"जय सिंह द्वितीय": अवतरणों में अंतर

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=== भरतपुर में विफलता===
दिल्ली से बादशाह ने इनको [[भरतपुर]] के [[चूड़ामन जाट]] पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी, जिसने आगरा के इलाके में लूटमारमुगल सेसेना बड़ाकी उपद्रवऩाक मचामे दम कर रखा था।था इनके साथ बून्दी के बुद्धसिंह, कोटा के भीमसिंह, नरवर के गजसिंह, दुर्गादास राठौड़ व कई अन्य मनसबदार भी नियुक्त किये गये। १५ सितम्बर १७१६ को ये अपनी फौज ले कर [[मथुरा]] के लिए रवाना हुए। नवम्बर में चूड़ामन के प्रसिद्ध किले [[थूण का घेरा]] शुरु किया। वर अब्दुल्ला खां सैयद, जयसिंह के विरुद्ध था तथा चूड़ामन को मदद दे रहा था। इससे इन्हें इस अभियान में सफलता नहीं मिल पाई। आैर राजपूतो ब मुगलो को बुरी तरह पराजित किया बाद मे वर अब्दुल्ला खां सैयद ने अन्त में बीच में पड़ कर थून का घेरा उठवा लिया। मई १७१८ में जयसिंह की वापसी [[दिल्ली]] हुई। चूडामन के इलाके में इस असफलता के बावजूद बादशाह ने इनका बड़ा सम्मान किया।<ref>[http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj089.htm]</ref>
 
सैयदों और बादशाहों के बीच तलवारें खिंच चुकी थी। जयसिंह ने बादशाह [[फ़र्रुख सियर]] को बहुत समझाया कि सैयदों से युद्ध करके उन्हें हमेशा के लिए साफ कर देना चाहिए। उस समय उनके पास २० हजार राजपूत सवार दिल्ली में मौजूद थे तथा बून्दी के बुद्धसिंह हाडा भी उन्हीं के साथ थे। परन्तु बादशाह की यह सैन्य कार्यवाई करने की हिम्मत नहीं हुई | वह सैयदों को किसी तरह खुश करने में लगा रहा। अन्त में सैयदों ने बादशाह से जयसिंह को दिल्ली से जाने को कहलवा दिया। जयसिंह ने बादशाह को सचेत किया कि उनके जाने से बादशाह की जान को खतरा हो जाएगा लेकिन यह सलाह बादशाह की समझ में नहीं आई। १३ फ़रवरी १७१९ ई० को जयसिंह दिल्ली से रवाना हुए। उसके कुछ ही घंटों बाद भींमसिंह कोटा राजा ने बुधसिंह बूंदी पर आक्रमण कर दिया | उनके स्वामीभक्त सरदार जैतसिंह ने बड़ी वीरता से कोटा की सेना को रोका तथा बुधसिंह को सुरक्षित वहाँ से निकाल दिया। वे भाग कर सवाई जयसिंह के पास पहुँचे। १७- १८ अप्रैल को सैयद भाइयों, अतसिंह जोधपुर और भीमसिंह कोटा ने मिल कर दिल्ली में बादशाह फर्रूखशियर को मार डाला।<ref>[http://www.ignca.nic.in/coilnet/rj089.htm]</ref>