"मत्स्य पुराण": अवतरणों में अंतर
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इस पुराण में सात कल्पों का कथन है, नृसिंह वर्णन से शुरु होकर यह चौदह हजार श्लोकों का पुराण है। मनु और मत्स्य के संवाद से शुरु होकर ब्रह्माण्ड का वर्णन ब्रह्मा देवता और असुरों का पैदा होना, मरुद्गणों का प्रादुर्भाव इसके बाद राजा पृथु के राज्य का वर्णन वैवस्त मनु की उत्पत्ति व्रत और उपवासों के साथ मार्तण्डशयन व्रत द्वीप और लोकों का वर्णन देव मन्दिर निर्माण प्रासाद निर्माण आदि का वर्णन है। इस पुराण के अनुसार मत्स्य (मछ्ली) के अवतार में भगवान [[विष्णु]] ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नांव की रक्षा की थी। इसके पश्चात [[ब्रह्मा]] ने पुनः जीवन का निर्माण किया। एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।
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जब वेदो को लेकर एक राक्शस जल मे चला गया तो उसका सनहार करने के लिये भगवान जी ने मत्स्य अवतार लिया उस समय प्रिथ्वि पर राकशसो की सन्ख्या जादा हो गयी जिससे प्रिथ्वि को दुबारा रचने की अवश्यकता थी तब सभी जीवो की एक एक जोदी को भग्वान विष्नु जी ने मनु रिशी से बचाने के लिये कहा और कहा कि अमुक समय पर तुम नाव मे इन सब को रख लेना और मै तुम्हारी नाव को सुरक्शित स्थान पर ले जाऊगा और तब ब्रह्मा जी इन जीवो का उपयोग करके एक नई स्र्ष्ती का निर्मान करेगे|
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