"पूर्णागिरी": अवतरणों में अंतर

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'''पूर्णागिरि मन्दिर''' [[भारत]] के [[उत्तराखण्ड]] प्रान्त के [[पिथौरागढ़]] जनपद में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है । यह १०८ सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था । प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं ।
 
== कथा ==
किंवदन्ती है कि [[दक्ष प्रजापति]] की पुत्री [[पार्वती]] ([[सती]]) ने अपने पति महादेव के अपमान के विरोध में दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ कुण्ड में स्वयं कूदकर प्राण आहूति दे दी थी। भगवान विष्णु ने अपने चक्र से महादेव के क्रोध को शान्त करने के लिए सती पार्वती के शरीर के 64 टुकडे कर दिये। वहॉ एक शक्ति पीठ स्थापित हुआ। इसी क्रम में [[पूर्णगिरि] [[शक्ति पीठ स्थल]] पर सती पार्वती की नाभि गिरी थी।
यह स्थान चम्पावत से 95 कि.मी.की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र 25 कि.मी.की दूरी पर स्थित है। इस देवी दरबार की गणना भारत की 51 [[शक्तिपीठों]] में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई। सती की जली हुई देह लेकर भगवान शिव शंकर आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव शंकर के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से सती के शरीर के अंग पृथक-पृथक कर दिए। जहॉ-जहॉ पर सती के अंग गिरे वहॉ पर शान्ति पीठ स्थापित हो गये। पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा वहॉ पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।
 
 
== स्थिति ==
यह स्थान टनकपुर से मात्र १७ कि.मी. की दूरी पर है । अन्तिम १७ कि.मी. का रास्ता श्रद्धालु अपूर्व आस्था के साथ पार करते हैं । नेपाल इसके बगल में है ।समुद्र तल से ३००० मीटर की ऊचाई पर स्थित है। पूर्णागिरी मन्दिर टनकपुर से २० कि॰ मी॰, पिथौरागढ से १७१ कि॰मी॰ और चम्पावत से ९२ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। पूर्णागिरी मे वर्ष भर तीर्थयात्रियो का भारत के सभी प्रान्तो से आना लगा रहता है। विसेशकर नवरात्री ( मार्च-अप्रिल) के महीने मे भक्त अधिक मात्रा मे यहा आते है। भक्त यहा पर दर्शनो के लिये भक्तिभाव के साथ पहाड पर चढाई करते है। पूर्णागिरी पुण्यगिरी के नाम से भी जाना जाता है। यहा से काली नदी निकल कर समतल की ओर जाती है वहा पर इस नदी को शारदा के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थस्थान पर पहुचने के लिये टनकपुर से ठूलीगाड तक आप वाहन से जा सकते हैं। ठूलीगाड से टुन्यास तक सडक का निर्माण कार्य प्रगति पर होने के कारण पैदल ही बाकी का रास्ता तय करना होता है। ठूलीगाड से बांस की चढाई पार करने के बाद हनुमान चट्टी आता है। यहां से पुण्य पर्वत का दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा दिखने लगता है। यहां से अस्थाई बनाई गयी दुकानें और घर शुरू हो जाते हैं जो कि टुन्यास तक मिलते हैं। यहा के सबसे ऊपरी हिस्से (पूर्णागिरी) से काली नदी का फैलाव,टनकपुर शहर और कुछ नेपाली गांव दिखने लगते हैं। यहां का द्रश्य बहुत ही मनोहारी होता है। पुराना ब्रह्मदेव मण्डी टनकपुर से काफी नज़दीक है।
 
== मेला==
वैसे तो इस पवित्र शक्ति पीठ के दर्शन हेतु श्रद्धालु वर्ष भर आते रहते हैं। परन्तु चैत्र मास की नवरात्रियों से जून तक श्रद्धालुओं की अपार भीड दर्शनार्थ आती है। चैत्र मास की नवरात्रियों से दो माह तक यहॉ पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध कराई जाती हैं। इस शक्ति पीठ में दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की संख्या वर्ष भर में 25 लाख से अधिक होती है। इस मेले हेतु प्रतिवर्ष राज्य शासन द्वारा अनुदान की धनराशि जिलाधिकारी चम्पावत के माध्यम से जिला पंचायत चम्पावत जोकि मेले का आयोजन करते हैं को उपलब्ध कराई जाती है।
 
== कैसे पहुचे ? ==
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Image:Poorna_giri_temple.jpg|माँ पूर्णागिरी का दरबार
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[[सदस्य:Varunkau|Varunkau]] १२:५०, २६ दिसम्बर २००८ (UTC)
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:मन्दिर हिन्दू धर्म]]
[[श्रेणी:तीर्थस्थल मन्दिर]]
[[श्रेणी: तीर्थस्थल]]
[[श्रेणी: दुर्गा]]