"पूर्णागिरी": अवतरणों में अंतर

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== कथा ==
किंवदन्ती है कि [[दक्ष प्रजापति]] की पुत्री [[पार्वती]] ([[सती]]) ने अपने पति महादेव के अपमान के विरोध में दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ कुण्ड में स्वयं कूदकर प्राण आहूति दे दी थी। भगवान विष्णु ने अपने चक्र से महादेव के क्रोध को शान्त करने के लिए सती पार्वती के शरीर के 64 टुकडे कर दिये। वहॉ एक शक्ति पीठ स्थापित हुआ। इसी क्रम में [[पूर्णगिरि]] [[शक्ति पीठ स्थल]] पर सती पार्वती की नाभि गिरी थी।
यह स्थान चम्पावत से 95 कि.मी.की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र 25 कि.मी.की दूरी पर स्थित है। इस देवी दरबार की गणना भारत की 51 [[शक्तिपीठों]] में की जाती है। शिवपुराण में रूद्र संहिता के अनुसार दश प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था। एक समय दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। सती द्वारा अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन न होने के कारण अपनी देह की आहुति यज्ञ मण्डप में कर दी गई। सती की जली हुई देह लेकर भगवान शिव शंकर आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव शंकर के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से सती के शरीर के अंग पृथक-पृथक कर दिए। जहॉ-जहॉ पर सती के अंग गिरे वहॉ पर शान्ति पीठ स्थापित हो गये। पूर्णागिरी में सती का नाभि अंग गिरा वहॉ पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।
 
 
== स्थिति ==