"वेदान्त दर्शन": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अनुभाग शीर्षक एकरूपता।
पंक्ति 34:
'''[[महाप्रभु चैतन्य]]''' (1485-1533 ई.) के इस संप्रदाय में अनंत गुणनिधान, सच्चिदानंद [[श्रीकृष्ण]] परब्रह्म माने गए हैं। ब्रह्म भेदातीत हैं। परंतु अपनी शक्ति से वह जीव और जगत्‌ के रूप में आविर्भूत होता है। ये ब्रह्म से भिन्न और अभिन्न हैं। अपने आपमें वह निमित्त कारण है परंतु शक्ति से संपर्क होने के कारण वह उपादान कारण भी है। उसकी तटस्थशक्ति से जीवों का तथा मायाशक्ति से जगत्‌ का निर्माण होता है। जीव अनंत और अणु रूप हैं। यह सूर्य की किरणों की तरह ईश्वर पर निर्भर हैं। संसार उसी का प्रकाश है अत: मिथ्या नहीं है। मोक्ष में जीव का अज्ञान नष्ट होता है पर संसार बना रहता है। सारी अभिलाषाओं को छोड़कर कृष्ण का अनुसेवन ही भक्ति है। वेदशास्त्रानुमोदित मार्ग से ईश्वरभक्ति के अनंतर जब जीव ईश्वर के रग में रँग जाता है तब वास्तविक भक्ति होती है जिसे रुचि या रागानुगा भक्ति कहते हैं। राधा की भक्ति सर्वोत्कृष्ट है। [[वृंदावन]] धाम में सर्वदा कृष्ण का आनंदपूर्ण प्रेम प्राप्त करना ही [[मोक्ष]] है।
 
== संदर्भसन्दर्भ ग्रंथ ==
* उपनिषद्; भगवद्गीता; गौडपादकारिका; ब्रह्मसूत्र;
* उपनिषद्गीता और ब्रह्मसूत्र पर सांप्रदायिक भाष्य;