"स्वदेशी": अवतरणों में अंतर
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यहाँ यह उल्लेखनीय है कि सन 1905 ई. तक [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] के अधिवेशनों में भाग लेने वाले सदस्य अधिकतर अंग्रेजी वेशभूषा में रहते थे और अपने भाषण अंग्रेजी में ही दिया करते थे लेकिन सन 1906 ई. के बाद ‘स्वराज्य’, ‘स्वदेशी’ ने इतना जोर पकड़ा कि ‘स्वभाषा’ और हिन्दी भाषा के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया। [[बालगंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]] ने ‘हिन्द केसरी’ के माध्यम से हिन्दी को प्रचारित–प्रसारित करने का प्रयास किया। [[पंजाब]] में [[लाला लाजपत राय]] ने शिक्षण संस्थाओं में हिन्दी की पढ़ाई को अनिवार्य बनाने में भूमिका निभाई। [[मदन मोहन मालवीय|पण्डित मदनमोहन मालवीय]] ने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] की स्थापना करके एवं पाठ्यक्रम में हिन्दी एक विषय के रूप में सम्मिलित करके तथा ‘अभ्युदय’, ‘मर्यादा’, ‘हिन्दुस्तान’ आदि पत्रों को प्रारम्भ एवं सम्पादन करके हिन्दी का प्रचार–प्रसार किया। राजर्षि [[पुरुषोत्तमदास टंडन]], काका कालेलकर आदि ने हिन्दी को सार्वदेशिक बनाकर जन–जागृति लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जाहिर है स्वाधीनता आन्दोलन की सफलता के लिए यह आवश्यक था कि उसे सार्वदेशिक और अखिल भारतीय बनाया जाए क्योंकि सन् 1857 के प्रथम संघर्ष में हमें इसलिए असफल होना पड़ा क्योंकि वह अखिल देशीय नहीं हो सका था। उस प्रथम स्वाधीनता संग्राम को अखिल भारतीय नहीं बनाये जा सकने के अनेक कारणों में एक कारण राष्ट्रव्यापी भाषा का अभाव भी था। एक अखिल देशीय भाषा के अभाव में सम्पूर्ण देश को नहीं
== सन्दर्भ ==
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