध है। आचार्य कोक्कोक ने इस ग्रन्थ की रचना किसी वैन्यदत्त के मनोविनोदार्थ की थी। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि कोक्कोक ७वीं से १०वीं शताब्दी के मध्य हुए थे। यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण में कामशास्त्र के पर्याय के रूप में "कोकशास्त्र" नाम प्रख्यात हो गया।
 
*(घ) '''पंचसायक कविशेखर ज्योतिरीश्वर कृत ''' :- मिथिलानरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर ज्योतिरीश्वर ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार ग्रहणकर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। ३९६ श्लोकों एवं ७ सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। आचार्य ज्योतिरीश्वर का समय चतुर्दश शतक के पूर्वार्ध में स्वीकृत है।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
 
* [http://drst11.blogspot.com/2010/09/1.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (1)]
* [http://drst11.blogspot.com/2010/12/2.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (2)]
* [http://drst11.blogspot.com/2010/12/3.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (3)]
* [http://drst11.blogspot.com/2010/12/4.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (4)]
* [http://drst11.blogspot.in/2011/11/5.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (5)]
* [http://drst11.blogspot.in/2011/11/6.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (6)]
* [http://drst11.blogspot.in/2011/12/7.html डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी का आलेख – संस्कृत वाङ्मय में कामशास्त्र की परम्परा (7)]
[[श्रेणी:साहित्य]]
[[श्रेणी:संस्कृत]]