"माधवराव सप्रे": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: लाघव चिह्न (॰) का उचित प्रयोग। |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: अनुभाग शीर्षक एकरूपता। |
||
पंक्ति 5:
माधवराव सप्रे के जीवन संघर्ष, उनकी साहित्य साधना, हिन्दी पत्रकारिता के विकास में उनके योगदान, उनकी राष्ट्रवादी चेतना, समाजसेवा और राजनीतिक सक्रियता को याद करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी ने ११ सितम्बर १९२६ के ''कर्मवीर'' में लिखा था − "पिछले पच्चीस वर्षों तक पं॰ माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।"<ref>{{cite web |url= http://www.tadbhav.com/issue_17/manager_pandey.htm#manager|title=माधवराव सप्रे का महत्व|accessmonthday=[[२ मई]]|accessyear=[[२००९]]|format=|publisher=तद्भव|language=}}</ref>
==
<references/>
|